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Galon Par Ek Til / गालों पर एक तिल उपन्यास

Author Name: Rekha Rani | Format: Paperback | Genre : Literature & Fiction | Other Details

यह एक रोमांटिक उपन्यास है। यह  कहानी   इसकी चुलबुली नायिका के इर्द-गिर्द घूमती है।  जिसे आस-पास हो रहे गलत बातों से बड़ी शिकायत है।  एक गलतफहमी की वजह से  उसकी मुलाकात उपन्यास के नायक से होती है। वह बेहद शरारती  है। वह लड़कियों के साथ होने वाली छेड़छाड़ और अन्य गलत बातों का  विरोध करती रहती है। उसे लगता है उपन्यास का नायक ऐसे गलत हरकतों करने वाले में से एक है। वह चंचल है , पर बेहद समझदार है। वह अक्सर समझदारी से बहुत सी समस्याओं को चुटकियों में सुलझाती रहती है।  वह भविष्य में इंजीनियर बनना चाहती है। उसने मेहनत से अपना यह सपना साकार भी होता है। यह उपन्यास  लड़कियों के सपने देखने और उन्हें  पूरा करने के बीच के जद्दोजहद पर आधारित है। यह कहानी अशिक्षा और बेटे- बेटियों के बीच के भेदभाव के नतीजों को दिखलाती है। यह कहानी  एक ऐसे परिवार के बारे में है। जो बेटियों और बेटों में भेदभाव नहीं करता। उनकी  ज़हींन बेटियां उन का गर्व है। लेकिन उनका संयुक्त परिवार इससे सहमत नहीं है। उनके संयुक्त परिवार के कुछ सदस्य आज के समय में भी घर के जायदाद में बेटियों को हकदार नहीं मानते हैं। मेरे इस उपन्यास के जन्म की कथा मेरी अन्य रचनाअों से अलग है। इस उपन्यास को लिखने के लिए जेहन में पहले से कोई प्लान  नहीं था। मैंने एक धारावाहिक उपन्यास प्रतियोगिता  का आमंत्रण देखकर  इसे लिखना शुरू किया। थोड़ी कहानी लिखने के बाद  इसके पात्र  मुझे वास्तविक लगने लगे। लगा जैसे वे मुझसे बातें कर रहे हैं।  क्योंकि वे सब जिंदगी की किसी न किसी  सच्ची घटना से जुड़े हुए थे। इसलिए इसे मैं आगे लिखती चली गई।  प्रतियोगिता संचालकों से कोई उत्तर न मिलने पर इसे मैंने उपन्यास के रूप में पब्लिश करने का निर्णय लिया।

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रेखा

मैं मनोविज्ञान में पीएचडी, एचआर में पीजीडीएम, बच्चों की मनोवैज्ञानिक काउंसिलर और एक लेखिका हूँ। मुझे नर्सरी से एमबीए तक के छात्रों को पढ़ाने और उनके साथ समय बिताने का सुअवसर मिला है। नन्हें बच्चों से ले कर स्नातकोत्तर तक के छात्रों को पढ़ाने के दौरान मैंनें बहुत कुछ पढ़ा और लिखा। मेरी शादी कम वयस में हो गई थी। शादी के बाद मैंने अपनी पढ़ाई पूरी की। उस दौरान महिलाओं और बच्चों की समस्याओं की ओर ध्यान गया और उनकी बातों में मेरी रुचि में बढ़ गई। यह मेरे लेखन में भी झलकता है। इससे रचनात्मक लेखन में मेरी रुचि अनजाने में, अवचेतन रूप से हुई। वर्षों पहले, पोस्ट ग्रेजुएट साइकोलॉजी के लिए स्टडी मटीरीयल, कुछ आध्यात्मिक और मनोवैज्ञानिक लेख लिखने के बाद मुझे एहसास हुआ कि मुझे लिखना कितना पसंद है। इससे मुझे ताज़गी और ख़ुशी मिलती है। मेरे लेखन यात्रा में मेरा मनोविज्ञान थीसिस, बाल मनोविज्ञान पर आधारित लेख व कहानियाँ, कविताएँ, अन्य कहानियाँ, आध्यात्मिक लेख, पोस्ट ग्रेजुएट मनोविज्ञान की पुस्तकें, अनुवाद आदि शामिल हैं। जब मुझे ब्लॉग की दुनिया मिली, तब मुझे महसूस हुआ, मेरे सामने लेखन के लिये खुला, अंनंत आकाश है। यहाँ मेरे लेखन को बहुत प्रोत्साहन मिला और उसमें लिखने तारतम्यता आई। मेरी यह जीती-जागती पुस्तक लेखन के प्रति मेरे प्यार और लगाव का साकार रूप है।

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