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Samvidhan-Sabha Men Jaipal / संविधान-सभा में जयपाल कॉलोनियल रिबेट, फ्यूडल डिबेट और आदिवासी आखेट

Author Name: Ashwini Kumar Pankaj | Format: Paperback | Genre : History & Politics | Other Details

यह पुस्तक हमें उस प्रभावशाली और दूरदर्शी आदिवासी राजनीतिज्ञ के सोच-विचार से परिचित कराती है जिसे गांधी, नेहरु, जिन्ना और अंबेडकर के मुकाबले कभी नहीं याद किया गया। उस आदिवासी व्यक्तित्व का नाम है जयपाल सिंह मुंडा। आजाद होते भारत में आदिवासी विषय और प्रतिनिधित्व पर हमारे तथाकथित ‘राष्ट्रपिता’, ‘राष्ट्रनिर्माता’ और ‘दलितों के बाबा साहेब’ कितने गंभीर थे, यह हमें जयपाल सिंह मुंडा के उन वक्तव्यों से पता चलता है जो उन्होंने संविधान निर्माण सभा में दिए थे। यह पहली किताब है जो हमें बताती है कि संविधान-सभा के 300 माननीय सदस्यों ने किस तरह से ‘आदिवासी स्वयात्तता’ का मिलजुलकर अपहरण किया। जिसके खिलाफ संविधान-सभा के भीतर जयपाल सिंह मुंडा ने अकेले राजनीतिक लड़ाई लड़ी और भारतीय राजनीति में आदिवासियत को स्थापित किया।

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अश्विनी कुमार पंकज

1964 में जन्मे अश्विनी कुमार पंकज देश के जाने-माने आदिवासी विषयक स्टोरीटेलर हैं। डॉ. एम.एस. ‘अवधेश’ और दिवंगत कमला की सात संतानों में से एक। सन् 1991 से जीवन-सृजन के मोर्चे पर वंदना टेटे की सहभागिता। अभिव्यक्ति के सभी माध्यमोंकृरंगकर्म, कविता-कहानी, आलोचना, पत्रकारिता, डॉक्यूमेंट्री, प्रिंट और वेब में रचनात्मक उपस्थिति। झारखंड व राजस्थान के आदिवासी जीवनदर्शन, समाज, भाषा-संस्कृति और इतिहास पर विशेष कार्य। उलगुलान, संगीत, नाट्य दल, राँची के संस्थापक संगठक सदस्य। सन् 1987 में ‘विदेशिया’, 1995 में ‘हाका’, 2006 में ‘जोहार सहिया’ और 2007 में ‘जोहार दिसुम खबर’ का संपादन-प्रकाशन। फिलहाल रंगमंच एवं प्रदर्श्यकारी कलाओं की त्रैमासिक पत्रिका ‘रंगवार्त्ता’ का संपादन-प्रकाशन।
अब तक ‘पेनाल्टी कॉर्नर’, ‘इसी सदी के असुर’, ‘सालो’, ‘अथ दुड़गम असुर हत्या कथा’ और ‘आदिवासी प्रेम कहानियां’ (कहानी-संग्रह); ‘जो मिट्टी की नमी जानते हैं’ और ‘खामोशी का अर्थ पराजय नहीं होता’ (कविता-संग्रह); ‘युद्ध और प्रेम’ और ‘भाषा कर रही है दावा’ (लंबी कविता); ‘अब हामर हक बनेला’ (हिंदी कविताओं का नागपुरी अनुवाद); ‘छाँइह में रउद’ (दुष्यंत की गजलों का नागपुरी अनुवाद); ‘एक अराष्ट्रीय वक्तव्य’ (विचार); ‘रंग बिदेसिया’ (भिखारी ठाकुर पर सं.); ‘शून्यकाल में ‘आदिवासी’, ‘उपनिवेशवाद और आदिवासी संघर्ष’ और ‘आदिवासी और विकास का भद्रलोक’, ‘आदिवासी और गांधी’, ‘आदिवासियत’, ‘हिंदी की आरंभिक आदिवासी कहानियां’ (सं.); ‘आदिवासीडम’, ‘हूल डॉक्यूमेंट्स 1855’ (सं. अंग्रेजी); आदिवासी गिरमिटियों पर ‘माटी माटी अरकाटी’ तथा आजीवक मक्खलि गोशाल के जीवन-संघर्ष पर केंद्रित मगही उपन्यास ‘खाँटी किकटिया’ प्रकाशित।

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