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Subrat SaurabhAuthor of Kuch Woh Palश्री गुरुवे नमः
शास्त्रों के अवलोकन और महापुरुषों के मार्मिक वचनों को सुनने पर मैं इस निर्णय तक पहुंचा हूं कि संसार रुपी इस महा सागर से पार होने का श्रीमद् भगवत गीता ही एक सद्भावना है जिसके अध्ययन मनन करने के पश्चात् मुनष्य को कल्याण के लिये गीता में ज्ञान योग, ध्यान योग, कर्म योग, भक्ति योग आदि के बहुत से साधन वर्णित हैं उनमें कोई भी साधन अपनी श्रद्धा, रुचि और योग्यतानुसार प्रयोग कर जीवन के सार्थक उदेश्य को मनुष्य प्राप्त कर सकता है।
अतएव मानव जीवन की सार्थकता एवं परमात्मा के रहस्यमय तत्व को जानने के लिये महापुरुषों का श्रद्धा, प्रेम व आदर पूर्वक संग करने की चेष्ठा रखते हुए श्रीमद् भवगत गीता का भाव सहित मनन कर, उसका अनुसरण करने पर अपना जीवन सार्थक बनाने का प्रयत्न करना चाहिए।
महानुभाव! श्री गीता जी के मानव जीवन में उपयोगिता को ध्यान में रखकर, उसे सरल भाषा में संगीतमय आपके लाभार्थ प्रस्तुत कर रहा हूं और आशा करता हूं कि आज हर मानव श्री गीता जी का भाव हृदयांगम कर, अपने जीवन के मूल उदेश्य को जानकर, उसे प्राप्त करने का प्रयास करें।
निवेदक
राज दास (स्वामी निराकार सतधाम, आश्रम, बांधमऊ, बिधूना, औरैया, उत्तर प्रदेश)
राज दास (स्वामी निराकार सतधाम, आश्रम, बांधमऊ, बिधूना, औरैया, उत्तर प्रदेश)
अपने विषय में कहने हेतु परमात्मा की असीम कृपा से बस इतना ही बताना उचित होगा, कि मैं परमात्मा के सच्चे स्वरुप का अति निकृष्ट दास हूं और यह मेंरा सच्चा स्वामी है। अगर सही मायने में जांचा जाये तो हम उस स्वामी के दासों का दास भी नहीं हूं। क्योंकि उनको जो वास्तव में जानता और पहचानता है तथा मिलता है। वही दास कहलाने के योग्य होता है।
मैनें भी तो आप लोगों की तरह ही जीवन को व्यर्थ के जंजालों में उलझकर गंवाया है। जिसकी पूर्वता अब सम्भव नहीं लगती है। इतना ही मैं मानता हूं कि जब जागो-तभी सवेरा है, इस जागने का अभिप्राय यही है कि परमात्मा में जब सच्ची निष्ठा, विश्वास हो जाय और जीवन का उद्देश्य मालूम हो जाये और उद्देश्य पूर्ति हेतु कृत संकल्प हो जाये तो शायद उस स्वामी का दर्शन मिल जाये। परम सत्य परमात्मा के आदेशानुसार ही हर कार्य पूर्ण होता है। इसी प्रत्याशय से यह ’’श्री मद् भगवत गीता (संगीतमय) - राधे-श्याम-तर्ज” नामक पुस्तक/ग्रंथ प्रस्तुत है।
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