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Subrat SaurabhAuthor of Kuch Woh Palपुस्तक आत्मकथा (पार्ट-II) में लेखक ने आत्मकथा पार्ट-1 के बाद दिनांक 01.01.1989 से लेकर डीएसपी दिनांक 02.07.2008 बनने तथा डीएसपी पद पर आरूढ होने दिनांक 01.08.2088 तक का विवरण चित्रित किया है। लेखक ने पुस्तक में निरीक्षक पद की पदस्थापनाओं का तथा उस समय के जीवन्त मार्मिक आयामों का चित्रण किया है। इस बीच की अदालती कार्यवाहियों का विवरण इस पुस्तक में किया है। पुस्तक में तत्समय की भयंकर दस्यु समस्या में अपनी सहभागिता कर चम्बल घाटी को डकैतों से मुक्त कराने में अमिट सहयोग दिया उसका भी विवरण लिखा है।
एड० डॉ० रणधीर सिंह रूहल पीएमजी
ठिकाना गाॅव रौण्डा जिला बुलन्दशहर उत्तर प्रदेश में स्व0 श्री होराम सिंह के यहाॅं दिनांक 10 जून 1957 को जन्म हुआ। प्रारंभिक शिक्षा गाॅव में हुई। किसान आदर्श इण्टर कालेज रौण्डा जिला बुलन्दशहर से इण्टर की परीक्षा उत्तीर्ण कीे तथा जिला हैडक्वाटर बुलन्दशहर से डी0ए0वी0 स्नातकोत्तर महाविद्यालय से कला स्नातक होकर ग्वालियर में लक्ष्मीबाई नेशनल काॅलेज आॅफ फिजीकल एजूकेशन ग्वालियर में बी0पी0ई0 की शिक्षा लेना प्रारंभ कर दिया। वर्ष 1978 में एन0एस0 नेशनल इंस्टीट्यूट आफ स्पोर्ट पटियाला (ंपंजाब) में सर्टीफिकेट इन स्पोर्ट इन ‘‘जूडो’’ का डिप्लोमा पूर्ण किया, साथ ही स्नातक होंने से एन0आई0एस0 पटियाला में रैग्यूलर ‘‘जूडो’’ में प्रवेश लेने हेतु फार्म डाला तो उसमें लाइन क्लीयर हो गयी। उधर पुलिस उप-निरीक्षक में सलैक्सन हो गया। फिर सोचने की घडी आई तो पढाई बीच में ही छोडकर पुलिस एकेडमी सागर में प्रशिक्षण में शामिल हो गया। नौकरी में, खास तौर से पुलिस में रहते हुए शिक्षा ग्रहण करना दुरुह कार्य है फिर भी हमने एम0ए0 (राजनीति विज्ञान), एलएल0बी0 तथा पीएच0डी0 की उपाधि जीवाजी विश्वविद्यालय ग्वालियर से नौकरी में प्राप्त की।
हमारे जीवन में तथ्यपरक, प्रमाणिक और कटु सत्यों से ओतप्रोत अनेक प्रसंग आए तथा एक पुलिस अधिकारी के रुप में हमें अनेक ऐसे अनुभव हुए जो साहस, शौर्यपूर्ण तथा रोमांचक थे। पुलिस में अपनी डियूटी के उच्चतम आयाम स्थापित कर महामहिम राष्ट्रपति से स्वीकृत ‘‘वीरता के लिए पुलिस पदक’’ प्राप्त किया। पहला प्रमोशन ‘‘आउट आॅफ टर्न’’ प्राप्त किया और पुलिस विभाग में वीरता दिखाने वालों के लिए एक नया उत्साही आयाम का मार्ग प्रशस्त कर दिया। निरीक्षक स्तर पर भी बडे-बडे थानों के प्रभारी बनाया गया और करीब 36 थानों का सफल संचालन करते हुए दस्यु उन्मूलन में विशेष महारथ हासिल की।
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