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Subrat SaurabhAuthor of Kuch Woh Palआप “रूह-ए-ख़्वाहिशें” क्यों पढ़ना चाहेंगे?
मेरे पास इसके कई कारण हैं पर मैं साफ़ शब्दों में सिर्फ़ इतना कहूँगी कि इस भागती-दौड़ती दुनिया में हमारे बहुत सारे अपने हैं, हम बहुत सारे लोगों के साथ अलग-अलग रिश्तों में बँधे हैं और हम हर एक रिश्ता बहुत दिल से निभाते हैं, पर इस कश्मकश में हम एक सबसे ख़ास रिश्ता निभाना भूल जाते हैं, और वो है, हमारा ख़ुद का ख़ुद से रिश्ता।
चलते-फिरते जहाँ में कभी-कभी हम ख़ुद को पहचानना भूल जाते हैं,
हम सब की बातें सुनते-सुनते, अपनी कहना भूल जाते हैं,
हम सब की इच्छाएँ पूरी करते-करते, अपनी ख़्वाहिशें भूल जाते हैं,
हम अपनों के लिए जीते-जीते, ख़ुद के लिए जीना भूल जाते हैं,
हम दूसरों के साथ प्यार निभाते-निभाते, ख़ुद की पहचान भूल जाते हैं॥
कुछ अपनी भावनाओं को और कुछ आपकी ख़्वाहिशों को अपनी समझ से अल्फ़ाज़ों का रूप देने की क़ोशिश की है, कविताओं के रूप में ये अल्फ़ाज़ आपके मन को भाएँ, आपको स्वयं से प्रेम सिखाएँ और अपने आस-पास रह रहे हर इन्सान से, यही आशा है।
चाहे अल्फ़ाज़ों को आकार मैंने दिया हो, पर शायद यही हम सबके मन की भाषा है॥
तीन शब्दों में - प्रेम, दर्द और ख़्वाहिशें॥
प्रेम में जो दर्द महसूस होता है वो सौ पहाड़ों के टूट जाने जैसा होता है, जहाँ तड़प होती है पर साथ नहीं, आँखें रोती हैं पर जज़्बात नहीं, हाथ काँपते हैं पर हालात नहीं।
सिर्फ़ एक ख़्वाहिश साथ रहने की, सब पाने की और कुछ कर दिखाने की, आपकी हिम्मत बनती है और आप संसार बदल कर रख देते हो॥
ख़्वाहिशों को अल्फ़ाज़ों में पिरोते हुए,
आपकी अपनी,
“रूह”
रुचिका मैहता
आरंभ से अंत तक, यह हिंदी काव्य संग्रह आपको अपूर्व भावनाओं के रंगीन और हसीन सफ़र पर ले जाएगा। यह आत्मा के गहरे संवादों को सुनहरे शब्दों में प्रस्तुत करता है, जहां भावनाएं सुरों के रूप में बहती हैं॥
इस सफ़र पर आप एक ऐसे इन्सान से मिलेंगे जो प्रेम को अपना सर्वस्व मानती है, रुचिका मैहता, जो इन सुनहरे शब्दों की लेखिका हैं, उनका मानना है कि इन्सान अगर सोच ले और ठान ले तो दुनिया की कोई ताक़त उसका हौंसला नहीं डगमगा सकती॥
“रूह-ए-ख़्वाहिशें” जहां प्रेम, दर्द, वीरता, उमंग, साहस और ख़्वाबों का मंडन होता है, तो शुरू करते हैं अल्फ़ाज़ों में बहना और भावनाओं की कश्ती में सवार होकर एक ऐसे शहर जाना जहाँ आपकी मुलाक़ात ख़ुद से होने वाली है॥
टूटते तारों से दुआएँ माँगने की आदत नहीं मेरी,
मैं वो शख़्स हूँ जो चाँद को भी रोशनी देने का हौंसला रखती है,
मुझे हराने का ख़्वाब भी मत देखना,
मैं वो इन्सान हूँ जो ज़मीं और आसमाँ के आँगन में खेलती है,
मुझे अपने क्रोध और अहंकार की अग्नि से डराने का मत सोचना,
मैं वो हूँ जो सूर्य की किरणों की प्रेरणा बनती है,
मेरी राहों में काँटे बिछाने की क़ोशिश मत करना,
मैं वो हूँ जो अपनी राह का निर्माण ख़ुद करती है॥
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