बांसुरी..... इस एक शब्द में भारतीय सृजनशीलता के अंतरतम को अभिव्यंजित कर सकनें की क्षमता है । भारतीय कला संस्कृति इतिहास और मिथकों की विरासत जैसे इस एक शब्द में समायी हुई है इसके सुरों में जो गीतों के रूप में यहां पिरोए हुए हैं, हमारा अतीत झिलमिलाता है, वर्तमान कुरेदता है और भविष्य पुकारता है। यह बांसुरी ध्वनित हो रही है हमें वह सच सुनाने के लिए जिसे हम चाह कर भी अनसुना नहीं कर सकते। इसकी धुन में आपको बाहर का शोर भी सुनाई देगा और भीतर की शांति भी। रोज-ब- रोज के मानवीय सुख-दुख और जीत हार के खट्टे-मीठे अनुभव-संवेदना के साथ-साथ इसमें अंतर्मुख चेतना से उपजे स्थायी और व्यापक मूल्यों की लय है जो देश-काल-निरपेक्ष सत्य की अनुगूंज पैदा करती है।
आम धारणा है कि कविता केवल भोली और कोमल भावनाओं के क्षेत्र में विचरण करती है और तीखे विश्लेषण से कविता का कोई लेना-देना नहीं। लेकिन, एक सच्चा कवि केवल अपने हृदय के भाव- प्रकोष्ठ में कैद नहीं रह सकता। उसे सबके हृदय में पहुंचना होता है अंतःकरण का यह विस्तार ही उसके रचना-कर्म को सार्थक करता है। बांसुरी की यह गूंज समसामयिक यथार्त के कर्णपटों पर भी आहट पैदा करती है। इसे सुनने के लिए संवेदनशील मन की तो दरकार है ही, साथ ही एक साहसिक उत्कंठा भी होनी जरूरी है।क्या आप इस साहस का दावा करेंगे?
Sorry we are currently not available in your region. Alternatively you can purchase from our partners
Sorry we are currently not available in your region. Alternatively you can purchase from our partners