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Subrat SaurabhAuthor of Kuch Woh Pal" गुमनामी मेरी अपनी दुनिया"यह सिर्फ कुछ कविताओं कुछ कल्पना हो या कुछ कहानियों का ही संग्रह नहीं बल्कि मेरे जज्बातों का संग्रह है मेरी भावनाओं का संग्रह है इसमें मैंने अपने दिल के सभी जज्बातों को लिखा है और कोशिश की है कि लोगों तक भी मेरा दर्द पहुंचे दर्द हमेशा वह नहीं होता जो हमें बाहर से दिखाई देता है कुछ दर्द हमारे सीने में भी दफन होता है और एक लेखक हमेशा खुशी के दर्द को लिखे यह जरूरी नहीं एक लेखक लिखता है उस दर्द को जो उसने लोगों की नजरों में देखा है एक लेखक लिखता है उन जज्बातों को जो उसने अपने भीतर कहीं समाया है एक लेखक लिखता है उन जख्मों को जो उसने सहा तो नहीं मगर महसूस किया है कुछ कविताओं कुछ कहानियां कुछ ग़ज़लें और कुछ मेरी कल्पना ओं के जरिए मैंने अपने कुछ जज्बातों को अपने कुछ अनुभवों को अपने कुछ सीख जो मुझे दुनियादारी से मिली है अपने शब्दों में समेटा है और मैं आशा करती हूं कि लोगों को यह मेरी कोशिश पसंद आएगी इस संग्रह में मैंने अपनी कुछ मेहनत अपनी कुछ चाहत अपने कुछ ख्वाहिशें अपने कुछ सपने और अपने कुछ अधूरे पन को लिखा है मुझे उम्मीद है कि लोग इसे पढ़ने के बाद मेरी भावनाओं को समझेंगे
प्रियांशी पाटीदार
मैं प्रियांशी पाटीदार ग्राम बेहरावल जिला शाजापुर मध्य प्रदेश की रहने वाली हूं गांव के ही शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय से मैंने अपनी 12वी तक की शिक्षा प्राप्त की है अब मैं बीए प्रथम वर्ष की विद्यार्थी हूं ,सर्वप्रथम मैं मां सरस्वती, देवी शारदा को अपना शीश झुकाकर नमन व हाथ जोड़कर आभार प्रकट करती हूं कि वह हमेशा मेरा साथ देती रही उन्होंने मेरी कलम को मेरी ताकत बनाया है और मेरे मन में कलम के प्रति इतना प्रेम भर दिया व विश्वास भर दिया है की संकलन को पूर्ण करने के लिए मुझे हर दिन अपना आशीर्वाद देती रही है ।
मैं अपने माता- पिता ,बहनों ,शिक्षकों व सभी दोस्तों का भी तहे दिल से शुक्रिया अदा करना चाहती हूं जिन्होंने मुझे लिखने की कला की ओर प्रोत्साहित किया है , मै अपने बाकी सभी मित्रों का धन्यवाद करना चाहूंगी जिन्होंने मुझे इस किताब को लिखने के लिए मोटिवेट किया, मैं आदित्य सर का शुक्रिया करना चाहूंगी जिनकी वजह से ही मैं अपनी पहली किताब प्रकाशित करने जा रही हूं मैं शुक्रिया अदा करना चाहूंगी प्रसिद्ध कवियत्री अनामिका जैन अंबर जी का जिनके काव्य पाठ को सुनकर ही मेरा कविताएं लिखने की ओर रुझान बढ़ता चला गया, मैं धन्यवाद करना चाहूंगी मशहूर शायर कान्हा कंबोज जी का जिन के शायरी वीडियोस देखकर मैंने गजल लिखना सीखा, लिखना मेरा शौक नहीं मेरी आदत है और मैं अपनी इस आदत को अपनी गुमनामी का नाम देती हूं क्योंकि मुझे भी पता है कि दुनिया में पहचान पाने के लिए अभी मुझे बहुत समय लगेगा और एक कड़ी मेहनत की भी जरूरत है मुझे पता है कि जो मेरा नाम है वह मेरी पहचान नहीं भले ही एक नाम के साथ जी रही हूँ मगर ,वह पहचान अभी मेरे साथ नहीं जिस पहचान की मुझे जरूरत है, एक नाम के होते हुए भी मैं अपने आप को गुमनाम ही समझती हू।
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