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Subrat SaurabhAuthor of Kuch Woh Palहरियाणा साहित्य अकादमी से पुरस्कृत उपन्यास "तेरा नाम इश्क़' और चंडीगढ़ साहित्य अकादमी से पुरस्कृत कविता-संग्रह ' तुम ज़िंदा हो माँ' के लेखक अजय सिंह राणा का जन्म 01 फरवरी 1979 को करनाल जिले के गाँव गोंदर में हुआ था। इनका पालन पोषण और आरम्भRead More...
हरियाणा साहित्य अकादमी से पुरस्कृत उपन्यास "तेरा नाम इश्क़' और चंडीगढ़ साहित्य अकादमी से पुरस्कृत कविता-संग्रह ' तुम ज़िंदा हो माँ' के लेखक अजय सिंह राणा का जन्म 01 फरवरी 1979 को करनाल जिले के गाँव गोंदर में हुआ था। इनका पालन पोषण और आरम्भिक शिक्षा शहर घरौंदा में हुई और उच्चतर शिक्षा के लिए इन्होंने करनाल, जम्मू विश्वविद्यालय, कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय, इग्नू विश्वविद्यालय और पंजाब विश्वविद्यालय चंडीगढ़ में अध्ययन किया। चार विषयों (भूगोल, शिक्षाशास्त्र, हिंदी साहित्य और मनोविज्ञान) में स्नातकोत्तर डिग्री, बी.एड., आपदा प्रबंधन में स्नातकोत्तर डिप्लोमा, और अंग्रेजी शिक्षण में स्नातकोत्तर सर्टिफिकेट कोर्स आदि डिग्रियां प्राप्त करके शैक्षिक दृष्टि से सम्पन्न यह रचनाकार आज समकालीन हिंदी साहित्य में किसी परिचय का मोहताज़ नहीं है। ये एक संवेदनशील लेखक माने जाते हैं।
प्रसारण : आकाशवाणी और आज तक टीवी चैनल' के साहित्य तक कार्यक्रम में कहानी और कविताओं का प्रसारण।
पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशन : हंस, 'नया ज्ञानोदय, 'अहा जिंदगी, हिंदी आउटलुक, रसरंग, मधुरिमा, हरिगंधा, पुष्पगंधा, दैनिक ट्रिब्यून, दैनिक भास्कर, अमर उजाला, दैनिक जागरण आदि ।
सम्मान : श्रेष्ठ कृति पुरस्कार 2019 (तेरा नाम इश्क उपन्यास को हरियाणा साहित्य अकादमी द्वारा)
चंडीगढ़ साहित्य अकादमी द्वारा 'बेस्ट बुक ऑफ द ईयर अवार्ड 2020' तुम जिंदा हो माँ काव्य -संग्रह
जयपुर साहित्य सम्मान 2022
प्रकाशित पुस्तकें : उपन्यास (ख़ाली घरौंदे, तेरा नाम इश्क़)
कहानी -संग्रह-मकड़जाल
तीन काव्य-संग्रह (उम्मीद के किनारे, भीगे हुए ख़त, तुम ज़िंदा हो माँ)
लघु शोध कार्य : उपन्यास ख़ाली घरौंदे पर कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय द्वारा
सम्प्रति : अध्यापक, चंडीगढ़ शिक्षा विभाग
वर्तमान पता : चंडीगढ़
ईमेलः ranageographer@gmail.com
Achievements
मैं भी भारत उपन्यास हाशिए पर खड़े उन लोगों की कहानी हैं जिन्हें इतिहास के पन्नों में उतनी जगह नहीं मिली जितने के वे हकदार थे। भगत सिंह को जब फाँसी हुई तो वह लेनिन को पढ़ रहे थे, एक इ
