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Ka se Kavita / क से कविता kavita sangrah

Author Name: Pranesh Kumar | Format: Paperback | Genre : Poetry | Other Details

इस संग्रह की कविताएं कवि की प्रारंभिक कविताएं हैं। कविताएं उस समय की, जब कवि कविता का ककहरा सीखने के साथ जीवन की जद्दोजहद में जीना भी सीख रहा था । यह वह समय था जब कवि को समाज की विसंगतियां परेशान करती थीं। विषमता के विरुद्ध लड़ना चाहता था कवि, लेकिन अपने आप को असमर्थ पाता था। किसी आत्मीय को खोकर उदास हो जाता था और किसी के प्रति हृदय में कोमल भावनाओं का संचार होता था। भूख, गरीबी, बेरोजगारी से भरे जीवन में लेखन एक संबल बनकर उपस्थित हो जाता था। घोर निराशा के क्षणों में कविता अंदर का उजास बन जाती थी।  यह वह दौर था जब एक वैचारिक आस्था कवि के अंदर विकसित होने लगी थी।  करुणा ,प्रेम और मनुष्यता से भरे मनुष्यों की घटती आबादी से कवि चिंतित हो जाता था । कवि विस्थापन के दर्द को भी महसूस कर रहा था । स्थितियों  को ना बदल पाने की निराशा भी उसके अंतर्मन तक समाई हुई थी। उसका किशोर मन इस बात से आश्वस्त होता था कि इस विपरीत परिस्थितियों में भी बहुत सारे लोग हैं जो उसके हमक़दम हैं।संग्रह की कविताएं इन्हीं भावों-विचारों के समानांतर चलती हैं और अपने अविकल स्वरूप में भी पाठकों को बांधे रखने में सक्षम हैं।

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प्राणेश कुमार

इस संग्रह के रचनाकार प्राणेश कुमार का जन्म गोला, रामगढ़, झारखंड में 1955 को हुआ। प्रारंभ से ही ये लेखन और संपादन से जुड़े रहे। इनका पहला कविता संग्रह 1988 में प्रकाशित हुआ।विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं के संपादक से जुड़ने के बाद उन्होंने दस वर्षों से भी अधिक समय तक प्रसिद्ध साहित्यिक पत्रिका 'युद्धरत आम आदमी' का संपादन किया।इनकी लिखी विभिन्न विधाओं की दस से अधिक पुस्तकों का अबतक प्रकाशन हो चुका है और ग्यारह पुस्तकों का इन्होंने संपादन भी किया है। देश की प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में इनकी रचनाएं लगातार प्रकाशित होती रहती हैं । उनकी रचनाओं का विभिन्न  भाषाओं में अनुवाद भी हो चुका है। राजकीय सेवा से सेवानिवृत्त प्राणेश कुमार विभिन्न साहित्यिक एवं सामाजिक संगठनों से जुड़े रहे हैं और संप्रति अपने पैतृक निवास गोला में रहकर स्वतंत्र लेखन कर रहे है।

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