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Subrat SaurabhAuthor of Kuch Woh Palमृग मरीचिका की तरह होता है झूठ। माया के आवरण में छिपा हुआ होता है सत्य। जल तो होता नहीं, मात्र जल की प्रतीति हीं होती है। आप जल के जितने करीब जाने की कोशिश करते हैं, जल की प्रतीति उतनी हीं दूर चली जाती है। सत्य की जानकारी सत्य के पास जाने से कतई नहीं, परंतु दृष्टिकोण के बदलने से होता है। मृग मरीचिका जैसी कोई चीज होती तो नहीं फिर भी होती तो है। माया जैसी कोई चीज होती तो नहीं, पर होती तो है। और सारा का सारा ये मन का खेल है। अगर मृग मरीचिका है तो उसका निदान भी है। महत्वपूर्ण बात ये है कि कौन सी घटना एक व्यक्ति के आगे पड़े हुए भ्रम के जाल को हटा पाती है । प्रश्न ये था की कृवर्मा और कृपाचार्य की आंखों के सामने छैई हुई भ्रम को आखिर हटा जाए तो कैसे?
अजय अमिताभ सुमन
मैं , अजय अमिताभ सुमन, अधिवक्ता, कवि, लेखक और ब्लॉगर।दिल्ली के कैंपस लॉ सेंटर विश्वविद्यालय से कानून में स्नातक, बौद्धिक संपदा अधिकार से संबंधित मामलों में दिल्ली उच्च न्यायालय में मुकदमेबाजी का बीस साल का अनुभव। वकील होने के नाते, मुझे किताबें पढ़ने और कानूनी लेख, ब्लॉग आदि लिखने की आदत है। इसके अलावा मुझे कविताएँ, लेख, कहानियाँ लिखना पसंद है जो विशेष रूप से मानव समझ, भगवान, धर्म, दर्शन, सामाजिक सुधार आदि के मुद्दे को संबोधित करते हैं। मेरे कानूनी लेख, ब्लॉग, कहानियाँ, समाचार लेख, कविताएँ आदि पेटेंट और ट्रेड मार्क केस, लाइव लॉ, बार एंड बेंच, लीगलसर्विस इंडिया, लॉयर्सक्लब इंडिया, लीगल डिजायर, टाइम्स ऑफ इंडिया, नवभारत टाइम्स, अमर उजाला, दैनिक जागरण, यूथ की आवाज, स्पीकिंग ट्री, साहित्य कुंज, प्रतिलिपि, साहित्य दर्पण, पोएम हंटर, हैलो पोएट्री, आल पोएट्री आदि में प्रकाशित हुए हैं।
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