ज़िन्दगी भर समेटते ही रहे
फिर भी पूरा सामान बिखरा है
झोंपड़ी ने सहेज कर रखा
महलों में ख़ानदान बिखरा है
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ये मोहब्बत की तेज-रौ कश्ती
जिस्म की हद से गुज़र जाएगी
बाँध तोड़ेगा इश्क़ का दरिया
रूह सैलाब में तर जाएगी
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डाल से मैंने कहा चेहरा दिखाए अपना
मुझसे कहने लगी अब तो मैं कटारी में हूँ
ख़्वाब कहता है मुझे ‘