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Subrat SaurabhAuthor of Kuch Woh Palइस संग्रह की कहानियां तत्कालीन समाज के सरोकारों से जुड़ी हुई हैं और अपने समय को प्रतिबिंबित करती हैं। अधिकांश कहानियां सामाजिक घेरे को तोड़ते हुए नवीन संदेश देती प्रतीत होती हैं।
ये कहानियां अपने समय में प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हैं लेकिन अपने काल में इन कहानियों का संग्रह के रूप में प्रकाशन नहीं हो पाया इसलिए इन कहानियों का मूल्यांकन भी उस रूप में नहीं हो पाया जिस रूप में होना चाहिए था । वर्तमान में इसका प्रकाशन शोधार्थियों और कहानी पर काम कर रहे लोगों के लिए उपयोगी होगा। अवध नारायण प्रसाद एक सिद्धहस्त कहानीकार और शब्दचित्र लेखक के अलावा बहुत ही प्रतिष्ठित संपादक- पत्रकार भी थे। इन्होंने वर्षों 'छोटानागपुर दर्पण' जैसे साप्ताहिक पत्र का संपादन भी किया । पत्रकारिता पर शोध कर रहे शोधार्थियों के लिए भी यह संग्रह काफी उपयोगी सिद्ध होगा क्योंकि इस संग्रह के माध्यम से अवध बाबू को एक लेखक के रूप में समझने में सहायता मिलेगी।
अवध नारायण प्रसाद
वर्तमान परिवेश में जबकि जीवन में मूल्यों का ह्रास हो रहा है, ईमानदारी और अनुशासन महत्वहीन हो गए हैं, स्वार्थ ने समाज में महत्वपूर्ण जगह बना ली है -अवध बाबू को स्मरण करना महत्व रखता है । अवध बाबू ने -जिनका पूरा नाम अवध नारायण प्रसाद था- आजीवन मूल्यों को महत्व दिया और ईमानदारी की मिसाल बने रहे। इनका जीवन संघर्षों से भरा रहा और संघर्ष ने ही इन्हें तपाकर कुंदन किया । इनके पिता बाबू रामानुग्रह प्रसाद गोला के रजिस्ट्री ऑफिस में हेड क्लर्क थे । चैत्र दशमी को अवध बाबू का जन्म गोला में ही हुआ, तिथि 13 मई 1917 । प्रारंभिक शिक्षा गोला में ही हुई तत्पश्चात हजारीबाग जिला स्कूल से उन्होंने मैट्रिक पास किया । ये बहुत ही मेधावी छात्र रहे , खेलों में भी इनकी रूचि बहुत अधिक थी और एक अच्छे स्काउट के रूप में इन्हें तैराकी तथा एथलेटिक्स में स्काउट बैच भी प्राप्त हुआ था।
एक स्वतंत्रता सेनानी के साथ-साथ अवध बाबू एक लब्ध प्रतिष्ठित कहानीकार तथा पत्रकार भी थे। इनकी कहानियां उस समय की महत्वपूर्ण साहित्यिक पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती थीं, जिनमें प्रमुख पत्रिकाएं थीं - 'चांद" "नई कहानियां" " रसीली कहानियां" आदि । इनकी कहानियों में स्त्री समस्या, सामाजिक एकता, सांप्रदायिक सौहार्द तथा अन्य सामाजिक समस्याएं प्रमुख विषय हुआ करते थे ।अपने लेखन के माध्यम से इन्होंने हिंदी साहित्य की महत्वपूर्ण सेवा की । इनकी कहानियों तथा शब्दचित्रों की भाषा का लालित्य देखते ही बनता है । एक पत्रकार के रूप में अवध बाबू को भुलाया नहीं जा सकता। हजारीबाग से "छोटा नागपुर दर्पण " नामक साप्ताहिक प्रकाशित होता था। इस साप्ताहिक का संपादन अवध बाबू किया करते थे।यह साप्ताहिक बिहार के पत्रकारिता जगत में महत्वपूर्ण स्थान रखता था और छोटा नागपुर सहित पूरे बिहार राज्य में इसे बहुत ही प्रतिष्ठा प्राप्त थी । इस साप्ताहिक में उस समय के महत्वपूर्ण रचनाकारों की रचनाएं प्रकाशित हुआ करती थीं। 1953 से लगातार 1962 तक और पुनः 1967 से 1971 तक इस साप्ताहिक का संपादन अवध बाबू ने किया, बाद में कतिपय कारणों से साप्ताहिक का प्रकाशन बंद हो गया । इस साप्ताहिक के माध्यम से अवध बाबू ने बिहार में पत्रकारिता को गति दी तथा कई नए लेखकों को प्रकाशित कर उन्हें उभरने का मौका दिया। झारखंड- बिहार के पत्रकारिता तथा साहित्य का उल्लेख इनके बिना पूरा नहीं हो सकता। 1954 में प्रसिद्ध साहित्यकार रामवृक्ष बेनीपुरी ने उनके बारे में लिखा था "मैं बार-बार सोचने को विवश होता रहा ,यदि इस प्रतिभा को उचित प्रोत्साहन मिले तो क्या करने में सक्षम हो।"
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