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Subrat SaurabhAuthor of Kuch Woh Palइस पुस्तक में मेरे विचार कविता के रूप में मूल रूप से शब्दों के रूप लिखे गए हैं। मेरे लिए ये केवल विचार नहीं हैं, बल्कि अपने आस-पास की चीजों को देखते हुए एक-एक पल का अनुभव हैं। कुछ कविताओं को लिखने के बाद जब मैं उन्हें दोबारा पढ़ता हूं तो मुझे लगता हैं कि ये विचार मेरे कैसे हो सकते हैं क्योंकि यह मुझे एक गहरी सोच प्रदान करते हैं। मुझे पता हैं कि यह अजीब लगता हैं कि एक लेखक खुद पर कैसे संदेह कर सकता हैं पर ये सत्य हैं । कई कविताएँ तो ऐसी हैं जिनका शुरुआती विचार मुझे स्कूल से घर आते वक्त हुआ जिनको कविता का रूप घर आकर दिया । जब मैंने कविताओं को सोशल मीडिया पर डालना शुरू किया तो मैं बड़ा ही उत्तेजित था कि कई लोग मुझे कुछ न कुछ बेकार या अच्छा कहेंगे, पर हुआ बिलकुल ही उलटा उम्मीद टूटी पर मैंने अपने उपर कोई असर नकारात्मक असर नहीं होने दिया मुझे ये तो आभास होने लगा था की सब स्केप कर देंगे होंगे फिर जब जांच करी तो पता चला जो गिने चुने लोग पढ़ते भी थे तो उन्हें लगता था की ये सब मैं नहीं लिखता कही और से कॉपी करता हूं मुझे उन्हें विश्वास दिलाना पड़ता था की ये सब मेरी ही रचनायें हैं ।अपनी कविता खत्म करने के बाद मेरी आशा यही रहती हैं की कोई ये कविता पढ़े तो उसे भी वही सारे अनुभव और विचार आएं जो मुझे कविता लिखते वक्त आए थे ।
मुझे व्यक्तिगत तौर पर ऐसा लगता हैं की मेरे ऐसे विचार या कहो कवितायेँ ऐसी इसीलिए हैं क्योंकि मेरे संस्कार कुछ इस प्रकार से संस्कारित हुए हैं उनमें मिश्रण पाया जाता हैं जैसे की आचार्य प्रशांत,संत कबीर,संगीत वादक प्रह्लाद सिंह टिपानि,या भगत सिंह,सुभाष चंद्र बोस,लेखक विक्रम सिंह,अंत में इतना जरूर कहूंगा की लिखा हुआ एक एक शब्द,एक एक पंक्ति,मेरे हृदय के बहुत करीब है।
देव शर्मा
मेरा अपना परिचय देने में थोड़ा असमंजस सा महसूस करता हूं क्योंकि मेरे पास अन्य लेखकों की तरह कुछ सतही रूप में प्राप्त नहीं किया हैंपरन्तु ऐसी श्रेणी में मात्र इतना हैं की दसवीं कक्षा में ९९ अंक के साथ अपना विद्यालय (दुर्गावती हेमराज ताह सरस्वती विद्या मंदिर नेहरू नगर, ग़ाज़ियाबाद)हिंदी में टॉप किया था और और परन्तु मुझसे कक्षा १२ में हिंदी विषय पढ़ने का मौका छूट गया और मैं विज्ञान के विषयों तक ही सीमित रह गया। अगर सभी विषयों को देखें तो न ही मेरे पास हिंदी के शब्द हैं पर इतने जरूर हैं की अपनी बात कहने का प्रयास कर सकूँ ।
--देव शर्मा (गोविंद)
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