जन्म हुआ तब क्या लाया था,और क्या तू लेकर जायेगा।
इस माँटी से ही पैदा होकर, और माँटी में मिल जायेगा॥
पल पल जीव सोचता ऐसे, अब सुख साधन घर लाएगा।
पर जो सुख माँटी में मिलता है, उसे कहाँ वह पाएगा॥
धन्य धरा जो जीवन देती, उसमें ही विलीन हो जाएगा।
कहें प्रभाकर, कैसे और कब उसका कर्ज चुकाएगा।
उपरिक्त पंक्तियाँ पूरे जीवन का सार प्रकट कर देतीं हैं। जब भी जीव, धारा रूपी माँ की गोद में अवतरित होता है तो सर्व प्रथम उसका परिचय इसी धरा रूपी माँ से होता है। माँ के गर्भ से जब जीव बाहर आता है तो अत्यंत ही छोटे रूप में आता है और धरती का स्पर्श पाकर वायु पान करके तुरंत उसका आकार बड़ जाता है। उसके बाद ही जब उसकी आंखे खुलतीं हैं तो वह माया रूपी संसार से परिचित हो पाता है।