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Subrat SaurabhAuthor of Kuch Woh Palआपके साथ-साथ ये दुनिया ओ जन्नत ओ जहन्नुम तक सुनेंगे ;
यहाँ आप ग़ज़ल के साथ-साथ मेरे दिल का तरन्नुम तक सुनेंगे ।
ख़ुदा की आँखों से अश्के छलक जाए, यहाँ पर कसमें हैं ऐसी ;
जो जज़्बातों के सड़कों से गुज़रती है, यहाँ पर नज़्मे हैं ऐसी ।
जो ज़िंदगी को रौशन कर दे, वो चमक आपके इंतज़ार में है ;
आसमाँ में किसे तालाश रहे हैं, ऐसा नूर अपने अश'आर में है ।
अपने मुख़्तलिफ़ अंदाज़ ओ लहजे में, सबको कुछ बतला रही है ;
दीवान की गोद में देखो तो कैसे, शरारती शायरियाँ इठला रही है ।
ज़माना ख़ुद पे ख़ुद बदल जाएगा, बस तबदीली की जुस्तजू कर के तो देखिए ;
क़िस्मत आपके क़दमों में होगी, सिर्फ़ 'माणिक' से गुफ़्तगू कर के तो देखिए ।
मयंक 'माणिक'
मयंक ‘माणिक’ का असल नाम मयंक जैन है। ‘माणिक’ इनका तख़ल्लुस है जो इन्होंने अपने परम पुज्य प्रिय दादाजी श्री माणिक चंद्र छाबड़ा के नाम पर रखा है। ये अपने दादा जी से बेइंतेहा मोहब्बत करते थे। उनका स्वर्गवास सन् 2015 में हो गया था। इनके प्रिय दादू श्री विजय कुमार जैन छाबड़ा ने अपने मुख़्तलिफ़ अंदाज़ में सदैव इन्हें स्नेह प्रदान किया जिसके कारण वश इन्हें नकारात्मक विचारों का स्पर्श नहीं हो पाता। मयंक ‘माणिक’ जी की पैदाइश बिहार प्रांत के गया ज़िले में हुई है। श्रीमान मनोज कुमार जैन और श्रीमती निरंजनी जैन की गोद में 25 अगस्त 2000 को मयंक ‘माणिक’ जी की पहली किलकारी गूंजी । इनकी अनुजा मानसी जैन ने शायरी लिखने के लिए इनकी काफ़ी हौसलाअफ़ज़ाई की है। इनके गुरू श्री राजेश रंजन सहाय ने इन्हें वो शब्द वरदान दिया, जिसके बदौलत आज ये वही शब्द अपने जज़्बातों में पिरोकर ग़ज़लों के लिबास बुनते हैं। इनके प्यारे बड़ेपापा श्री अनिल कुमार जैन ने भी इनकी ज़िंदगी में एक एहम भूमिका अदा की है। यूँ तो इन्हें बचपन से ही शायरी का इश्तियाक़ था मगर शायरियों को काग़ज़ में लिखने की युक्ति इन्हें इनके ज्येष्ठ भ्राता श्री अमन जैन ने दी। तब जाकर इनकी शायरी ने यशी पाई और इनके अल्फाज़ ओ लहजे में धार बढ़ गई। परवरदीगार की इमदाद, समस्त परिवार के आशीर्वाद और अपनी फ़नकारी की तादाद, इनके संगम से जनाब-ए-'माणिक' दुनिया को सुख़न का हसीन तोहफ़ा बाँटते चले आ रहे हैं।
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