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Subrat SaurabhAuthor of Kuch Woh Palकिसी भी जज़्बात या मौज़ू को जब एक मक़सूस तरीके से स्याहिबंध किया जाए कि उसे आप पढ़ भी सके और गा भी सके तो उसे एक ग़ज़ल की शक्ल मिल जाती है।
एक ख्याल या फिर कई मुक्तलिफ़ ख्याल जब एक कलाम में बांध जाए और उसमें एक तरह से बेहेर का भी इस्तेमाल हो तो आप उसे ग़ज़ल कह सकते हैं। हालांकि ये बात भी आम है कि ग़ज़लों की दुनिया में आए दिन नए नए ईजाद होते रहते हैं। बेहेर की साथ और ख़ास कर ख्यालों के अमेज़े के साथ नए नए तजुर्बे होते ही रहते हैं।
मैं कोई बड़ा शायर तो नहीं पर यूँ ही लिखता हूँ और ये एक कोशिश ही आप कह लीजिये जिसकी वजह से मैं आपके सामने कुछ अपनी ग़ज़लें पेश करने की हिमाक़त कर रहा हूँ।
तभी मैं आपका बहुत बहुत शुक्रगुज़ार हूँ कि आपने इन्हे पढ़ने का इंतेखाब किया है।
ग़ज़लों के उन्वान नहीं होते, ये महज़ ख्यालों के गुलदस्ते हैं। मगर हाँ, मतला, अशार और मक़्ता, ये ग़ज़ल के मुक्तलिफ़ हिस्से हैं। हर ग़ज़ल के मक़्ते में आपको मेरा तखल्लुस "ज़लज़ला" नज़र आएगा। हर शेर को मतले के साथ (ग़ज़ल के पहले शेर के साथ) पढ़ा जा सकता हैं।
मुझे ये भी उम्मीद हैं की पढ़नेवालों में कोई तो ऐसे भी हुनरमंद मौसिक़ होंगे जो कुछ ग़ज़लों को धुनबंध करने का भी नायाब हुनर रखते होंगे। मेरी उनसे गुज़ारिश हैं, कि वो Instagram पर मुझसे राब्ता करें @zalzala_kalyan पर। मुझे बेहद मुसर्रत होगी।
ज़लज़ला
www.noellorenz.com
ज़ल ज़ला
वैसे तो ज़लज़ला एक ऐसे इंसान है बिलकुल आप और मेरी तरह जो अपनी रोज़-मर्रा की ज़रूरतों के खातिर बदस्तूर जद्दोजहद करता है। एक कुनबा है जिसमे कि वो अपनी बीवी अपनी बेटी और अपने प्यारे डूडल के साथ रहते हैं। इंजीनियर है और टेलीकॉम कि दुनिया में ही अपना ज़्यादा से ज़्यादा वक़्त बिताते है। हर इंजीनियर की तरह शायरी और लिखने का चस्का उनको कॉलेज में ही लग चूका था। जब वो १९९८ में अपने कॉलेज में थे तो काफी लिखा करते थे मगर उनका कहना है कि वो सब लिखावट एक फितूर के इलावा कुछ भी नहीं था।
ज़लज़ला इसी तरह से आगे बढ़ रहे हैं और आप सबकी दुआओं अपने साथ समेट कर चल रहे हैं।
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