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"It was a wonderful experience interacting with you and appreciate the way you have planned and executed the whole publication process within the agreed timelines.”
Subrat SaurabhAuthor of Kuch Woh Palयह पुस्तक मेरे द्वारा रचित ५१ कविताओं का संग्रह है। ये कविताएँ समाज के अनेक क्षेत्रों की यात्रा करती हैं। यथा— गरीबी, शिक्षा, पर्यावरण, प्रकृति, अध्यात्मिकता, भक्ति, आशा, इत्यादि। यद्यपि इस पुस्तक को भूमिका की आवश्यकता नहीं है तद्यपि मैं यह लेखन उन लोगों के लिए कर रहा हूँ जो पुस्तक के पूर्व एक ठोस भाव-भूमि की अपेक्षा करते हैं, जिसपर वे सहजता से उतरकर कवि के मानस निर्मित मार्मिक संसार के सौंदर्य का दर्शन करने के निमित्त तैयार हो सकें।
काव्य संग्रह में मेरी कविताएँ 'प्रभात' शीर्षक से प्रकाशित हो रही हैं। 'प्रभात' से मेरी दो अपेक्षाएं हैं जिसके कारण मैंने यह शीर्षक चयनित किया है। प्रथम यह पुस्तक मेरे द्वारा रचित अब तक की समस्त कविताओं का संग्रह स्वरूप है। इस निमित्त यह मेरे कवि जीवन का प्रभात सिद्ध हो।
और दूसरा मनुष्य एक सामाजिक जीव है। वह सामाजिक आधार के बिना अधूरा है। अरस्तु ने कहा था, 'यदि कोई समाज के बिना रह सकता है तो वह या तो देवता है अथवा दैत्य।' प्रत्येक समाज में परिवर्तन की संभावना तो रहती ही है। समाज में जो भी कुरीतियाँ, अनैतिक सिद्धांत, इत्यादि हैं वे सभी हटाए जाने चाहिए। यही कार्य एक कवि का है। अनैतिकता, कुरीतियों, अंधविश्वासों, इत्यादि का उन्मूलन कर सभ्य, सुसंस्कृत, आदर्श समाज की स्थापना हेतु प्रयत्न करना। इन कविताओं में मैंने प्रयत्न किया है कि समाज में व्याप्त कुरीतियों को इंगित करते हुए काव्य के माध्यम से उन्हें हटाने का प्रयत्न करूँ।
ईश्वर कृपा से ‘प्रभात’ भारत के वर्तमान मे प्रभात लाये।
आशा है कि आप को यह काव्य संग्रह 'प्रभात' अत्यंत प्रिय लगेगा।
श्री राघव कृपा
मयूर पाण्डेय
मयूर पाण्डेय
यह पुस्तक मेरे द्वारा रचित ५१ कविताओं का संग्रह है। ये कविताएँ समाज के अनेक क्षेत्रों की यात्रा करती हैं। यथा— गरीबी, शिक्षा, पर्यावरण, प्रकृति, अध्यात्मिकता, भक्ति, आशा, इत्यादि। यद्यपि इस पुस्तक को भूमिका की आवश्यकता नहीं है तद्यपि मैं यह लेखन उन लोगों के लिए कर रहा हूँ जो पुस्तक के पूर्व एक ठोस भाव-भूमि की अपेक्षा करते हैं, जिसपर वे सहजता से उतरकर कवि के मानस निर्मित मार्मिक संसार के सौंदर्य का दर्शन करने के निमित्त तैयार हो सकें।
काव्य संग्रह में मेरी कविताएँ 'प्रभात' शीर्षक से प्रकाशित हो रही हैं। 'प्रभात' से मेरी दो अपेक्षाएं हैं जिसके कारण मैंने यह शीर्षक चयनित किया है। प्रथम यह पुस्तक मेरे द्वारा रचित अब तक की समस्त कविताओं का संग्रह स्वरूप है। इस निमित्त यह मेरे कवि जीवन का प्रभात सिद्ध हो।
और दूसरा मनुष्य एक सामाजिक जीव है। वह सामाजिक आधार के बिना अधूरा है। अरस्तु ने कहा था, 'यदि कोई समाज के बिना रह सकता है तो वह या तो देवता है अथवा दैत्य।' प्रत्येक समाज में परिवर्तन की संभावना तो रहती ही है। समाज में जो भी कुरीतियाँ, अनैतिक सिद्धांत, इत्यादि हैं वे सभी हटाए जाने चाहिए। यही कार्य एक कवि का है। अनैतिकता, कुरीतियों, अंधविश्वासों, इत्यादि का उन्मूलन कर सभ्य, सुसंस्कृत, आदर्श समाज की स्थापना हेतु प्रयत्न करना। इन कविताओं में मैंने प्रयत्न किया है कि समाज में व्याप्त कुरीतियों को इंगित करते हुए काव्य के माध्यम से उन्हें हटाने का प्रयत्न करूँ।
ईश्वर कृपा से ‘प्रभात’ भारत के वर्तमान मे प्रभात लाये।
आशा है कि आप को यह काव्य संग्रह 'प्रभात' अत्यंत प्रिय लगेगा।
श्री राघव कृपा
मयूर पाण्डेय
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