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Hum Kaun? Bhag 1 / हम कौन? भाग १

Author Name: Kalim Ullah Kabir | Format: Paperback | Genre : Religion & Spirituality | Other Details

आज हमारे पास “भारत” का जो इतिहास है, वो ‘पश्चिम’ के प्रभाव में लिखा गया था। “भारत” का इतिहास लाखों वर्ष पुराना है। ‘कुरान’ में पैगंबर “नोहा” की घटना, ‘युग प्रणालि’ को उचित ठहराता है। ‘ईश्वर’ को अलग-अलग नामों से पुकारा जाता है। ‘वेदों’ को ‘ईश्वर’ ने लाखों वर्ष पहले भेजा था। ‘ईश्वर’ ने दुनिया भर में बुराईयों को खत्म करने, प्रेम और शांति स्थापित करने के लिये लगभग “124000 दूत” भेजे। सभी  ‘पैगंबरों’  के अनुयायियों ने उनकी शिक्षाओं को “धर्म”और ”पंथ” का नाम दिया। ‘धर्म’ सिर्फ मानवता का आचरण है। अलग-अलग धर्मों, पंथो के रास्ते अलग-अलग हो सकते हैं, परन्तु मंजिल एक है। “पैगंबर मोहम्मद” ने हमें मानवता और शांति का जीवंत उदाहरण दिये हैं । प्रथम चार-पाँच शताब्दी तक  इस्लाम अपनी बुलंदी पर था। बाद में कुछ राजाओं ने इस्लाम धर्म को अपने राज्य के विस्तार के लिए इस्तेमाल किया। फलस्वरूप धीरे धीरे मुसलमान इस्लाम से दूर होता चला गया lअतः अल्लाह ने मुसलमानों से अपना ‘आशीर्वाद’ वापस ले लिया। इस्लाम में अपनी ‘मातृभूमि’ से प्रेम करना इमान का अहम् हिस्सा है। कुरान किसी भी चीज की परवाह किये बिना इंसानियत, प्यार और शांति स्थापित करने को कहता है। आज भारत में मुसलमानों को “टूल किट” (tool kit) के तरह हर राजनीतिक पार्टियाँ इस्तेमाल कर रही है, परिणाम स्वरूप मुसलमानों का जीवन दयनीय हो गया हैl आज भारत में मुस्लिम समुदाय को अपना आकलन करके के सुधार लाने  की आवश्यकता है। 99% भारत में रह रहे लोगों का “पूर्वज” एक ही है l  

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कलीम उल्लाह कबीर

श्री कलीम उल्लाह कबीर एक "भारतीय मुसलमान" हैं। लेखक  एक "बहु-प्रतिभाशाली" विशिष्ट सिविल इंजीनियर सलाहकार, सुधारक और विचारक हैं। "भारत" के विभिन्न भागों में अध्ययन और कार्य करते हुए, उन्होंने समृद्ध, विविध ज्ञान और अनुभव प्राप्त किए हैं। उन्होंने "भारत" की विविधता में समृद्धि का अनुभव किया है। लेखक को यह पुस्तक का विचार तब आया जब लेखक ने विभिन्न धर्मों विशेषकर ‘इस्लाम’ के अंदर व्याप्त विभिन्न मुद्दों और कुप्रयोग से आहत हुआ l उन्होंने व्यवहारिक रूप से सामना किया है, और देखा है, कि कई मुसलमान केवल अपने लाभ के लिए “अल्लाह”, ‘पैगंबर मोहम्मद’, ‘भाईचारगी’, ‘शरिया कानून’ और ‘भारतीय कानून’ का प्रयोग और दुरुपयोग कर रहे हैं। ‘ईर्ष्या और द्वेष’ के कारण लोग अपनों को ही कष्ट दे रहें हैं, और नष्ट कर रहें हैं। इन्सान हर बुराई लोग से छुपकर करते हैं, लेकिन यह नहीं सोचते कि अल्लाह देख रहा है। मुसलमानों ने इस्लाम की सच्ची भावना को खो दिया है l ये सब से लेखक निराश हुआ है, और अवसाद में ज़िन्दगी गुजारे हैं l  अंततः अल्लाह ने लेखक को समाज में सुधार लाने के लिए प्रेरित किया। लेखक चाहता हैं, कि बुराईयों और भ्रष्टाचार का मूल कारण को समाप्त किया जाये। लेखक चाहता है, कि मुसलमान वास्तविक ‘इस्लाम’ का पालन करें। ‘धर्म’ व्यक्ति को मनुष्य बनाने तथा प्रेम और शांति स्थापित करने का क्रिया कलाप है। लेखक चाहता है, कि मनुष्य “उपयोगी” बने, ना की “उपभोगी”l ‘मनुष्य’ को "योगदानकर्ता" बनने का प्रयास करना चाहिए ताकि ‘विश्व’ में “प्रेम” और “शांति” हो । अगर लड़ना है तो“कर्तव्यों”के लिए लड़ो।

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