मैं भी भारत उपन्यास हाशिए पर खड़े उन लोगों की कहानी हैं जिन्हें इतिहास के पन्नों में उतनी जगह नहीं मिली जितने के वे हकदार थे। भगत सिंह को जब फाँसी हुई तो वह लेनिन को पढ़ रहे थे, एक इंकलाबी दूसरे इंकलाबी से मिल रहा था। उस दिन उन्होंने एक सफ़हा मोड़ा था और आज उस सफ़हे को खोलने की जरूरत है। यह उपन्यास उस सफहे को खोलने और पढ़ने का एक प्रयास है। इस बार मेरे इस उपन्यास में शब्दों का वार्तालाप देश की मिट्टी से होगा, जहाँ से जन्म लेती है एक उम्मीद, जिसके आधार पर ही तो धरती का समस्त जीवन टिका हुआ है। मिट्टी से जुड़े कई सवाल जिनका जवाब सदियों से किसी भी व्यक्ति या सरकार के पास नहीं है, शायद उन सवालों के जवाब आपको इन शब्दों के सागर में डूबने से प्राप्त हो जाएँ क्योंकि गहरे सवालों के जवाब गहराई में उतरने से ही प्राप्त होते हैं।
समय बदलता रहा है और आगे भी बदलता रहेगा। शायद ही ज़मीन से जुड़े सवालों के जवाब कोई दे पाए ! क्योंकि मिट्टी से दूर रहकर मिट्टी के सवालों के जवाब दिए ही नहीं जा सकते ? और न ही समझा जा सकता हैं उन सवालों के गहरे अर्थों को? इनके अर्थों को जानने के लिए हमें मिट्टी में रहकर मिट्टी का होना पड़ता है और जंगल में रहकर जंगली बनना पड़ता है। इनसे दूर रहकर उनके अधिकारों के प्रति हम संवेदनशील नहीं हो सकते।
इस बार मैंने ज़मीन में कुछ शब्दों को बोने की कोशिश की है ताकि कुछ सवालों के जवाब पौधे बनकर उग जाएँ और चीख-चीख कर बहरों के कान के परदे फाड़ दें, जिन्हें सुनाई नहीं देता उन बेबस आवाज़ों का दर्द। देश के ग्रामीण परिवेश से लेकर शहर की समस्याओं से जूझते कुछ सवाल चरित्र बन आपके सामने इस उपन्यास में अब हाज़िर हैं।
मैं भी भारत उपन्यास हाशिए पर खड़े उन लोगों की कहानी हैं जिन्हें इतिहास के पन्नों में उतनी जगह नहीं मिली जितने के वे हकदार थे। भगत सिंह को जब फाँसी हुई तो वह लेनिन को पढ़ रहे थे, एक इ
मैं भी भारत उपन्यास हाशिए पर खड़े उन लोगों की कहानी हैं जिन्हें इतिहास के पन्नों में उतनी जगह नहीं मिली जितने के वे हकदार थे। भगत सिंह को जब फाँसी हुई तो वह लेनिन को पढ़ रहे थे, एक इंकलाबी दूसरे इंकलाबी से मिल रहा था। उस दिन उन्होंने एक सफ़हा मोड़ा था और आज उस सफ़हे को खोलने की जरूरत है। यह उपन्यास उस सफहे को खोलने और पढ़ने का एक प्रयास है। इस बार मेरे इस उपन्यास में शब्दों का वार्तालाप देश की मिट्टी से होगा, जहाँ से जन्म लेती है एक उम्मीद, जिसके आधार पर ही तो धरती का समस्त जीवन टिका हुआ है। मिट्टी से जुड़े कई सवाल जिनका जवाब सदियों से किसी भी व्यक्ति या सरकार के पास नहीं है, शायद उन सवालों के जवाब आपको इन शब्दों के सागर में डूबने से प्राप्त हो जाएँ क्योंकि गहरे सवालों के जवाब गहराई में उतरने से ही प्राप्त होते हैं।
