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Subrat SaurabhAuthor of Kuch Woh Palयही दिल करता है प्यारी परवीन जी का जिसे मैंने उनकी रचनाओं में महसूस किया। आज विवाह की 25सवीं वर्षगांठ पर परवीन जी ने अपने व अपने जीवन साथी, वीरेंद्र जी के साथ जो प्यार विश्वास और समर्पण अंकित किया है, वह आदर्श है सभी के लिए कि किस तरह जीवन की गाड़ी भरोसे के पहिए पर चलती है। पति-पत्नी एक दूसरे के पूरक होते हैं। अंगूर के दाने जैसी होती है उनकी ज़िंदगानी और ज़िन्दगी का सिकन्दर तो वही होता है जो उसकी सभी चुनौतियाँ स्वीकार करे व उसे धैर्य, धीरज, धर्म, हरि कृपा व मेहनत से जीवन का हर पल जिये । परवीन जी का प्रत्येक शब्द उनके प्रेमी हृदय का दर्पण है। एक समंदर है जो नेह से लबालब है। जीवन साथी का साथ हमें पूर्णता प्रदान करता है। उसके साथ प्रगाढ़ सम्बन्ध जीवन की नींव को मजबूत बनाते हैं। प्रेम से भीगा मन ज़िन्दगी के सारे सुख - दुःख को साथ ले कर चलने के काबिल बना जाता है। रजत जयंती है परवीन जी,,,, सोने जैसे दिन रहें, चांदी सी हों रातें, मुस्कान के कचनार खिलें, खुशियों के खिलें पलाश, अपनों का आशीष रहे, हरि की कृपा हो अपरम्पार जीवन का मधुबन खिले दिन प्रति दिन बेशुमार शादी की 25वीं वर्षगांठ पर मेरी स्वर्णिम बधाईयां । मनमोहने दंपति । । । ।
नेहा त्रिवेदी
रायपुर छतीसगढ़
प्रवीण कुमारी
प्रायः बचपन से ही मुझे कुछ न कुछ नया करने का शौक रहा है। मैं अपने जीवन में ऐसा महसूस करती हूँ शौक भले ही समय व परिस्थितियों के आधार पर बदलते रहे हैं लेकिन रहे अवश्य हैं। कभी देश-विदेश की टिकटें एकत्रित करना, कभी विभिन्न पौधों के फूल-पत्तियां इकट्ठे कर कर के उनके नाम लिखना कभी टूटी-फूटी चीज़ों को अपने पास एकत्रित करना व कुछ नया बनाना, कभी सिलाई-कढ़ाई, बुनाई इत्यादि के नमूने इकट्ठे करना, कभी ग्रीटिंग कार्ड जमा कर लेने या फिर बाज़ार में प्रचलित आर्ट क्राफ्ट का कुछ भी नया सीखना व सिखाना, उदाहरण के लिए पॉट पेंटिंग, फैब्रिक पेंट, ग्लास पेंट और भी न जाने क्या क्या, अनगिनत। और तो और उत्तर पुस्तिकाओं पर अध्यापकों द्वारा दी गयी शाबाशी की कतरन संभालना कमाल के सकारात्मक पहलू रहे हैं। मेरा जन्म पंजाब के लुधियाना ज़िले में ननिहाल में हुआ लेकिन पालन-पोषण व प्रारंभिक शिक्षा ज़िला जालन्धर के एक ग्राम बिलगा में हुई। मैट्रिक पास करते ही गाँव के नज़दीक पड़ती गाँव की तहसील के महाविद्यालय में प्रवेश पा लिया। वहाँ से स्नातक करने के पश्चात् मैंने बी. एड और फिर राजकीय महाविद्यालय लुधियाना से एम. ए हिंदी की डिग्री प्राप्त कर ली। उन दिनों गणित व विज्ञान का नया नया प्रचलन शुरू हुआ था और माता-पिता भी लडकियों को मेडिकल व नॉन मेडिकल जैसी स्ट्रीम्स में भेजना कुछ हद तक जायज़ समझने लगे थे। यही सोच कर मैंने भी गणित विषय का चयन कर लिया लेकिन गाँव में पंजाबी माध्यम से उठ कर एक दम अंग्रेज़ी माध्यम में यह सब करना मुश्किल लगने लगा। आज की तरह उन दिनों में गाँव में कोई कुछ बताने - समझाने वाला भी नहीं था और न ही आज की तरह इतने साधन थे कि गाँव के बाहर जा कर कहीं अलग से कुछ ट्यूशन इत्यादि ले ली जाए। अतः विषय छोड़ना ही उचित लगा। उन दिनों तो अच्छा नहीं लगा लेकिन आज लगता है कि ईश्वर जो करता है वो अच्छे के लिए ही करता है। आज जीवन में व्यर्थ की गणना कदापि पसन्द नहीं और मेरा यह विषय हिंदी कुछ मेरी पसंद का आभासी प्रतीत होता है। कई बार तो लगता है कि यह मेरे लिए और मैं इस के लिए ही बनी हूँ। अगर व्यर्थ की गणना के अतिरिक्त संवेदनशील ज़िन्दगी व्यतीत करनी हो तो सच में भाषा का विशेष महत्त्व है। और तो और सभी वेद-पुराणों का अध्ययन करने के लिए मुझे हरि द्वारा सुझाए गए इस विषय पर गर्व महसूस होता है। यह तो रही मेरी व मेरी भाषा की बात ।
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