You cannot edit this Postr after publishing. Are you sure you want to Publish?
Experience reading like never before
Sign in to continue reading.
Discover and read thousands of books from independent authors across India
Visit the bookstore"It was a wonderful experience interacting with you and appreciate the way you have planned and executed the whole publication process within the agreed timelines.”
Subrat SaurabhAuthor of Kuch Woh Palसाधु वेश में पथिक का परिचय (संक्षिप्त)
आपके शरीर का जन्म कान्यकुब्ज ब्राह्मण कुल में भारद्वाज गोत्रीय त्रिवेदी परिवार में १५ जनवरी १६०६ माघ कृष्ण अष्टमी को ग्राम बकेवर जिला फतेहपुर में हुआ था। आपके बचपन का नाम श्री गया प्रसाद त्रिवेदी था। बाल्यावस्था ननिहाल-साढ़ में व्यतीत हुई। वही पर कुछ शिक्षा प्राप्त की। आरम्भ से ही आपके हृदय में ग्रामीण देवी देवताओं के प्रति श्रद्धा जागृत थी। विश्वास था कि मन्दिर में अथवा देवी देवताओं के दर्शन से विद्या प्राप्त होती है। बाल्यावस्था से ही किसी उपदेश सुने बिना भगवान के नाम जप स्मरण में विश्वास था। आरम्भ से ही परमहंस अवधूत संत में श्रद्धा हो गयी, जो नग्न ही घूमते थे। कोई वस्त्र न रखते थे। स्नान के पश्चात् खाक लगा कर जल सुखाते थे, उसे विभूति कहते थे। पूर्व जन्म के संस्कारों से प्रेरित होकर भूमि भवन धन से वैराग्य हो गया और
सब कुछ छोड़कर साधु वेष में विचरण करते हुए अनेको कविताएं लिखी। एकान्त सेवी होने के कारण पद्य के साथ-साथ गद्य लिखना आरम्भ हुआ। चौसठ पुस्तकें छपी, जिनमें ६५० गीत है। व्याख्यान के प्रति और गीत गायन के प्रति श्रोताओं का आकर्षण बढ़ता ही गया। मान-प्रतिष्ठा तथा पूजा भेंट से सदा विरक्त रहकर विचरण करते हुए आध्यात्मिक विचारों का समाजव्यापी प्रचार बढ़ता गया। विचारो की प्रधानता से विचारक समुदाय की वृद्धि होती गई। परमहंस सद्गुरूदेव की आप पर बहुत कृपा थी। आरम्भ से आप ब्रह्मचारी नाम से प्रसिद्ध थे फिर 'पलक निधि' नाम गुरूदेव द्वारा दिया गया। बाद में आपके लेख कल्याण में छपे तो लेखक “साधु वेष में पथिक” नाम से प्रख्यात हुए। पथिकोद्गार गीतों का संग्रह है जो चार भागों में प्रकाशित है। जिसमें ६५० गीत प्रकाशित है।
साधु वेश में एक पथिक
सब कुछ छोड़कर साधु वेष में विचरण करते हुए अनेको कविताएं लिखी। एकान्त सेवी होने के कारण पद्य के साथ-साथ गद्य लिखना आरम्भ हुआ। चौसठ पुस्तकें छपी, जिनमें ६५० गीत है। व्याख्यान के प्रति और गीत गायन के प्रति श्रोताओं का आकर्षण बढ़ता ही गया। मान-प्रतिष्ठा तथा पूजा भेंट से सदा विरक्त रहकर विचरण करते हुए आध्यात्मिक विचारों का समाजव्यापी प्रचार बढ़ता गया। विचारो की प्रधानता से विचारक समुदाय की वृद्धि होती गई। परमहंस सद्गुरूदेव की आप पर बहुत कृपा थी। आरम्भ से आप ब्रह्मचारी नाम से प्रसिद्ध थे फिर 'पलक निधि' नाम गुरूदेव द्वारा दिया गया। बाद में आपके लेख कल्याण में छपे तो लेखक “साधु वेष में पथिक” नाम से प्रख्यात हुए। पथिकोद्गार गीतों का संग्रह है जो चार भागों में प्रकाशित है। जिसमें ६५० गीत प्रकाशित है।
The items in your Cart will be deleted, click ok to proceed.