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Sargoshiyan / सरगोशियाँ

Author Name: Nishant Pohare | Format: Paperback | Genre : Poetry | Other Details

'मिसरा उठा लो तुम गर तो ग़ज़ल ये मुकम्मल हो जाए'

'अन सुलझे मसले हैं अधूरी ज़िन्दगी के सारे हल हो जाए '

मिसरे' जब एक दूसरे का हाथ पकड़कर साथ चलते है तो इक दुनिया ज़ाहिर होती है, इक अहवाल-ए-'आलम बयां होता हैं, जिसमे तमाम वो जज़्बात, तमाम वो फ़लसफ़ा-दानी होती हैं जो बस इक शा'इर ही वाज़ेह कर सकता हैं । ग़ैर-शा'इराना तबियत यूं तो कोई गुनाह नहीं, लेकिन ज़ेहन-ओ-जज़्बात का फ़लसफ़ा इक सुख़न-आरा जिस खूबसूरती और मुअस्सिर अंदाज़ से पढ़ने या सुनने वालों के ज़ेहन में उतारता हैं, उसकी शायद ही कोई और मिसाल हो । 

उर्दू तहज़ीब और अदबिय्यात की कायनात में प्रस्तुत किताब एक मुक्कमल कहकशाँ होने का कतई दावा नहीं करती , लेकिन सितारा-ए-उम्मीद होने की चाह ज़रूर रखती हैं । वली दक्कनी, मीर, गालिब, फ़िराक, फ़ैज़ जैसे बेशुमार आफ़ताबो से इक अदना सी रोशनी की किरण लेकर अपने अरमानों की लौ को रौशन करने की जुर्रत का नाम ' सरगोशियाँ ' हैं । 

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निशांत पोहरे

जन्म ११ मार्च को अकोला, महाराष्ट्र में हुआ और पत्रकारिता में पोस्ट ग्रेजुएशन करने के बाद प्रारम्भिक जीवन में फिल्मों में एक सहायक निर्देशक और फिर टेलीविजन पोस्ट निर्माता के रूप में काम करने के बाद, उन्होंने अंततः एक पत्रकार के रूप में अपने स्वाभाविक पेशे की ओर रुख किया। सामाजिक तथा राजनैतिक विषयो पर स्तंभ लेखन करने के साथ साथ उर्दू, अंग्रेजी और हिंदी साहित्य में रुचि रखने के फलस्वरूप उर्दू शायरी लिखने की और कदम बढ़ाया । ' सरगोशियाँ '  उनकी पहली पुस्तक है ।

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