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TALABGAAR / तलबगार

Author Name: Mehak Bhoria | Format: Paperback | Genre : Poetry | Other Details

बिता दी हों सदियाँ हादसों में जिसने,

वो शक़्स किसी ठोकर से नहीं थकता।

मोहब्बत है मुझमें हर सितम भुलाने की,

किसी से रंजिश, नहीं जनाब मैं नहीं रखता।।

ढ़लती शाम से नाराज़गी अच्छी नहीं,

हर पल बदलती ये ज़िंदगी सच्ची नहीं।

है महज़ मज़ाक और तुम ग़मगीन हो,

सब्र करो इमारत ये इतनी कच्ची  नहीं।।

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महक भोरिया

महक भोरिया एक हिन्दी और उर्दू भाषा की लेखिका हैं। ये अपनी लेखन शैली से पढ़ने वालों को काफी प्रभावित करती हैं। इन्होनें कंप्यूटर साइंस में कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से बी. टेक. की है। ये अपने कॉलेज के दिनों में कविता लेखन की ओर प्रभावित हुई थी। एक दिन किसी ने इनकी डायरी पढ़ी, और इन्हें कविता-मंच पर अपनी कविताओं को प्रस्तुत करने का सुझाव दिया। उसके बाद इन्होनें कई मंचो पर प्रस्तुती दी। उसी दौरान इनकी रुचि ग़ज़ल, शायरी और उर्दू सहित्य की ओर बढ़ी और इन्होनें 'राहत इंदोरी' और 'जौन एलिया' को सुनना शुरु किया। इसी तरह इन्होनें फ़िर खुद से सीख कर ग़ज़ल लिखना शुरु किया, और आज इस किताब में सबके सामने प्रस्तुत किया है।

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