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Subrat SaurabhAuthor of Kuch Woh Palलघु कथा वह सूत्र है जो जीवन की विकटतम परिस्थितियों /समस्याओं से जूझने का हल बताती हैं। आज की वर्तमान भागमभाग भरी जिंदगी को इन्हीं सूत्रों की आवश्यकता है ।संभवतः इसी आवश्यकता ने लघुकथा को जन्म दिया और इसे पाठकों ने इस कदर पालित पोषित किया कि आज यह अपने अपूर्व यौवन काल को प्राप्त हो गई है ।मेरी पहली लघु कथा "पागल" शीर्षक से 90 के दशक में दैनिक नव भारत में प्रकाशित हुई थी ।यह सिलसिला शनै: शनै :कहानियों के साथ-साथ बढ़ता गया ।हर काम का काल निर्धारण ऊपर वाले के हाथ में ही होता है। करीब चार-पांच वर्ष पूर्व से इन लघु कथाओं की पांडुलिपियां फाइल में कैद फड़फड़ा रही थी ,किंतु आज उनके पुस्तक रूप में आने का वक्त आ गया है।
90 के दशक से सृजित इन लघु कथाओं में समय परिवर्तन की पूर्वोत्तर, उत्तरोत्तर धड़कन भी सुनाई देंगी। मैं समझती हूं, लघुकथा का काम केवल सूत्र संकेत करना होना चाहिए। पाठकों को स्वयं सूत्र लगाकर समस्या का समाधान करने के लिए जागरूक करने का काम करती है लघुकथा ।
मेरे लघुकथा संग्रह "चाँटे" की लघु कथाएं ऐसे ही मन को आंदोलित करेंगी। मेरा विश्वास है ।कहां तक सफल हुई हूं ,यह तो आप प्रबुद्ध पाठक वर्ग को ही बताना है। आपकी प्रतिक्रिया का विनम्रता पूर्वक हमेशा स्वागत रहेगा ।
डॉ सुधा जगदीश गुप्त
मध्यप्रदेश की पावन माटी पर 4 जुलाई 1954 को कटनी शहर में जन्मी डॉ सुधा गुप्ता 'अमृता' बहुआयामी व्यक्तित्व की धनी प्रख्यात बालसाहित्यकार हैं। मध्यप्रदेश शिक्षा विभाग में कार्यरत रहते हुए उन्होंने अपना संपूर्ण जीवन शिक्षा और विधार्थियों के लिए समर्पित कर दिया। अपने शैक्षिक सेवाकाल में रहते हुए उन्होंने अनेक नई नई शैक्षिक गतिविधियां शुरू की। गीत, कहानी, नाटक, चित्र, पॉकेट बोर्ड एवं प्रकृति के सान्निध्य में जुड़कर सीखने की गतिविधियां उनकी शिक्षा जगत में बेहद चर्चित रहीं। यही कारण है कि उन्हें जिला, संभाग, प्रदेश एवं राष्ट्रीय स्तर पर शिक्षा विभाग द्वारा सम्मानित किया गया। सन 2015 में उन्हें महामहिम राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के कर कमलों द्वारा विज्ञान भवन दिल्ली में राष्ट्रपति सम्मान देकर पुरस्कृत किया गया। सेवाकाल में ही उनकी एक बहुचर्चित बाल गीतों की पुस्तक "ताकि बची रहे हरियाली" 2008 में प्रकाशित हुई जो सम्पूर्ण शिक्षा जगत एवं बाल साहित्य जगत में चर्चित हुई।
हिंदी के प्रति अगाध प्रेम और जुड़ाव के कारण ही सुधा जी ने हिंदी साहित्य में MA किया और अपने शोध कार्य का विषय: "स्वातंत्र्योत्तर बालकविता का अनुशीलन-मध्यप्रदेश के विशेष सन्दर्भ में " चुन कर रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय जबलपुर से सन 2014 में पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। उनकी लगन मेहनत और संघर्ष की परिणीति उनके शोध ग्रंथ "राष्ट्रीय फलक पर स्वातंत्र्योत्तर बाल कविता का अनुशीलन-मध्यप्रदेश के विशेष सन्दर्भ में" के रूप में हुई।
डॉ सुधा गुप्ता 'अमृता' जी की अब तक करीब 15 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। यद्यपि बड़ों एवं बच्चों दोनों के लिए उनका लेखन है किन्तु बाल साहित्य में उनका मन अब पूरी तरह समर्पित हो चूका है। बाल साहित्य की हर विधा में उनकी गहरी पैठ है। डॉ सुधा गुप्ता 'अमृता' जी के अनुसार बाल साहित्य की अनूठी परिभाषा दी गई है-"बाल साहित्य ही वह जीवन घुट्टी है जो बाल मन को पुष्ट कर उसे जीवन देने की कला सिखाता हुआ समस्याओं से जूझ कर निकल आने की कला सिखाता है।"
":बाल गीत , मध्यप्रदेश की बोलियों में बाल काव्य " शीर्षक से संकलन सुधा जी के सम्पादन में आदिवासी लोक कला एवं बोली विकास अकेडमी मध्यप्रदेश संस्कृति परिषद् भोपाल द्वारा प्रकाशित है।
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