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Subrat SaurabhAuthor of Kuch Woh Pal‘पेनाल्टी कॉर्नर’ की कहानियाँ झारखंड के औपनिवेशिक शोषण-दमन और उससे उपजी सामाजिक-सांस्कृतिक विसंगतियों-विकृतियों को बेहद बारीकी से रेखांकित करती है। इनसे गुजरते हुए कई बार आँखों में आंसू आ जाते हैं, कई बार अनायास ही मुट्ठियां तन जाती हैं। राहत तब मिलती है जब इनके अनेक पात्र जुल्मों के खिलाफ तन कर खड़े हुए दीखते हैं। सही माने में माटी के दुसह दर्द के गहरे एहसास के बिना ऐसी रचनाएं संभव नहीं होती। झारखंड के जन-जीवन को संदर्भित करने वाली ऐसी रचनाएं और रचनाकार बहुत विरल हैं। हिंदी में तो और भी कम। दरअसल बहुत से रचनाकार यहां की जमीनी हकीकत से जुड़ ही नहीं पाते। संभवतः औपनिवेशिक मानसिकता के अवशेष उन्हें ऐसा होने नहीं देते। ‘पेनाल्टी कॉर्नर’ की कहानियाँ अश्विनी कुमार पंकज को उन रचनाकारों से भिन्न पाँत में खड़ा करती हैं-एक शिखर की तरह, नादीन गोर्डिमर की तरह।
अश्विनी कुमार पंकज
1964 में जन्म. आदिवासी जीवन की कहानियां कहने वाले एक प्रमुख भारतीय स्टोरीटेलर. डॉ. एम. एस. ‘अवधेश’ और स्मृतिशेष कमला के सात संतानों में से एक. 1991 से जिंदगी और सृजन के मोर्चे पर वंदना टेटे के साथ सहभागिता. पिछले पांच दशकों से अभिव्यक्ति के सभी माध्यमों - रंगकर्म, कविता-कहानी, आलोचना, पत्रकारिता, डाक्यूमेंट्री, प्रिंट और वेब में रचनात्मक उपस्थिति. झारखण्ड एवं राजस्थान के आदिवासी समाज पर विशेष कार्य. ‘विदेशिया’, ‘हाका’, ‘जोहार सहिया’, ‘जोहार दिसुम खबर’ और ‘रंगवार्ता’ पत्रिकाओं का प्रकाशन एवं संपादन. ‘इसी सदी के असुर’, ‘अथ दुड़गम असुर हत्या कथा’, ‘आदिवासी प्रेम कहानियाँ’ (कहानी संग्रह), ‘जो मिट्टी की नमी जानते हैं’, ‘खामोशी का अर्थ पराजय नहीं होता’ (कविता संग्रह), ‘युद्ध और प्रेम’, ‘भाषा कर रही है दावा’ (लंबी कविता), ‘एक अराष्ट्रीय वक्तव्य’, ‘आदिवासियत’, 'Adivasidom' (विचार), ‘रंग बिदेसिया’, ‘मरङ गोमके जयपाल सिंह मुंडा’ (जीवनी), ‘माटी माटी अरकाटी’ और ‘खाँटी किकटिया’ (उपन्यास) प्रमुख प्रकाशित पुस्तकें.
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