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Subrat SaurabhAuthor of Kuch Woh Palप्रिय-प्रवास
‘प्रिय-प्रवास’ हिंदी -- खड़ी बोली -- का प्रथम महाकाव्य है जो स्वनाम धन्य महाकवि अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ की अमर कृति है। अत्यंत सुमधुर काव्य के रूप में युग-पुरुष श्रीकृष्ण के गोकुल से मथुरा प्रवास और उनके वियोग से व्यथित गोकुल-वासियों की विरह-वेदना का सरस चित्रण इसमें है। वह एक प्रकार से हर प्राणी की वेदना ही है जो वह उस समय अनुभव करता है जब कोई स्वजन प्रवास हेतु जाता है या प्रयाण करता है, जो कि संसृति का अपरिहार्य लक्षण ही है। आसक्ति, मोह और ममता सब दुःखों का मूल है; ज्ञान दुःखों से मुक्ति का साधन! इस महाआख्यान का यही सार अथच केंद्रीय संदेश समझ में आता है। ‘प्रिय-प्रवास’ विरह, बिछुड़ने की वेदना, नैसर्गिक प्रेम और विश्व-कल्याण के संदेश का ही महाकाव्यात्मक सरस रूप है। ‘विदेह’ अरविन्द कुमार ने इस अद्भुत साहित्यिक कृति को पुनर्संकलित एवं पुनर्मुद्रित करके इसकी एक संक्षिप्त गद्य कथा भी इसमें प्रस्तुत की है।
'विदेह' अरविन्द कुमार
‘विदेह’ अरविन्द कुमार
6 अप्रैल 1957 को जन्मे, एक छोटे से बसेरे से आए हुए, अत्यंत अभावग्रस्त माता-पिता की संतान जिन्हें खाने-कमाने का तो शऊर ख़ैर नहीं था किंतु जो उच्च आदर्शों के साथ जीते थे और व्यवसाय के नाम पर अध्यापन या ट्यूशन देकर आजीविका कमाने की कोशिश करते थे, ‘विदेह’ अरविन्द कुमार भौतिकी में स्नातकोत्तर हैं, साथ ही एक वरिष्ठ बैंकर भी रह चुके हैं। उनके शौक़ों में पढ़ाई - चाहे वह हिंदी साहित्य की हो, चाहे इंग्लिश लिटरेचर की, या कुछ-कुछ संस्कृत साहित्य की भी - मुख्य है; जिसमें वह विश्व-साहित्य को प्राथमिकता देते हैं। उनकी रचनाएँ तत्कालीन ‘कादम्बिनी’ जैसी लब्ध-प्रतिष्ठ पत्रिकाओं में काफ़ी पहले छप चुकी हैं; और उनके अन्य लेख एवं कविताएँ अन्य हिंदी, अंग्रेज़ी पत्र-पत्रिकाओं में यदा-कदा छपते रहे हैं।
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