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Subrat SaurabhAuthor of Kuch Woh Palडा० विजया सिन्हा का काव्य संग्रह ‘अर्पण’ कई कोणों से चौंकाने वाली पुस्तक है। एक तो विज्ञान की इस प्रखर साधिका के तेजस्वी वैचारिक धरातल के उनकी मृदुल भावनाओं से भीगने की मीठी महक नि:सृत होती है, दूसरी ओर उनकी भावनाओं की भागीरथी हिंदी से भोजपुरी होते हुए अंग्रेज़ी तक में अपनी बहुरंगी कलाओं में लहराती दिखती हैं। कवयित्री ने अपने जीवन आँगन के अनुभवों को सहेजकर जीवन-तत्व के प्रति अपनी मौलिक दृष्टि को अपनी कविताओं में घोर दिया है। आशा की लताओं ने मानों उनके जीवन-वृक्ष को चतुर्दिक लपेट रखा है। ‘रंगमंच’ कविता में तो मानों कवयित्री ने अपने द्वारा अनुभूत जीवन-दर्शन को ही साक्षात परोस दिया है। विज्ञान की जटिल गुत्थियों को सुलझाने वाली वैज्ञानिक कवयित्री विजया जी ईश्वर के अनुसंधान के अनंत पथ पर एक अनथक पथिक की भाँति विधि के रहस्यों के साथ लुका-छिपी खेलती नज़र आ रही हैं। विजया जी की काव्य-यात्रा एक भाव-प्रवण अनुसंधानशील प्राणी का शोधपूर्ण और सतर्क दृष्टि-पथ है, जो पाठकों के अंदर तक पैठ जाने की क्षमता से परिपूर्ण है। उनकी भाषा में सरलता के साथ-साथ व्यापकता भी है तथा भोजपुरी से लेकर अंग्रेज़ी तक के उनके स्वाभाविक सरोकार का साक्षात्कार भी है। उनकी रचनाओं में विज्ञान का वैचारिक शुष्क सैकत भावनाओं की हृदयहारिणी हहराती धारा से संतृप्त होकर उनकी वाणी में फूट पड़ता है –“भूल गयी हूँ अब सारी फ़िज़िक्स, कविता ने पकड़ लिया है हाथ।“मैं इनकी इस रचना यात्रा की निरंतरता के प्रति अपनी शुभकामनाएँ प्रकट करता हूँ।…विश्वमोहन
डा. विजया सिन्हा
डा. विजया सिन्हा का जन्म बिहार के छपरा जिले में 5 दिसम्बर 1944 को हुआ था। पटना साइंस कौलेज से फिजिक्स में एम.एस.सी. (1965) करने के बाद उन्होंने एक वर्ष उसी कौलेज में अध्यापक के रूप में काम किया। 1973 में आई.आई.टी. दिल्ली से पी.एच.डी. की। 1969 में उनकी शादी हो गई और 1972 तक दो वच्चे भी हो गए। भौतिकी विभाग, गुजरात विश्वविद्यालय में रिसर्च तथा पढ़ाने का काम 10 वर्षों तक किया (1976-1986)। फिर 1986 में उन्होंने सैक (SAC- Space Applications Cente- अंतरिक्ष उपयोग केन्द्र), इसरो (ISRO- Indian Space Research Organisation- भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन), अहमदाबाद में काम करना शुरु किय़ा और वहाँ से 2004 में सेवा निवृत हुईं। 2008 में सलाहकार की तरह फिर से उन्होंने वहाँ एक वर्ष काम किया।
उनके निरिक्षण में बनाए गए कुछ उपकरण अंतरिझ में सेटेलाइट के अंदर अभी भी अच्छी तरह काम कर रहे हैं। अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर तीन बार (2007, 2010, 2019उ) और आज़ादी के अमृत महोत्सव पर (2022) उन्हें सम्मानित किया जा चुका है। 2015 में लिखी उनकी संक्षिप्त जीवन कहानी Women’s Web में प्रकाशित हुई थी जिसे नीचे दिए गए लिंक में देखा जा सकता है। https://www.womensweb.in/2015/05/vijaya-sinha-indian-women-in-science/.
सेवा निवृत होने के पश्चात उन्होंने हिन्दी और अँग्रेजी में रचनाएँ एवं कविताएँ लिखनी शुरु कर दीं। पहले वे ‘प्रतिलिपि’ में अपनी कविताएँ प्रकाशित करने लगीं। उनकी हिन्दी में लिखी कुछ कविताएँ ‘पलक, जो खुल रही है’ किताब में प्रकाशित हो चुकी हैं- http://notionpress.com/read/palak-jo-khul-rahi-hai
आजकल वे हिन्दी और अँग्रेजी के साथ अपनी मातृ भाषा भोजपुरी में भी कविताएँ लिखने लगी हैं। इस पुस्तक में हिंदी, भोजपुरी तथा अँग्रेजी की कविताएँ प्रस्तुत की गई हैं ।
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