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Subrat SaurabhAuthor of Kuch Woh Palगुड्डन अपने लकवा ग्रसित पति को लेकर नर्मदा पल्ले-पार बरेली से बस मे बैठ गईं, साथ मे दस साल और बारह साल के दो बच्चे भी थे ! बस मे भीड़ ऐसी की अंदर ठई मची थी सब पसीने से लथपथ, यह समझना मुश्किल था की ये शरीर भिगोता पसीना अपना है या किसी दूसरे के शरीर से निकला
पर गुड्डन को इन छोटी मोटी बातो से मतलब नही था उसका लक्ष तो सिर्फ महुआ के झाड़ तक पहुंचना था बहुत उम्मीदें बँधी थी उसकी महुआ से |
मुन्ना घर का बड़ा बेटा था सो घर की जिम्मेदारियाँ भी सिर पर ले चूका था परिस्थियाँ कहाँ सोचने का मौका देती है की वह सिर्फ बारह साल का नन्हा बालक ही तो है, पर वो बड़ा है मतलब बड़ा है बात ख़त्म
विनोद पाराशर
दोस्तों के साथ बिताये दिनों को, तो कुछ जीवन में मिले अनुभवों को कहानियों में ढाल दिया करता हूँ। क्योकि छोटू आज भी रोज कहानियाँ सुनता है और में भी सुनाता चला जाता हूँ पर अब वह बड़ा हो चला है सो कहानियों का स्तर भी बड़ा हो चला तो ये कहानी संग्रह इसमें चौदह कहानियाँ हैं जिसे पढ़कर हर पाठक को यही लगता है की अरे ये तो मेरी ही कहानी है और एक चलचित्र सा घूम जाता है और वो अपने सुनहरे अतीत में खो जाता है एक छोटे कस्बे की कहानियाँ जिसकी सड़को पर दौड़ती बड़ी बड़ी कारे शहर सा होने की खुशफहमी पैदा करती तो सडकों पर चलती बैलगाड़ियाँ औकात याद दिलाती की तुम एक बड़े देहात से ज्यादा कुछ नहीं हो
सभी उम्र के पाठको के लिए समर्पित है।
विनोद पाराशर
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