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Subrat SaurabhAuthor of Kuch Woh Palवर्तमान पीढ़ी के दिमाग में चाहे जितना भी ज्ञान हो अगर वो ज्ञान समाज के सही विकास के लिए नहीं होगा या समाज को सही दिशा कि और ले जाने के काबिल नहीं होगा। वो सारा ज्ञान निरर्थक है। उसका समाज में रहना यानी समाज के लिए कुछ भी नहीं करना हैं। समाज को उसके नियम और नियमों में बदलाव उसकी ताकत हमेंशा समाज कों आगे ले जाते हैं। हमें अब पढ़ना है सिखना है। परिवार में रहते हुए पढ़ते हुए मजदूरी करते हुए कैसे और किस प्रकार हम समाज कों आगे ले जा सकते हैं। समाज के लिए ये नहीं सोचना हैं। वो अभी सुरक्षित हैं। समाज के लिए एक अलग ही प्रकार सें सोचना हैं। जिसमें समाज लंबे समय तक सुरक्षित रहे। उसमें हमेशा समाज के विकास के प्रति महत्व बढ़ता रहे। समाज तभी एक नयी उड़ान भरकर अपना नया भविष्य तय कर पायेगा। जिस प्रकार थोड़ा सा ही सही तुम, अपने समाज के लिए जिओ। समाज को आगे बढ़ाने के हित में जिओ। फिर देखना समाज का वो लक्ष्य आप से ही पुरा होगा। ये जिदंगी क्या पता हमारी रहे ना रहे, आने वाले कल में किसी और कि होगी। इसलिए हमें समाज के लिए जिना होगा।
गौतम रूद्राक्ष
गौतम रूद्राक्ष एक छोटे से गाँव से, जन्म से कभी सुखः नहीं मिला। हमेंषा समाज कि तरफ नजरें रहती और उसें कमजोर देखकर, मन उदास रहता था। इसी कारण से समाज को बदलनें कि जिद्ध हमेंशा रहती थी। जो समाज और उन भटकतें युवाओं को समाज के बारें में समझाएँ। हमेंशा लिखनें में शिव का आर्शिवाद रहा। घर-परिवार कि स्थिति एक ना समझनें वाली थी। हमारा परिवार ही हमारा सबसे बड़ा था। जब ये गरीबी हमारें पास थी। हमारे लिए और सभी के लिए थोड़ी आवश्यकताओं को पुरा करना बहुत जरूरी हो जाता हैं। इसलिए समाज कि कमजोरियाँ जल्दी ही समझ आ जाती थी। समाज में जाकते हुएं जब भी देखा तो समाज कि कमजोरियों को बहुत नजदिक से देखा। तभी ये समाज क्ंयु सड़को पर भींख मांगता हुआ नजर आता हैं। ये पुरा समाज क्या हमारा था। जिसकि हालत ऐसी हो गयी थी। हमेंशा समाज कि तरफ रहती वो नजरे आॅखों में पानी लें आती। ये समाज जब उदास दिखता तो मन अन्दर से टुट जाता था। एक मायुस चेहरा लेकर ऐसे बैठना पड़ता था। वो जब मायुसी मजबुरी बन जाती थी। हमारा आज और कल किसके हाथों में यही सोचकर मन, एक गहरें अंधेरे में चला जाता था। ये मन और पुरा ऐसा कैसे हो रहा था। ये मन कि उदासी हमेंशा ही अपना वक्त इसी को सोचनें मैं दे रही थी। हमारा ये समाज इतिहास हैं या फिर कुछ और हैं। समाज समृद्ध, सहनशील, और ताकतवर भी होना चाहिएं। ये ऐसे ख्यालात थें, जिसनें हमारे पुरें श्रीर में एक ऐसी सोच बना दी थी। जो हमें हमारें साथ उन सभी युवाओं को सोचना था। हम नशें के गुलाम थें, या हम नशें के गुलाम हैं। धीरें-धीरें उसके गुलाम बन हीं जाते हैं। उस नशें के साथ कभी नहीं उठ पातें। समाज का नया भविष्य ये उपन्यास आपको समाज के बारें में सोचनें पर मजबूर कर देंगा। वो सभी भटकतें युवा अपना भविष्य कैसे तय कर पायेंगे। वो भटकते हुए, कहाँ जायेंगे। अपने समाज के बारें में वो कितना सोच पायेंगे। एक्ंfटग करने का मन ऐसा हो जाता कि कभी कभी एfक्टग अपने अन्दर से हो ही जाती थी। एक ऐसा षौक था। जिसे देखते वो एक एक्ंfटग के रूप में ही नजर आता था। ये लिखने का शौक नहीं था। ये ऋण था, जिसे चुकाना था। एक ऐसा ऋण जिसमें चुकाने का सिर्फ चारों तरफ दुखः था। कुछ शौंक ऐसे होतें थे, जो शौंक नहीं थे। सिर्फ दुखः से भरे मन के अहसास थे। जिसको निभाने के लिए हर वो किमत चुकानी पड़ रही थी। जो सबसे किमती हो गयी थी। अब तो समाज को गुनाह करने से रोकना था। उसी कि शुरूआत थी, जिसको अब कोई भी नहीं रोकने वाला था।
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