प्रस्तुत किताब "सफ़र ख़ुद से ख़ुद तक " में लेखक ने धार्मिक , सामाजिक , और स्वदेश प्रेम को अपने शब्दों में पिरोने की कोशिश की है और समाज के हर पहलू पर पैनी नज़र रखते हुए कवि ने इस किताब की रचना की है
कवि ने अपने शब्दों के माध्यम से प्रेम को एक नया रूप देने का प्रयास किया है ।
कवि ने समाज की सारी विसंगतियों को समझते हुए बेटियों को प्रोत्साहन देने का प्रयास किया है ।
कवि ने अपने किताब के माध्यम से लोगों से कहा है कि
समाज में व्याप्त सारी व्याधाओं को व्यक्ति स्वयं जन्म देता है और इन व्याधाओं को नष्ट करने में अपना पूरा जीवन व्यर्थ कर देता है।
कवि ने जीवन, प्रकृति, एवम्ं , देव-प्रेम, समाज के प्रती प्रेम, विद्रोह को अपने लेखनी से शब्दों में संजोया है , इस किताब में शब्दों के सौन्दर्य से समाज में व्याप्त बाधाओं का वर्णन किया गया है।
कवि ने अपने विचारों को कलम के जरिए कोरे कागज पर दर्शाया है,सियाही को शब्दो के ज़ारिये सजा कर वास्तविकता को देखते हुए "सफ़र ख़ुद से ख़ुद तक" किताब का निर्माण किया है।