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Sita-Ram / सीता-राम Ram Rajya/राम राज्य

Author Name: Janardan Rai Nagar | Format: Hardcover | Genre : Religion & Spirituality | Other Details

पं. जनार्दन राय नागर द्वारा सृजित ‘राम-राज्य’ उपन्यास की श्रृंखला में ‘सीता-राम’ उपन्यास भारतीय संस्कृति के आदर्श नायक राम तथा उनकी पत्नी सीता के प्रमुख जीवन प्रसंगों का अद्भुत वर्णन है। उनके द्वारा रचित ‘भरत’, ‘हनुमान’, ‘सुग्रीव’ एवं ‘राम-लक्ष्मण’ की भांति यह उपन्यास भी इतनी स्वाभाविकता लिए है कि समस्त पात्र सजीव एवं कथानक के अनुकूल रोचक हैं तथा गम्भीरता लिए हुए हैं।
सम्पूर्ण उपन्यास में सीता एवं राम अपनी भूमिका में अत्यधिक स्वाभाविकता लिए हुए अपने मन के अन्तर्द्वन्द्वों से जूझते दिखाई देते हैं। सीता वनवासी राम के प्रति इतनी स्वाभाविक हो जाती है कि राजा राम की भूमिका से विचलित होती रहती है। दूसरी ओर राजा-राम का मन सीता के प्रति मोम सा करूण किन्तु आर्य वंश की राज परम्परा के अनुकूल अत्यधिक कठोर हो जाता है। कुल मिला कर तात्कालिक परिस्थितियों को जीवन्त करता हुआ यह उपन्यास पाठकों के लिए अत्यधिक रूचिकर बन पड़ा है।
उपन्यास का शिल्प, भाषा व शब्द सौन्दर्य आकर्षक है।

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पं. जनार्दन राय नागर

पं. जनार्दन राय नागर का जन्म उदयपुर में 16 जून, 1911 ई. को हुआ। बहुआयामी प्रतिभा के धनी पं. नागर ने शिक्षा, साहित्य, पत्रकारिता, राजनीति व समाज सेवा आदि क्षेत्रों में अपनी अमिट कीर्ति स्थापित की। गाँधीवादी संस्कारों से दीक्षित व कथा सम्राट प्रेमचन्द्र के आशीष पात्र रहे जनार्दन राय नागर ने मेवाड़ में शिक्षा के प्रसार के उद्देश्य से 1937 में हिन्दी विद्यापीठ की स्थापना रात्रिकालीन संस्थान के रूप में की। वर्तमान में जनार्दन राय नागर राजस्थान विद्यापीठ विश्वविद्यालय, उदयपुर रूपी वटवृक्ष के रूप में स्थापित है। 
शिक्षा की लोक साधना में लीन जनार्दनराय नागर की ऐकान्तिक साधना साहित्य-सृजन के रूप में निरन्तर गतिमान रही। उन्होंने उपन्यास, कहानी, गद्य-गीत, जीवन चरित्र व काव्य विधाओं में लेखन किया। उनके द्वारा रचित ‘जगद्गुरू शंकराचार्य’ जो कि 5,500 पृष्ठों में समाहित  दस उपन्यासों की श्रृंखला है, चार हिन्दी साहित्य की अमूल्य धरोहर है। उनके ‘राम-राज्य’  के पांच उपन्यास प्रकाशित हो चुके है। 
पत्रकारिता के क्षेत्र में पं. नागर ने अनेक पत्र-पत्रिकाओं की स्थापना, संपादन व संचालन में योगक्षेम निर्वहन किया। 
राजस्थान साहित्य अकादमी के संस्थापक अध्यक्ष के रूप में उन्होंने राज्य में साहित्यिक उन्नयन व मार्गदर्शन में महत्वपूर्ण भूमिका निर्वाह की। वे केन्द्रीय साहित्य अकादमी, हिन्दी सलाहकार समिति (रेल्वे), केन्द्रीय प्रौढ़ शिक्षा सलाहकार समिति आदि के मनोनीत सदस्य रहे। विधानसभा में मावली क्षेत्र से विधायक रहे। उन्हें ‘नेहरू साक्षरता पुरस्कार’ व ‘महाराणा मेवाड़ फाउण्डेशन पुरस्कार’ सहित अनेक सम्मान प्राप्त हुए। इस यशस्वी व्यक्तित्व का 15 अगस्त, 1997 को उदयपुर में निधन हुआ।

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