You cannot edit this Postr after publishing. Are you sure you want to Publish?
Experience reading like never before
Sign in to continue reading.
Discover and read thousands of books from independent authors across India
Visit the bookstore"It was a wonderful experience interacting with you and appreciate the way you have planned and executed the whole publication process within the agreed timelines.”
Subrat SaurabhAuthor of Kuch Woh Palसम्मुख सब सीमित यहाँ , देख सके न कोय
असीम को ढूँढत फिरू , जो भीतर ही होय।
इस पुस्तक में मैंने कई बाते ऐसी कहीं हैं जो मेरी पीढ़ी के लोग ज्यादा बेहतर तरीके से समझेंगे। मैं विषयों में ज्यादा अंदर नहीं गया हूँ क्योंकि मैंने कोशिश की हैं आसान भाषा में अपनी बात आप लोगो तक पंहुचा सकू। हर पूर्णविराम जहाँ खत्म होता हैं वहां से अगर आप खुद विचार करेंगे तो उस पूर्णविराम लगाने का लक्ष्य पूरा हो जायेगा क्योंकि मात्र वो कुछ पंक्ति का विराम तो होगा परन्तु वहां से आपकी सोच की शुरुआत होगी। मेरी ऐसी कोई अपेक्षा नहीं हैं की इन कुछ पन्नो को पढ़ने के बाद किसी का विचार करने का तरीका बदल जायेगा परन्तु बस इतना चाहता हूँ की आप अपने से प्रश्न करना सीख जाए। एक बार विचार जरूर करें की ख़ुशी और आनंद में क्या भेद हैं। मेरी इस रचना को पढ़ने के बाद अगर कोई तनिक सा भी प्रभावित हो जाए और अपने से विचार करने लगे तो मेरा इतना सोच कर लिखना सफल हो जायेगा। मैं लिखने को तो एक पुस्तक को ही हजारो पन्नो की बना दू परन्तु उसमे उतनी गहराई और उसको पढ़ने का उत्साह धीरे धीरे समाप्त हो जायेगा। मेरा मानना तो इतना हैं की किताब की मोटाई नहीं गहराई महत्वपूर्ण हैं ठीक वैसे ही जैसे मेरे लिए आप नहीं आपकी की सोच महत्वपूर्ण हैं। और अंत में तो यही कहूंगा पुस्तक को ऐसे ही पढ़ें जैसे आपने ही लिखी हो। मुझमे आपमें कोई अंतर नहीं होना चाहिए क्योंकि लिखा हुआ एक एक शब्द आपका हैं , मैं तो बस माध्यम हूँ आपकी बात आप तक पहुंचाने के लिए।
धन्यवाद
~ देव शर्मा
देव शर्मा ( गोविन्द )
मैं एक 18 वर्षीय कॉलेज का छात्र हूँ। जो एक साधारण और छोटे परिवार का हिस्सा हैं । विद्यालय का एक औसत अंक वाला छात्र होते हुए , मैंने अपने मेरठ मंडल में निबंध लेखन प्रतियोगिता में प्रथम स्थान प्राप्त किया था। और दसवीं कक्षा में हिंदी विषय में सबसे अधिक अंक वाला छात्र भी में ही हूँ। अगर खेलकूद की बात करें तो मैं अपने विद्यालय की तरफ से वॉलीबाल और नेटबॉल में अपने राज्य उत्तर प्रदेश का प्रतिनिधि रहा हूँ।
मेरा जीवन का एक ही लक्ष्य हैं , अपने देश को अपनी तरफ से ज्यादा से ज्यादा कुछ दे सकूँ। मेरे लिए मेरा देश मात्र एक रेखांकित सीमा नहीं वल्कि एक संस्कृति हैं जिसको मेरे साथी यानि इस देश के युवा शायद भूलते जा रहे हैं। मैं तो बस उन्हें उनके असली स्वरुप याद दिलाने की कोशिश कर रहा हूँ जिसमे भारत की संस्कृति एक अहम भूमिका निभाती हैं।
विश्व एक शरीर हैं तो भारत उसकी आत्मा , मैं तो आत्मा को आत्मा की और ले जाने की कोशिश में हूँ।
एक 18 वर्षीय लड़का
- देव शर्मा ( गोविन्द )
The items in your Cart will be deleted, click ok to proceed.