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"It was a wonderful experience interacting with you and appreciate the way you have planned and executed the whole publication process within the agreed timelines.”
Subrat SaurabhAuthor of Kuch Woh Palबज़्म-ए-नसीम फराह नसीम साहिबा की कुछ चुनिंदा नज़्मों का मजमुआ है। इस किताब से आप का गहरा ताल्लुक इसलिए भी है क्योंकि इसमें शामिल बहुत सी नज़्म आप के वालिद मोहतरम की हयात में आप ने लिखी है।आप के वालिद मोहतरम ने जब आप की नज़्म फेसबुक पे पढ़ी तो आप हैरान थे के आप की मेहनत वाकई में रंग लाई है।आप ने फराह नसीम साहिबा की वालिदा से फरमाया के बेहतरीन नज़्म लिखी है बेटी ने....कुछ नज़्म वतन परस्ती पे है जो लहू में जोश मारती है।नज़्म जैसे "आ कर नहीं गए" आप ने अपने वालिद के लिए लिखी थी, कुछ नज़्म वालिदा के लिए भी लिखी है जो आप की अगली किताब में ज़माने से रु ब रु होंगी। "तलाश कर ज़मी आसमान से बाहर" बहुत बेहतरीन नज़्म है जिसमें तहरीक करने की सलाहियत है। इसके एक एक अल्फाज़ ज़ेहन में कुछ कर गुज़रने का होंसला पैदा करते है।"तुम कौन हो मेरे" एक सवाल की शक्ल में नज़्म है। जो जज़्बात के हिसार में वज्द करती रहती है।"आरज़ू और जुनून" ज़िंदगी की लतादाद चाहतों और सर पे सवार जुनून की एक तस्वीर खेंचती नज़्म है।
"इज्ज़त करों मानो खुदा का अहसान" उस खालिके इलाही के एहसान याद दिलाती है जो हमा वक्त हम नफरमानों पर अपनी करम नवाज़ी बनाएं हुए है।
"निखारा जाएं" नज़्म इंसानियत को आम करने की तर्ग़ीब देती है।"ज़िंदा है आदमी" नज़्म आप ने जब तुर्की में ज़लज़ला आया था तब लिखी थी।इस किताब की खास बात है इस में मोहब्बत, दर्द, शफकत सब कुछ है जो इसे एक मुख्तलिफ किताब बना देती है।।
फराह नसीम
फराह नसीम साहिबा का ताल्लुक़ झीलों के शहर भोपाल से है। आप की नज़्म, अलग अलग पहलुओं से रु बा रु कराती कविताएं और कहानियां दस्तक प्रभात और हरियाणा प्रदीप जैसे अखबारों में अपने रंग बिखेरती है।
आप की पैदाइश भोपाल में हुई और तालीम जबलपुर शहर में मुकम्मल हुई। पेशे से आप ने बतौर माइक्रोबायोलॉजिस्ट मेडिकल से जुड़े दर्सगाह और फार्मा कंपनी में अपनी ख़िदमत सरंजाम दीं है लेकिन आप की कलम ने आप का साथ न छोड़ा। आप के वालिद मरहूम नसीम उद्दीन साहब ने आप को हर इल्म से रु–ब–रु कराया। आप ही का खासा है जो मोहतरमा हर शोबे में कामयाब रहीं। आप के वालिद उर्दू पढ़ने का खास एहतमाम करते थे।आप ने बचपन से ही उनमें उर्दू, अरबी, हिन्दी और अंग्रज़ी का बीज बो दिया था। जो आज एक पुर फरहत दरख़्त में तब्दील हो गया है। बचपन में वालिद साहब की लाई हुई किताब से पहली बार आप काबिले एहतराम शक्सियत मिर्ज़ा गालिब साहब की लिखी ग़ज़ल से इतनी मुतासिर हुई कि फिर आप ने बहुत से शेर का जवाब खुद ही लिखा और वालिद साहब को भी सुनाया।आप के वालिद एक सरकारी मुलाज़िम थे वो बहुत थके होने के बावजूद भी बड़ी दिलचस्पी से आप को सुना करते थे। पिछले कुछ साल से आप मुसलसल लिखने का एहतमाम कर रही है। इंशाल्लाह आगे भी उनका ये सफर यूं ही जारी रहेगा।
कुछ नज़्मों का गुलदस्ता इस किताब में पेश करने की कोशिश कर रही है। उम्मीद है पढ़ने वाले को पसंद आएंगी। आप का इंस्टाग्राम आईडी farah_lyric है और आप को Your Quote और Writco app पे भी पढ़ा जा सकता है।
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