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Subrat SaurabhAuthor of Kuch Woh Palअब तक दम्पतियों/काम शास्त्रियों की सांेच यही है कि साइकिल दो पहियो पर खड़ी नहीं हो सकती, वह दौड़ेगी कैसे? अर्थात सम्भोग में एक आर्गेज्म के लाले पड़े हैं, मल्टी आर्गेज्म कैसे होंगे? लेखक कहते है कि जिस प्रकार संतुलन की तकनीक सीख लेने मात्र से साइकिल दो पहियों पर दौड़ती है, उसी प्रकार सम्भोग, तकनीक सीख लेने पर मल्टी आर्गेज्म की प्राप्ति साईकिल चलाने से अधिक सरल है।
लेखक दम्पत्ति को सात वर्षाें तक कभी-कभी एक आर्गेज्म की अनुभूति होती थी। अचानक एक रात विशिष्ट परिस्थितियों मंे एक घटना ऐसी घटती है कि एक सम्भोग सत्र में पत्नी ने 11 आर्गेज्म पाये। तब से आज तक नित्य रात सम्भोग तब खत्म होता है, जब पत्नी कहती है बस! अब शरीर में ताकत नहीं। तब तक 25-50-70 आर्गेज्म हो गये। इस खोज की तकनीक पति द्वारा पत्नी को पहले आर्गेज्म से आगे निकाल ले जाने की है। एक घटना वैज्ञानिक खोज कैसे बनी, इसका विश्लेषण किया गया है। मल्टी आर्गेज्म का ग्राफिक चित्रण किया गया है। वर्णित तथ्यों के सत्यापन की दृष्टि से प्रश्नोत्तरी संलग्न है।
वह घटना अंधे के हाथ बटेर नही थी, बल्कि एक वैज्ञानिक सत्य था। भौतिक विज्ञान की तकनीेके हैं, शरीर विज्ञान के सिद्धान्त है, दार्शिनिक मूल्य हैं। जिन्हंे लेखक दम्पति ने विकसित किये। इस विस्मयकारी घटना के बाद, विश्व काम शास्त्रियों को पढ़ने, समझने के बाद, डाकटर मित्रों की राय के बाद, निष्कर्ष यह निकला कि विश्व में सम्भोग विषय पर अब तक कोई सिद्धांत या किसी तकनीक की खोज नहीं हुई। अतः विश्व अभी सम्भोगमें मल्टी आर्गेज्म से अपरिचित है। ओशा सहित कुछ काम शास्त्री सहमत तो हैं, किन्तु नित्य प्रति ऐसा हो, तो कैसे हो? इसकी कोई वैज्ञानिक तकनीक एवं दर्शनिक सिद्धान्त उनके पास नहीं है। अतः लेखक दम्पत्ति इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि यह सेक्स जगत की बहुत बड़ी खोज है। इसका प्रकाशन आवश्यक हैं। इसीलिये ओशो को समर्पित यह पुस्तक आपके हाथ में है।
श्री सिंह, श्रीमती सिंह
श्री एवं श्रीमती सिंह का जन्म 1955 एवं 1953 में गाँव में हुआ। इनका विवाह 18 एवं 16 वर्ष की आयु में 1974 मे हुआ।
1975 के आपात काल में श्री सिंह जेल चले गये।
1980 में गाँव से शहर आकर रहने लगे।
1990 में बिहार में न्यायाधीश बने। अभी अवकाश प्राप्त न्यायाधीश है। आर्ट आफ लिविंग के प्रशिक्षक हैं। दोनो विधिशास्त्री, समाजशास्त्री, एवं शिक्षा शास्त्री है। जीव विज्ञान-रसायन विज्ञान से स्नातक है। 