'मेरी कव्य संग्रह "शव्द मुखर हो उठे" आपके हाथों में देते हुए मुझे अपार हर्ष की अनुभूति हो रही है। यथार्थ एवं कल्पना के चित्र के साथ देखे, सुने, भोगे, हुए पल जब मेरे दिलो-दिमाग में भाव-मंथन करने लगा तो उस भव-उर से जो शव्द मुखर हुऐ, कविता का सृजन हुआ। तत्पश्चात मैंने अपने भाव पुष्प को आप सुधीजनों के समक्ष प्रस्तुत करने का साहस बटोरा है।