समय बदलता रहा है और आगे भी बदलता रहेगा। शायद ही ज़मीन से जुड़े सवालों के जवाब कोई दे पाए ! क्योंकि मिट्टी से दूर रहकर मिट्टी के सवालों के जवाब दिए ही नहीं जा सकते ? और न ही समझा जा सकता हैं उन सवालों के गहरे अर्थों को? इनके अर्थों को जानने के लिए हमें मिट्टी में रहकर मिट्टी का होना पड़ता है और जंगल में रहकर जंगली बनना पड़ता है। इनसे दूर रहकर उनके अधिकारों के प्रति हम संवेदनशील नहीं हो सकते।
इस बार मैंने ज़मीन में कुछ शब्दों को बोने की कोशिश की है ताकि कुछ सवालों के जवाब पौधे बनकर उग जाएँ और चीख-चीख कर बहरों के कान के परदे फाड़ दें, जिन्हें सुनाई नहीं देता उन बेबस आवाज़ों का दर्द। देश के ग्रामीण परिवेश से लेकर शहर की समस्याओं से जूझते कुछ सवाल चरित्र बन आपके सामने इस उपन्यास में अब हाज़िर हैं।
मकड़जाल अजय सिंह राणा का पहला कहानी संग्रह है। इस कहानी- संग्रह में कुल 7 कहानियां है। सभी कहानियां प्रेम विषय को लेकर भावनात्मक दृष्टिकोण पेश करती हैं। इस संग्रह की कहानियां भा
मकड़जाल अजय सिंह राणा का पहला कहानी संग्रह है। इस कहानी- संग्रह में कुल 7 कहानियां है। सभी कहानियां प्रेम विषय को लेकर भावनात्मक दृष्टिकोण पेश करती हैं। इस संग्रह की कहानियां भारतीय ज्ञानपीठ की प्रतिष्ठित पत्रिका नया ज्ञानोदय, दैनिक भास्कर की पत्रिका अहा जिंदगी में प्रकाशित हो चुकी हैं। उनकी कहानी आज तक चैनल के साहित्य तक कार्यक्रम में भी प्रसारित हो चुकी है। हरियाणा और चंडीगढ़ के युवा कथाकार और उपन्यासकार अजय सिंह राणा अपनी रचनात्मकता के प्रति न सिर्फ निष्ठावान हैं बल्कि अपनी कथा भाषा, कथ्य और ट्रीटमेंट के प्रति भी बहुत सचेत रहते हैं। ये उपन्यास और कहानियाँ लिखते रहे हैं। इनके उपन्यास तथा कहानियों ने पाठकों को आश्वस्त किया है कि ये नए समय का संज्ञान लेने वाले लेखक हैं। जी वन एक मकड़जाल ही तो है जहाँ हम उलझते हैं, सुलझते हैं.... और फिर कहानियाँ जन्म लेती हैं । हर व्यक्ति एक कहानी के साथ जीता है और उसके साथ ही मर जाता है लेकिन कुछ कहानियों को ही पन्ने नसीब होते हैं। मुझे लगता है कि मानवीय जीवन का यह सत्य भी शब्दों में ढलकर पृष्ठ पर कहानी के रूप में उतरता है। प्रेम मानवीय जीवन की सबसे अहम जरूरत है । मेरी कहानियाँ इसी तत्त्व के आसपास बुनी गई हैं। हालांकि जीवन के बाकी तत्त्व भी मेरी कहानियों में अछूते नहीं रहे हैं लेकिन इनका केंद्रीय बिंदु प्रेम है। मुझे लगता है कि इस युद्ध से झुलसी दुनिया को प्रेम के आयामों को समझना जरूरी है। प्रेम से बड़ा सत्य क्या है जो आज समाज में फैले द्वेष को मिटा सकता है !