13 जुलाई, 1981 की रात अचानक यह खोज हो गयी। तब से दोनो अखण्ड दाम्पत्य जीवन एवं मल्टी आर्गेज्मिक सम्भोग सुख के अनवरत यात्री हंै। इस खोज ने उनके जीवन मे तूफान तब खड़ा कर दिया, जब विश्व कामशास्त्रियों के हवाले से पता चला कि ऐसा मल्टी आर्गेज्म अभी तक सम्भोग मे दुर्लभ है। जब कि लेखक दम्पत्ति उस रात के बाद से आज तक उन्हीं तकनीक और सिद्धातों पर चलकर असीमित सम्भोग सुख के आनन्द में है। वे चाहते हैं कि उनकी तरह सभी दम्पत्ति मल्टी आर्गेज्मिक असीमित सम्भोग का असीमित सुख पायें। पुस्तक रूप में यह उनका आर्शीवाद है। सुहागरात पर लेखक द्वय का उपहार है। विश्व कामशास्त्र का गहन अध्ययन किया। लेखक के 15 वर्ष खोजे गये तथ्यों के सत्यापन में बीत गये। 1996 में यह मल्टी आगे्रज्मिक सम्भोग शोध तैयार हो गया।
शर्म वश प्रकाशन का विचार नहीं था। ईश्वर से अभी जीवन दान मिला, आई0सी0यू0 में प्रेरणा हुयी कि जीवन के दिन गिने छुपे हैं। इस खोज का प्रकाशन हो जाये, अन्यथा यह अनमोल खोज व्यर्थ हो जायेगी। विश्व काम शास्त्रियों एवं दम्पतियों की सहमति या असहमति नही मिल पायेगी। अतः प्रकाशन का निर्णय लिया, ताकि खोज का मूल्यांकन हो। सभी की विशेष कर नारी जगत की सहमति या असहमति की मुहर लगे। इसी आशय से पुस्तक के अन्त में प्रश्नोत्तरी संलग्न है।
लेखक दम्पत्ति चरित्रवान, सात्विक प्रकृति के आध्यात्मिक व्यक्ति हैं। उन्हें विश्वास है कि समस्त दम्पति इस ज्ञान से लाभान्वित होंगे। शर्त है कि पत्नी का प्रस्ताव हो, पति बेडरूम को सेक्स की प्रयोगशाला बनाये। सच में बेडरूम प्रयोगशाला ही है, पत्नी उपकरण है, पति को वैज्ञानिक बनने भर की देर है। तकनीक-सिद्धांत आपके हाथ में है। कश्तूरी पति-पत्नी के भीतर है। खोज अपने भीतर करें। सभी के साथ मल्टी आर्गेज्म घटेगा।
लेखक दम्पत्ति के साथ एक रात जो घटा, उससे कामशास्त्र के विश्वकीर्तिमान धराशायी हो गये। सम्भो की नई तकनीकें एवं सिद्धान्त विकसित हुुये, जो प्रत्येक सम्भोग सत्र मे पत्नी को शून्य से एक आर्गेज्म से मल्टी आर्गेज्मिक अवस्था तक ले जाने की गारण्टी करते हैं। यह तकनीक वैज्ञानिक है, विज्ञान के नियमों सिद्धान्तों पर आधारित है। सरल सहज एवं समझने योग्य है। संकलित नहीं है, अनुभव जन्य ज्ञान पर आधारित है।
लेखक दम्पति का दावा है कि पत्नी को मल्टी आर्गेज्म तक पहुँचाने की यह तकनीक एक ऐसी खोज है, जिसमें सम्भोग के क्षणों में पत्नी पर प्रथम आर्गेज्म के बाद व्तहंेउ ओर्गास्म बिगेट्स ओर्गास्म का सिद्धान्त लागू हो जाता है, फिर वह स्वतः आर्गेज्म की श्रंखला की ओर बढ़ जाती है। प्रत्येक आर्गेज्म पति को रूकने, संतुलित होने एवं स्खलन रोक लेने का अवसर प्रदान करता है। प्रीमचयोर इजैकुलेसन की समस्या खत्म हो जाती है। सम्भोग की अवधि पत्नी की इच्छा पर होती है कि उसका शरीर कितने आर्गेज्म तक चलने की सामथ्र्य रखता है। पति के स्खलन पर अर्ध विराम लगने से उसका शरीर यन्त्रवत काम करता है।
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