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Subrat SaurabhAuthor of Kuch Woh Palआज जब चारो और नजर उठा कर देखते है तो हमे आशा से अधिक निराशा से भरी दुनिया नजर आती है, विशेष तौर पर हमारा युवा वर्ग। इस के पीछे एक दूसरे से आगे निकल जाने की हौड़, वर्तमान युग का परिवेश एवं हमारी परवरिश जिम्मेदार है। निराशा के हर पहलू में मानव की ईश्वर प्रदत्त क्षमताओं की विस्मृति नजर आती है। हम जो है और जो हो सकते है, यदि उसके बीच की दूरी का आंकलन करें तो हम हैरान होंगे कि ये दूरी शायद पृथ्वी से सूरज की दूरी से भी ज्यादा है
डॉ. मुकेश अग्रवाल
मुकेश अग्रवाल व्यवसाय से डॉक्टर है किंतु उनका हिंदी प्रेम अविस्मरणीय अविस्मरणीय है हिंदी भाषा व संस्कृति प्रेम उनकी जीवन दृष्टि को उन्नत करता है प्रस्तुत काव्य संग्रह 'भोर की ओर' में संकलित कविताएं निराश थके हारे मानव को एक उत्साह और उमंग से भरे आशापूर्ण संसार में ले जाती है यही जिजीविषा उनकी कविताओं का प्राण है जीवन में सकारात्मक रहने का संदेश उनकी हर कविताओं को प्राणवान बनाता है एक अद्भुत उत्साह और उमंग से भरा युवा कवि मुकेश अग्रवाल संस्कृति के उज्जवल मोतियों का संचय कर मानव मात्र की पीड़ा को दूर करने हेतु उत्सुक है ‘अकेला हूं मैं’ कविता में उनका कथन इसी बात का साक्षी है। कमल पुष्प की तरह अब मुझको रहना है संसार में, सबके साथ रहते हुए भी अकेला खुद में होना है, यही जीवन में सुख का आधार भी है और विडंबना भी ! यही विरोधाभास है जीवन का ! कविताओं में जीवन की नश्वरता का ज्ञान मानव को अभिमान छोड़ने को प्रेरित करता है 'हार को भी हराएगा' जैसी कविताएं युवा पीढ़ी को संघर्ष करने की प्रेरणा देती है वहीं अर्जुन भी कृष्ण भी कविताओं में कायरता और संकल्प के द्वंद्व को चित्रित किया गया है ‘हर एक में एक अर्जुन छिपा, छिपा एक कृष्ण भी’ कवि का मानवतावादी दृष्टिकोण ‘अब बारी देने की’ कविताओं में व्यक्त हुआ है ‘कोई ना रहे भूखा यहां’ पर ‘बिन छत के ना सोए कोई’ ‘रोजगार हो हर व्यक्ति के पास’ चहुंओर खुशहाली छाई।
संक्षेप में मुकेश अग्रवाल जी की रचनाएं संस्कृति के जीवन प्रवाह को चित्रित करती हुई मूर्त रूप ग्रहण करती है नए काव्य संग्रह के प्रकाशन पर उन्हें बहुत-बहुत बधाई और शुभकामनाएं
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