तेरा नाम इश्क उपन्यास अजय सिंह राणा का सबसे चर्चित उपन्यास है। हरियाणा साहित्य अकादमी ने इस उपन्यास को मुंशी प्रेमचंद श्रेष्ठ कृति पुरस्कार से भी नवाजा है। यह उपन्यास राष्ट्र
तेरा नाम इश्क उपन्यास अजय सिंह राणा का सबसे चर्चित उपन्यास है। हरियाणा साहित्य अकादमी ने इस उपन्यास को मुंशी प्रेमचंद श्रेष्ठ कृति पुरस्कार से भी नवाजा है। यह उपन्यास राष्ट्रवाद में उलझी एक प्रेम कहानी है जिसमें प्रेम,दोस्ती, राष्ट्रवाद, बलिदान आदि तत्व शामिल है। इस उपन्यास की कहानी कश्मीर घाटी से शुरू होकर चंडीगढ़ के रास्ते मुंबई होते हुए अंत में तस्वीर में ही आकर खत्म होती है। इस उपन्यास में एक तलाश है अपने प्रेमी की तलाश। नायिका की तलाश क्या पूरी हो पाती है? जब अचानक नायक कहानी से गायब हो जाता है तो वह उसे खोजने निकल पड़ती है। विभिन्न पड़ाव को पार करती है यह कहानी अंत में भावुकता के चरम सीमा पर पहुंच जाती है।
कथा की सुन्दर बुनावट, वातावरण का सजीव चित्रण, निराली नाटकीयता, जादुई कल्पना, देश और काल का अनुसरण करता प्रांजल प्रकृति-चित्रण, पात्रों की अन्त: प्रकृति में प्रविष्ट होकर उनकी मनोदशा का सहज और मार्मिक चित्रण तथा प्रेम को बृहत परिप्रेक्ष्य के फ लक पर लाकर उसके उदात्त रूप का अहसास कराने का उद्देश्य आदि के साथ-साथ पाठक को आद्योपान्त अपने पाश में बांधने की शक्ति, अजय सिंह राणा कृत उपन्यास ‘तेरा नाम इश्क़’ की प्राथमिक विशेषताओं में सम्मिलित है। हिन्दी उपन्यास की कथा परम्परा के कुछ मिथकों से हटकर उप-शीर्षक, गीत तथा एक अदृश्य पात्र की रचना आदि नए प्रयोग भी इस कृति के रूप-विधान को प्रभावोत्पादक बनाते हैं। इस रचना की कथा के गर्भ में प्रेम है लेकिन लेखक ने इस मानवीय प्रेम पर जिस प्रकार देश-प्रेम को प्रतिष्ठित किया है, उसका विन्यास वैचारिक वैभव की वसुन्धरा से उपजी हृदय की कोमल भाव-शृंखला के नैसर्गिक पल्लवन के रूप में दिखाई देता है।
माँ की याद में लिखी यह कविताएं केवल शब्द मात्र नहीं है बल्कि भावनाओं का वह सागर है जिसमें मैं डुबकी लगाकर अपनी आत्मा को तृप्त करता हूं। ' माँ ' कोई छोटा शब्द नहीं बल्कि ऐसी दुनिया ह
माँ की याद में लिखी यह कविताएं केवल शब्द मात्र नहीं है बल्कि भावनाओं का वह सागर है जिसमें मैं डुबकी लगाकर अपनी आत्मा को तृप्त करता हूं। ' माँ ' कोई छोटा शब्द नहीं बल्कि ऐसी दुनिया है जिसमें हम सब अपने दुख त्याग कर एक ऐसे लोक में पहुंच जाते हैं जहां सिर्फ निस्वार्थ प्रेम हैं। माँ कभी मरती नहीं, ज़िंदा रहती है हमेशा, हमारे विश्वास में, धड़कनों में और हमारे हर उस पल में जब हम अपने आप को अकेला महसूस करते हैं तो वह चुपके से आकर हमारा दामन थाम लेती है और सारे दुख हर लेती हैं।
ख़ाली घरौंदे उपन्यास अजय सिंह राणा का पहला उपन्यास है जिसे चंडीगढ़ साहित्य अकादमी ने वर्ष 2015 बेस्ट पांडुलिपि चयनित किया था। यह एक भावुक उपन्यास है जिसमें रिश्तो के बिखराव पर कथा
