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Subrat SaurabhAuthor of Kuch Woh Palसरदार जोध सिंह की कहानी असाधारण कहानी है, उनकी कहानी कामियाबी की गजब की कहानी है। उनकी कहानी में विभाजन की त्रासदी है, विस्थापित का दर्द है, शरणार्थी की पीड़ा है, अचानक रातोंरात सब कुछ खोने का दुःख है, फिर से सब कुछ पाने की कोशिश में किया हुआ संघर्ष है, संघर्ष से सफलता है, सफलता भी कोई मामूली सफलता नहीं, ऐतिहासिक सफलता है। इस बात में दो राय नहीं कि सरदार जोध सिंह की कहानी हर पीढ़ी के लोगों को प्रेरणा देने का दमखम रखती है। उनकी व्यक्तित्वा के एक नहीं बल्कि कई पहलू बेहद दिलचस्प हैं। उन्हें पढ़ाई-लिखाई नहीं आती थी, लेकिन कारोबारी हिसाब-किताब के महारथी थे। कभी स्कूल नहीं गए, लेकिन कई सारी शिक्षा संस्थाओं को बनाने में अहम भूमिका निभाई। सिख सरदार थे, पंजाबी थे, लेकिन बंगाल में अपना आशियाना और कारोबार जमाया। आजादी के समय भारत के विभाजन ही नहीं बल्कि इंदिरा गाँधी की हत्या के बाद भड़के दंगों को देखा, सहा। वे कारोबारी तो थे ही, लेकिन उससे बड़े एक समाज-सेवी और परोपकारी इंसान भी थे। उनके घर जो भी आया वह खाली हाथ कभी नहीं गया। सरदार जोध सिंह के घर से निराश होकर कोई नहीं लौटा।
डॉ. अरविंद यादव, धीरज सार्थक
डॉ. अरविंद यादव
अरविंद यादव पत्रकार हैं। पिछले 23 सालों से पत्रकारिता के धर्म को बखूबी निभा रहे हैं। बतौर पत्रकार उन्होंने बहुत कुछ देखा, सुना और अनुभव किया है। बहुत कहा है और बहुत लिखा भी है। लेखनी के जरिये असत्य, अन्याय, भ्रष्टाचार के खिलाफ उनकी लड़ाई जारी है। समाज में दबे-कुचले लोगों के लिए संघर्ष ने उन्हें पत्रकारों की फौज में अलग पहचान दिलाई है। पिछले दो-तीन सालों से उनका ज्यादा ध्यान ऐसे लोगों के बारे में कहानियाँ/लेख लिखने पर है जो देश-समाज में सकारात्मक क्रांति लाने में जुटे हैं। कामयाब लोगों के जीवन से जुड़े अलग-अलग पहलुओं को जानना और उन्हें लोगों के सामने लाने की कोशिश करना अब इनकी पहली पसंद है। वे देश में हो रहे अच्छे कार्यों को जन-जन तक पहुँचाने के पक्षधर हैं। प्रेरणादायक व्यक्तित्वों से जुड़ी कहानियों को किताबों की शक्ल भी दे चुके हैं। अरविंद साहित्यकार भी हैं। साहित्यिक कहानियाँ भी लिखते हैं। आलोचना में भी उनकी गहन दिलचस्पी है। हैदराबाद में जन्में और वहीं पले-बढ़े अरविंद ने विज्ञान, मनोविज्ञान और कानून का भी अध्ययन किया। वे दक्षिण भारत की राजनीति और संस्कृति के बड़े जानकार हैं। खबरों और कहानियों की खोज में कई गाँवों और शहरों का दौरा कर चुके हैं। यात्राओं का दौर थमने वाला भी नहीं है। एक पत्रकार के रूप में स्थापित, चर्चित और प्रसिद्ध हो चुके अरविंद अब एक कहानीकार और जीवनीकार के रूप में भी ख्याति पा रहे हैं।
धीरज सार्थक
प्रतिबद्ध साहित्य, सिनेमा और समाजसेवी धीरज सार्थक मीडिया-जगत का जाना माना व्यक्तित्व हैं। धीरज सार्थक करीब 23 वर्षों से साहित्य, सिनेमा और मीडिया विशेषज्ञ के तौर पर लेखन, शिक्षण व व्यवस्थापन में रत रहे हैं। साहित्य के विद्यार्थी होने के नाते धीरज का प्रत्येक विधाओं विशेष तौर पर कला-जगत, साक्षात्कार, यात्रा-वृतांत व डॉक्यूमेंटरी फिल्मों मे विशेषज्ञता रही है। इसके साथ ही कॉमर्शियल फिल्मों में अच्छी पकड़ बनाई है। निर्देशन और पटकथा-लेखन में इनकी खास समझ है। समसामयिक मुद्दों के भीतर-बाहर सिनेमा में भी बहुत बारीकी से पकड़ते हैं। राँग वे, अपराजिता जैसी कॉमर्शियल फिल्मों का इन्होंने सफल निर्देशन किया है। डॉक्यूमेंटरी फिल्मों में इनकी खास समझ पर्यावरण और उससे परेशान जीवन से जुड़ी है। “सुंदरवन” व “बिट्वीन द ट्रीस” डॉक्यूमेंटरी फिल्में देश और दुनिया के कई हिस्सों में दिखाई और भरपूर सराही गई हैं। इसके लिए सम्मान व पुरस्कार मिल चुके हैं। लेखन इनकी सिर्फ जरूरत नहीं, जज्बा है। इनकी कलम सदैव कलात्मकता और रचनात्मकता से भरपूर देश और दुनिया की फिक्र करती रही है। इनकी शीघ्र प्रकाशित पुस्तकों में है—साहित्य, समाज और सिनेमा (प्रकाशनाधीन) और डॉक्यूमेटरी फिल्मों का सरोकार(प्रकाशनाधीन)
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