अचानक वह चिल्लाई, “मैं अपने ए.पी. को नहीं छोड़ सकती! ए.पी. सिर्फ मेरा है! ए.पी. मेरा है।” मैंने कहा, “यही उससे कहो!” उसने डरते हुए कहा, “नहीं! वह बहुत डरावनी है!” मैंने पूछा, “क्या उसके लंबे–लंबे दांत हैं? क्या उसका चेहरा भयावह है?” उसने कहा, “नहीं! वह खुबसूरत है। लेकिन मुझे उससे डर लग रहा है।” मैंने पूछा, “उम्र कितनी है उस औरत की?” उसने कहा, “25 साल की होगी। वह मुझे ए.पी. को छोड़ने के लिए कह रही है। ए.पी. को बुलाओ। मुझे अपने ए.पी. के पास जाना है।”
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उसके चेहरे के भाव पूरी तरह अजनबी व खतरनाक थे। पता नहीं क्यों मेरी रीढ़ के निचले हिस्से में डर की सिहरन दौड़ने लगी। मैंने खुद को संभाला और उससे पूछा, “क्या हुआ? सु? (मैं उसे सु कहकर पुकारता था।)” वह कुछ इस तरह मुस्कुराई मानो मेरा मजाक उड़ा रही थी। फिर उसने दोस्ती भरे मगर कठोर भाव से कहा, “तुम उसे बचा नहीं पाओगे। मैं सुनीता को बूँद–बूँद कर मार दूँगी। कुछ नहीं कर पाओगे तुम।”
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वह मंगलवार की रात थी। मैं ध्यान लगाकर पद्मासन की मुद्रा में बैठा था। तभी मुझे मेरे आस–पास से पायल की आवाज आने लगी, मानो पायल पहने हुए कोई लड़की या महिला आकर मेरे आस–पास चल रही हो। मैं बिना डरे ध्यान लगाए बैठा रहा। लेकिन कुछ समय पश्चात नूपुर की आवाज मेरे बहुत पास आ गयी, मानो वह मेरे आसन पर चढ़ गयी हो। मतलब वह मेरे बेहद करीब थी। मैं फिर भी उठा नहीं। तभी बंद कमरे में जाने कहाँ से और कैसे हवा का एक झौंका आकर मुझसे लिपटने लगा। हवा का स्पर्श बड़ा ही मस्ती भरा, बड़ा ही मनमोहक था। मैं उसे खुद से दूर करने में असफल रहा।
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