यह मेरा ५३ वाँ एकल काव्य-संकलन है। ईश्वर को ही ज्ञात है कि मैं अपने जीते जी कितने एकल व अन्य काव्य-संकलन प्रकाशित करवा पाऊँगा। प्रयासरत हूँ। मेरा स्वास्थ्य लगभग चार वर्ष से अच्छा नहीं चल रहा। इसलिए यह अनिश्चितता बनी हुई है। शब्द को ब्रह्म कहा गया है और मैं उसी ब्रह्म की गोद में खेलता हूँ, कविता लिखना मेरा व्यसन है। एक लघु खंड-काव्य " राम का अंतर्द्वंद्व " प्रकाशित हो चुका है।