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Subrat SaurabhAuthor of Kuch Woh Palआज हर तरफ एक होड़ सी मची हैं, जीवन में अग्रिम पंक्ति में स्थापित रहने हेतु, ’किन्तु’ यही आपाधापी होड़ा-होडी व्यक्ति के जीवन में कभी-कभी गहन निराशा बनके भी घर कर जाती हैं ।
कभी लोगों के भय से, कभी हार जाने, पीछे रह जाने, शर्म व हया, अथवा आलस्य या नीरसता के माने, कवि ने अपनी कविताओं में उन सभी नैराश्य कणों को क्षण भंगुरित मानते हुए जीवन-पथ पर सतत चलायमान रहने व सफलता के शीर्ष पर अपना परचम लहराने हेतु विविध आयामों से निराशा का खंडन करते हुए आत्मविश्वास के स्वर्ण कणों को पंक्ति - पंक्ति में चलित किया हैं ।
एक-एक पंक्ति व्यक्ति व व्यक्तित्व के निखार हेतु ओजस्विता का भंडारण हैं । कवि ने विभिन्न उदाहरणों द्वारा व्यक्ति की सुषुप्त-चेतना, अभिलाषा व उत्साह को जागृत करने का सतत प्रयास किया हैं जीवन अमूल्य हैं । इसे नैराश्य व खिन्न भाव से नहीं अपितु स्फूर्त व आशावान बन कर जीना चाहिये, व जब-तक जीवन में अपना लक्ष्य हासिल न हो, व्यक्ति को किसी भी, मील के पत्थर पर विश्राम नही करना चाहिये ।
सतत प्रयास व एकाग्रता लक्ष्य पर पहुँच कर अपना परचम लहराने हेतु बाध्य करती हैं । लोगों के भय से हार जाने की कुंठा से, या पीछे रह जाने की निराशा से निकल कर मात्र अपने कदमों को बढ़ाने व पारी को खेलने हेतु जागृत रहना ही व्यक्ति का ध्येय हो इस हेतु प्रेरित करती हैं । सौ छोटी हार एक बड़ी जीत मुकम्मल कर सकती हैं । इस बात को मध्यनजर रखते हुए । कविता ने उठने व चलने का आहवान किया हैं । जो कि, उनींदी चेतना व उत्साह को जाग्रत कर, जीवन पथ पर अग्रसर होते हुए मंजिलों को तय करने में सहायक हैं ।
निर्जीव विचारधारा में सजीवता का संचरण करते हुए उन्नति की ध्वजा को लक्ष्य के शिखर तक सुशोभित करने में प्रेरक हैं ।
दुर्गा सिंह उदावत
कवि दुर्गा सिंह उदावत मूलतः ग्रामिण परिवेश के निवासी है इनका जन्म (जन्म तिथि 26 जून, 1969) को ग्राम-जनासनी, तहसील-जैतारण, जिला-पाली (राजस्थान) में हुआ व शिक्षा अध्ययन के पश्चात अध्यापक बने एवं सामाजिक क्षैत्र में काम करते हुए समाज को नयी दिशा देने एवं युवाओं को सकारात्मक सोच के विचार भरनें में अपने जीवन का मूल उदे्श्य मान कर कार्यरत हैं ।
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