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Maha Prayan / महाप्रयाण Jagadguru Shankaracharya / जगद्गुरु शंकराचार्य

Author Name: Pt. Janardan Rai Nagar | Format: Hardcover | Genre : Religion & Spirituality | Other Details

पण्डित जनार्दन राय नागर द्वारा जगद्गुरु शंकराचार्य पर सृजित महा उपन्यास की अन्तिम कड़ी है- ‘‘महाप्रयाण’’। यह दसवां उपन्यास जगद्गुरु की सम्पूर्ण जीवन यात्रा एवं उससे भारत के सांस्कृतिक जीवन पर होने वाले प्रभावों का दिग्दर्शन करवाता है। उन्होंने धर्म के नाम पर चलने वाले आडम्बरों के विरूद्ध वातावरण का निर्माण कर मानवता के शाश्वत मूल्यों की स्थापना का सशक्त प्रयास किया। परिणाम स्वरूप धर्म के आभ्यन्तर में पलने वाली विसंगतियों को दूर करने की ओर समाज प्रवृत्त हुआ।

इस वृहत् उपन्यास के इस अन्तिम भाग में उपन्यास की चरमतम परिणति है- जगद्गुरु की शिष्य मण्डली की विशुद्ध, पवित्र अश्रुप्रवाह की अनकही वाणी में। इसमें रोमांच है, पीड़ा है, वेदना है। इसमें विदेह हुए देही को भी पल भर के लिए देह भान कराने वाली अमर कहानी है। स्पष्ट हो जाता है कि वेदान्त क्या है?- ज्ञान की व्याख्या है, विचार एवं संशयों का शमन है, प्रश्नहीन अनुभूति है किन्तु वेदान्त अभिमन्त्रण नहीं है। हां, यह स्पष्ट है कि भव सहन करते हुए ब्रह्म को आत्मसात करना ही धर्म है।

यह उपन्यास शंकर के जीवन की अन्तिम यात्रा है, अन्तिम सोपान है। शास्त्रार्थ थम गये हैं, वाक्युद्ध मौन हो चुके हैं। वेदान्त दर्शन का पुनर्बलन है। शंकर का चरित्र भारतीयता का द्योतक है। कुल मिला कर मानवता की दिव्यता की झांकी प्रस्तुत की है। यह सत्य है कि आज के दौड़ते हुए समाज के पास चिन्तन का समय नहीं है, आध्यात्म गन्तव्य ही नहीं रहा। किन्तु समय आयेगा जब आध्यात्म पुनः प्रतिष्ठित होगा।

संक्षेप में, यह उपन्यास मनुष्य में कूटस्थ परमात्म तत्व का प्रस्फुटन है- कोई एषणा नहीं, कोई स्वार्थ नहीं। शंकर का सजल, सरल, सरस आर्द्र हृदय केवल एक ही शिव संकल्प से पूरित है- ‘‘अर्पित हो मेरा मनुज कार्य बहुजन हिताय, बहुजन सुखाय।’’

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पं. जनार्दन राय नागर

पं. जनार्दन राय नागर का जन्म उदयपुर में 16 जून, 1911 ई. को हुआ। बहुआयामी प्रतिभा के धनी पं. नागर ने शिक्षा, साहित्य, पत्रकारिता, राजनीति व समाज सेवा आदि क्षेत्रों में अपनी अमिट कीर्ति स्थापित की। गाँधीवादी संस्कारों से दीक्षित व कथा सम्राट प्रेमचन्द्र के आशीष पात्र रहे जनार्दन राय नागर ने मेवाड़ में शिक्षा के प्रसार के उद्देश्य से 1937 में हिन्दी विद्यापीठ की स्थापना रात्रिकालीन संस्थान के रूप में की। पं. नागर की सतत् तपस्या के परिणाम स्वरूप इस संस्था की  उत्तरोत्तर प्रगति हुई वर्तमान में जनार्दन राय नागर राजस्थान विद्यापीठ विश्वविद्यालय, उदयपुर रूपी वटवृक्ष के रूप में स्थापित है।

शिक्षा की लोक साधना में लीन जनार्दनराय नागर की ऐकान्तिक साधना साहित्य-सृजन के रूप में निरन्तर गतिमान रही। उन्होंने उपन्यास, कहानी, गद्य-गीत, जीवन चरित्र व काव्य विधाओं में लेखन किया। उनके द्वारा रचित ‘जगद्गुरू शंकराचार्य’ जो कि 5,500 पृष्ठों में समाहित  दस उपन्यासों की श्रृंखला है, यह हिन्दी साहित्य की अमूल्य धरोहर है। उनके ‘राम-राज्य’  के पांच उपन्यास प्रकाशित हो चुके है। चार गद्य-गीत संग्रह, नागर की कहानियां शीर्षक से दो कथा संग्रह प्रकाशित हुए हैं। उनके नाटक ‘आचार्य चाणक्य’, पतित का स्वर्ग’, ‘ऊदा हत्यारा’, ‘जीवन का सत्य’, अत्यन्त चर्चित रहे तथा मंचित भी हुए।

पत्रकारिता के क्षेत्र में पं. नागर ने अनेक पत्र-पत्रिकाओं की स्थापना, संपादन व संचालन में योगक्षेम निर्वहन किया। ‘मुधमती’, ‘स्वर मंगला’, ‘नखलिस्तान’, ‘बालहित’, ‘कल्कि’, समाज शिक्षण’, ‘शोध पत्रिका’, ‘वसुन्धरा’, ‘जन-मंगल’, ‘जन सन्देश’ व ‘अरावली’ आदि पत्रिकाएं उनकी कीर्ति पताकाएं हैं।

राजस्थान साहित्य अकादमी के संस्थापक अध्यक्ष के रूप में उन्होंने राज्य में साहित्यिक उन्नयन व मार्गदर्शन में महत्वपूर्ण भूमिका निर्वाह की। वे केन्द्रीय साहित्य अकादमी, हिन्दी सलाहकार समिति (रेल्वे), केन्द्रीय प्रौढ़ शिक्षा सलाहकार समिति आदि के मनोनीत सदस्य रहे। विधानसभा में मावली क्षेत्र से विधायक रहे। उन्हें ‘नेहरू साक्षरता पुरस्कार’ व ‘महाराणा मेवाड़ फाउण्डेशन पुरस्कार’ सहित अनेक सम्मान प्राप्त हुए। इस यशस्वी व्यक्तित्व का 15 अगस्त, 1997 को उदयपुर में निधन हुआ।

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