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"It was a wonderful experience interacting with you and appreciate the way you have planned and executed the whole publication process within the agreed timelines.”
Subrat SaurabhAuthor of Kuch Woh Palमैने ये किताब अपना सपना पूरा करने के लिए लिखी है क्योकि मुझे लगता था क्या मै कभी लेखिका बनूंगी | ये सपना रोहित जी के कारण ही संभव हुआ है | क्योकि अगर ये ना होते तो किताब पर गौर नही करती मै रोहित जी ने ही बढावा दिया है मै कर सकती हूं और बेहतर लिख सकती हूं पूर्णत: सक्षम तो नही हूं बस थोड़ा प्रयास है |
समाज तक खुद के विचारो को पहुचाने का और थोड़ा खुद का रुतबा बनाने का की मुझे लोग जाने मेरे नाम से और काम से जिम्मेदारियों के साथ खुद के लिए कुछ करने की डगर पर हूं मुश्किलों तो बहुत आती है शादी शुदा जीवन मे और साथ मे बच्चा और परिवार मगर मै कोशिश करती रहती हूं बस आगे बढ़ना है जीवन मे कठिनायों से लड़कर ..!
हर बार सवाल खड़े हो जाते है हमारे नारी जीवन मे अच्छी भली जिंदगी मे तूफान आ जाते है पवित्र नारी पर भी अपवित्रा का दाग लगा देते है | उसकी आंखो मे कभी झाकं कर ही ना देखा की सच क्या है |
बस उसे गुनेहगार ठहरा देते है वो करती भी तो क्या अकेली पड़ जाती सबके सवालो के सामने उसे कोई अपना दिखता ही जो उसे समझे और उसकी पीड़ा को महसूस करे |
मगर एक औरत को आज तक कोई समझे ऐसी सोच बहुत कम के लोग मिलते है क्योकि एक नारी जिम्मेदारियों मे उलझी होती है ना वो खुद पर ध्यान दे पाती है और ना उस पर कोई ध्यान देता है बस ऐसे ही जीवन व्यतीत हो जाता है |
मगर मेरा मानना है भले ही कोई भी ना सोचे एक नारी के लिए पहला कदम उसे खुद ही लेना होगा जिम्मेदारियां पूरे जीवन चलेगी तो साथ साथ खुद पर भी गौर करे अपने हुनर को पहचाने और उसे निखारे कठिनाइयां बहुत आयेगी मगर हार ना माने अपने लिए बस एक पहला कदम जरूर उठाएं फिर खुद ब खुद आप मे हिम्मत आएंगी
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ज्योति संजीव
मै ज्योति दिल्ली की निवासी मेरा जन्म हरियाणा मे गांव फिरोजपुर बांगर मे हुआं था मेरे पिताजी का नाम श्री मदन सिंह और माता का नाम श्रीमती निर्मला देवी है |
स्नातक तक की शिक्षा ली गई है और मै एक गृहणी के साथ एक मां हूं और शुरू से ही मुझे नई नई चीज़ो मे रूचि है मगर लिखने का शोक तो नही कहूंगी बस स्नातक वक्त से ही खुद की बातो को लिखा करती थी बस ऐसे ही लिखा करती थी डायरी शादी के 5 साल बाद मैने दो पंक्तियों से शुरूआत की बस तब से थोड़ा थोड़ा लिखने की कोशिश करती हूं पूर्णत: बेहतर नही हूं बस कोशिश करती हूं |
अपने विचारो को कलम द्वारा उकेरने का थोड़ा प्रयास है बस ,
समाज मे अपनी एक छाप ऐसी हो की जो लोग आम गृहणी को बोल देते है तुम करा करती हो घर रहकर खाली रहती हो बस हर बार सभी बोल देते है वही चीज को थोड़ा समाज मे कम कर पाने का प्रयास है ! मेरी जिम्मेदारियों के साथ बहुत हिम्मत के साथ यहां तक पहुंची हूं निराशा तो बहुत बार हासिल होती है मुझे मगर मै टूट कर भी खड़े होने का जज्बा रखती हूं अपने सपनो को पूरा करने के लिए बहुत संघर्ष करना होता है मै एक साधारण मध्यम वर्गीय औरत जो खुद के लिए कुछ करने पर उठे सवालो से लड़कर आगे बढ़ना पड़ता है बस मै यही हूं और मुझमे कुछ खास नही |
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