ख़ाली घरौंदे उपन्यास अजय सिंह राणा का पहला उपन्यास है जिसे चंडीगढ़ साहित्य अकादमी ने वर्ष 2015 बेस्ट पांडुलिपि चयनित किया था। यह एक भावुक उपन्यास है जिसमें रिश्तो के बिखराव पर कथानक टिका है। आकाश और काजल के माध्यम से यह कहानी पाठकों के दिल को छू जाती हैं। यह उन दोनों के संघर्ष की कहानी है। 'ख़ाली घरौंदे', का असर उन कलात्मक फिल्मों की तरह है, जिनके समाप्त हो जाने के बाद भी आप कुछ पल आँखें मूँद चुपचाप बैठे रहना चाहते हैं। उस समय या तो आप उन क्षणों को जी रहे होते हैं या उन पर गहन चिंतन करना चाहते हैं। अजय सिंह राणा द्वारा लिखित यह उपन्यास न केवल मस्तिष्क को बुरी तरह से झिंझोड़ता है बल्कि कई स्थानों पर अनजाने में आपके जीवन के पृष्ठ भी पलटता चलता है। यही उनकी लेखनी की सफ़लता और सार्थकता भी है।
जैसे-जैसे आकाश, काजल, कोमल, कपिल के चरित्रों से आपका साक्षात्कार होता है, ह्रदय उन्हें आसपास ही महसूस करता है। इस उपन्यास की विषयवस्तु ही ऐसी है कि पात्रों से जुड़ी कई घटनाएँ आपबीती लगती हैं, यहाँ तक कि कई स्थानों पर मुख्य पात्र भी चेहरे के साथ ही नज़र आते हैं। आख़िर यही तो है ज़िंदगी! तमाम संघर्षों और उदासियों के बीच कुछेक हँसी के पल और उम्र भर का मलाल!
अजय सिंह राणा कृत 'भीगे हुए ख़त' काव्य संग्रह की समस्त रचनाएँ उनके विरह की आँच में तपकर अहसासों से सिक्त अलग-अलग ऐसी भाव-छवियां प्रस्तुत करती हैं कि पाठक इनमें अपनी स्मृतियों व मनः
अजय सिंह राणा कृत 'भीगे हुए ख़त' काव्य संग्रह की समस्त रचनाएँ उनके विरह की आँच में तपकर अहसासों से सिक्त अलग-अलग ऐसी भाव-छवियां प्रस्तुत करती हैं कि पाठक इनमें अपनी स्मृतियों व मनःस्थितियों का सह अस्तित्व तलाश करने लग जाता है। इन कविताओं में कवि का अपने प्रिय के प्रति समर्पण, हृदय के आईने में प्रेम की स्मृतियों की उन्मुक्त क्रीड़ाएँ, जज्बातों के तूफान से जनित उदासी व खमोशियाँ, उसके आगोश से दूर रहकर भी रिश्ते को निभाने की अकुलाहट, उसकी यादों की शरण में आकर कभी शीतलता का अनुभव तो कभी अजीब-सी बेचैनी और घुटन को कल्पना-लोक में भोगना आदि स्पष्ट दिखाई देता है। 'भीगे हुए ख़त' प्रेम के विरह पक्ष पर आधारित काव्य संग्रह है। विरह में लिखी कविताएँ आँसुओं में भीगे ख़त ही तो होते हैं जो कभी अपने चाहने वाले तक पहुंच नहीं पाते या उन्हें हम पहुंचा नहीं पाते। वैसे भी प्रेम में मंज़िल नहीं होती बल्कि एक सुंदर सफ़र होता है जिसमें जिस्म का होना मायने नहीं रखता। यह तो रूहों का सफ़र है जो अंतिम श्वास तक निरंतर चलता है। किसी को हासिल करने की जद्दोजहद को इश्क़ नहीं कहते बल्कि उसे पाए बिना ही उसका हो जाने को इश्क़ कहते हैं। यह किताब केवल किताब ही नहीं है बल्कि आँसू और स्याही का वह मिलन है जिससे इसके पृष्ठ रचे गए हैं। इसमें खारेपन के साथ बिछड़ने की टीस भी है लेकिन उसके न होकर भी होने का मीठा सुकून भी है। ये पन्ने वे ख़त हैं जिन पर आँसू रिस-रिसकर अपनी कहानी बयां करते हैं। अहसास में डूबे ये पन्ने आज भी भीगे हुए हैं। शब्दों की बुनावट चाहे जैसी भी हो लेकिन उनके अर्थ आज भी ज्यों के त्यों हैं जिनमें एक तलाश है जो शायद कभी खत्म न हो।
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