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Subrat SaurabhAuthor of Kuch Woh Palप्रेम बड़ा मायावी होता है और तो और कच्ची उम्र का प्रेम तो और भी ख़तरनाक लगता है। इस प्रेम की ठीक-ठाक तासीर कोई नहीं समझ सका आजतक क्योंकि प्रेम में कभी दुःख हो ही नहीं सकता, दुःख तो अधिकार जताने में होता है, जो प्रेम का शत्रु है। लेखक द्वारा "बिखरे मोती टूटे ख़्वाब" पुस्तक के माध्यम से एक इंसान के जीवन में हर पड़ाव पर प्राप्त होने वाले प्रेम को समझाने के साथ साथ उसे आपके हृदय में उतारने का प्रयास किया गया है। इस रचना में शृंगार रस के कविताओं के साथ-साथ जीवन के कुछ अन्य आयामों पर भी लिखी गईं हैं कविताएँ। लेखक इस आशा के साथ इस पुस्तक को आपसब को सौंप रहे हैं कि पढ़ प्रेम पाठ जो बिखरे मोती तो मुझपर इलज़ाम ना दें। प्यार सिर्फ एक एहसास है, आप इसे जीवन के हर रूप में करें महसूस और प्यार को प्यार रहने दें, कोई और नाम ना दें।
आकर्ष ओझा
बिहार के चंपारण जिले में स्थित चनपटिया के ओझा टोला, जैतिया ग्राम में जन्मे आकर्ष ओझा ने लेखन एवं साहित्य के क्षेत्र में मात्र 17 वर्ष की आयु में अपनी नवीन यात्रा आरंभ की है। आकर्ष सेंट माइकल्स हाई स्कूल, पटना से बारहवीं की पढ़ाई कर रहे हैं। उनकी कविताओं तथा उनकी रचनाओं में शृंगार रस अपनी पराकाष्ठा पर होता है। इन्होंने प्रेम के हर रूप को साहित्य माना है जिससे शृंगार रूपी धागों में शब्दों की मोतियों को पिरोकर दिखाया है। इन्होंने अपने लेखन में मनुष्य के जीवन के हर पड़ाव पर प्राप्त होने वाले प्रेम को समझाने के साथ साथ उसे आपके हृदय में उतारने का प्रयास किया है। इन्होंने मातृत्व,पितृत्व,मानवता इन सभी शब्दों का सृजन जिस प्रेम के कारण हुआ है उसे अपनी लेखन शैली में उजागर किया है। अतः वे प्रेम तथा उसके विभिन्न रूपों को हमारे समक्ष रखने का हमेशा प्रयास करते हैं । इसके अतिरिक्त इस संसार में व्याप्त हर प्रकार की संवेदनाओ, इक्षाओं तथा उनके कारण होने वाले विसमय को समझाया तथा उसे महसूस कराने का उचित प्रयास करते हैं । इनके लेखों तथा कविताओं की भाषा में सरलता तथा भावनात्मकता साफ़ झलकती हैं।
आकर्ष अपने बारे में कहते हैं;
मैंने कभी समुद्र नहीं देखा, पर फिर भी कविताएँ लिखी समुद्र के ऊपर। पहाड़ों पर भी नहीं चढ़ा कभी, फिर भी कविताएँ लिखी पहाड़ों के ऊपर। ऐसी तमाम जगहें जहाँ अभी तक नहीं घूम पाया और वे बातें जो मैंने कभी किसी से नहीं की, उन सब पर लिखी कविताएँ हैं। बिना किसी से मिले,किसी को जाने प्रेम करने की प्रवृति ने ही मुझे अब तक एक इंसान बनाए रखा है।
नफरत के बदले भी यहाँ, जो सबको प्रेम जतता हूँ,
इसी वज़ह से इस जहाँ में मैं आकर्ष कहलाता हूँ।
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