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Subrat SaurabhAuthor of Kuch Woh Palइन आँखों के शहर को कभी एक उस शख्स से मिलना सम्भव नहीं था जो इसके भरे से दरिया को जान पाए मतलब मुझे पहचान पाए। वो कहते है न दरिया भी सुख जाती है और हमारे साथ भी ऐसा हुआ एक हसीन सूखे से प्रदेश मे अपनी खूबसूरती से इस समंदर को सोख गयी। असल मे ये पता नहीं था कि ख़ुशी से आगे भी कुछ होता जीने मे, अब मैं जी रहा तो ख़ुशी से भी ज्यादा मतलब मैं तुम्हे जी रहा हूँ।
इतनी आसानी से कह देना भी आसान ही है लेकिन जिस तरह से उस इंसान ने मुझे दिया वो मुझे बेहतर नहीं मेरे जैसा होने का कारण रहा, मैं अक्सर खुद ही से मिलता हूँ उससे बाते कर के।
मुझे इतना तो पता है कि किसी इंसान के तौर पर खुद के जैसा खोजना खुदा खोजने जैसा है, और शायद अब मेरे साथ खुदा ही है।
हम दोनों कुछ नहीं एक पुरानी चिट्ठी की तरह है एक छोटी सी ज़िन्दगी लिए पड़े, पता नहीं किस लिफाफे मे घूम रही हमारी खुशियाँ अभी और कल ज़ब उम्र बढ़ेगी भी तो एक महक होंगी हमारी आजकी।
यह पुस्तक आज उस खूबसूरत बला को एक भेंट है मेरी ओर से जिसमे कुछ ही समय में बहुत कुछ बदला है मुझमें अनजाने में ही पर जान बहत कुछ बदला है इसके लिए मैं उसका हमेशा आभारी रहूंगा।
तुम्हारा जानने वाला
सिद्धार्थ
सिद्धार्थ राज
सिद्धार्थ राज का जन्म 16 अगस्त,1997 को बिहार के जिला वैशाली, गांव हौजपुरा में हुआ था। प्राथमिक शिक्षा - दीक्षा पटना में हुई। मगध विश्वविदयालय से अभी हिन्दी में बी.ए कर रहे है। साहित्य प्रेमी हैं साहित्य पढ़ते हैं और लिखते हैं तथा कविता के संग संग यह गीत तथा कहानियाँ भी लिखते हैं।
वैसे तो किसी भी विषय पर यह रचना कर सकते हैं परंतु इनकी रुचि श्रृंगार रस तथा सामाजिक विषयों में लिखने में अधिक है।
सिद्धार्थ जी लोगों को पहचानने में कभी भूल नहीं करते हैं।
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