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Subrat SaurabhAuthor of Kuch Woh Palरेणु प्रसाद: हिंदी साहित्य से रेणु का रिश्ता बड़ा पुराना है| रेणु ने हिंदी में एम. ए कर पैतीस वर्षों तक हिंदी शिक्षिका के रूप में काम किया है| इनकी रचनाओं में आशावादी दृष्टिकोण का परिचय मिलता है| रेणु ने “अभिव्यक्ति मन की” नामक एक कवRead More...
रेणु प्रसाद: हिंदी साहित्य से रेणु का रिश्ता बड़ा पुराना है| रेणु ने हिंदी में एम. ए कर पैतीस वर्षों तक हिंदी शिक्षिका के रूप में काम किया है| इनकी रचनाओं में आशावादी दृष्टिकोण का परिचय मिलता है| रेणु ने “अभिव्यक्ति मन की” नामक एक कविता संग्रह का प्रकाशन भी किया है, जिसमें जीवन के विभिन्न रंगों का चित्रांकन मिलता है |
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महाभारत एक महाकाव्य है | महाभारत की कथा तो सब बचपन से सुनते आए हैं | इसमें तो कथाओं के अन्दर भी कथा है और बहुत सारे पात्र हैं | इतने सारे पात्र तो हैं लेकिन किसी को शांति नहीं | सब
महाभारत एक महाकाव्य है | महाभारत की कथा तो सब बचपन से सुनते आए हैं | इसमें तो कथाओं के अन्दर भी कथा है और बहुत सारे पात्र हैं | इतने सारे पात्र तो हैं लेकिन किसी को शांति नहीं | सब अपने ही दुःख में पिसे जा रहे हैं |
चाहे भीष्म पितामह हों या धृतराष्ट्र, गांधारी हो या कुंती या फिर द्रौपदी , दुर्योधन,अश्वत्थामा,शकुनि या कर्ण हो सभी के जीवन के अलग- अलग दुःख हैं जो उनके आचरण में परिलक्षित होते हैं | महाभारत के युद्ध मूल कारण तो यही हैं |
इस पुस्तक में कुछ पात्रों की संवेदनाओं को अपने दृष्टिकोण से कवयित्री ने प्रस्तुत करने की कोशिश की है | उनके ह्रदय की वेदना को एक सामान्य इंसान की तरह समझने का प्रयास किया है |
महाभारत एक महाकाव्य है | महाभारत की कथा तो सब बचपन से सुनते आए हैं | इसमें तो कथाओं के अन्दर भी कथा है और बहुत सारे पात्र हैं | इतने सारे पात्र तो हैं लेकिन किसी को शांति नहीं | सब
महाभारत एक महाकाव्य है | महाभारत की कथा तो सब बचपन से सुनते आए हैं | इसमें तो कथाओं के अन्दर भी कथा है और बहुत सारे पात्र हैं | इतने सारे पात्र तो हैं लेकिन किसी को शांति नहीं | सब अपने ही दुःख में पिसे जा रहे हैं |
चाहे भीष्म पितामह हों या धृतराष्ट्र, गांधारी हो या कुंती या फिर द्रौपदी , दुर्योधन,अश्वत्थामा,शकुनि या कर्ण हो सभी के जीवन के अलग- अलग दुःख हैं जो उनके आचरण में परिलक्षित होते हैं | महाभारत के युद्ध मूल कारण तो यही हैं |
इस पुस्तक में कुछ पात्रों की संवेदनाओं को अपने दृष्टिकोण से कवयित्री ने प्रस्तुत करने की कोशिश की है | उनके ह्रदय की वेदना को एक सामान्य इंसान की तरह समझने का प्रयास किया है |
यह कहानी संग्रह ‘खुरदुरा सच’ ऐसी कहानियों का संग्रह है जो मन को कड़वाहट से ही नहीं भरता है बल्कि दिल को छलनी कर देता है |हमारे समाज में ही ऐसे पढ़े- लिखे लोग हैं जो बाहर बड़ी लम्बी -च
यह कहानी संग्रह ‘खुरदुरा सच’ ऐसी कहानियों का संग्रह है जो मन को कड़वाहट से ही नहीं भरता है बल्कि दिल को छलनी कर देता है |हमारे समाज में ही ऐसे पढ़े- लिखे लोग हैं जो बाहर बड़ी लम्बी -चौड़ी बातें करते हैं लेकिन उनके घर में बुजुर्गों को वह सम्मान और देखभाल नहीं मिलता है जिसके वे हकदार होते हैं |
कुछ दिखावे की जिंदगी जीना पसंद करते हैं और स्वार्थ सिद्धि के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं |कई ऐसे होते हैं जो समाज में अपनी इज्जत ढकने में लगे रहते हैं |हमारे समाज में ,परिवार में न जाने ऐसी कितनी कहानियां पलती रहती हैं लेकिन हम स्वार्थ में डूबे समझ ही नहीं पाते हैं | जब समझ पाते हैं तबतक देर हो चुकी होती है |
कुछ ऐसी ही परिस्थितियों को देख, समझ और परख कर ताना बाना बुना गया है |
क्षितिज के परे ...( एक नई उड़ान ) विचारों की एक कड़ी है |
हम जिस परिवार, समाज ,राष्ट्र में रहते हैं वहां पारिवारिक ,सामाजिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक सम्बन्धी अनेक गतिविधियाँ चलती रहती ह
क्षितिज के परे ...( एक नई उड़ान ) विचारों की एक कड़ी है |
हम जिस परिवार, समाज ,राष्ट्र में रहते हैं वहां पारिवारिक ,सामाजिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक सम्बन्धी अनेक गतिविधियाँ चलती रहती हैं और चलनी भी चाहिए क्योंकि ये सब उनकी बेहतरी और विकास के लिए होती हैं |लेकिन कई बार कुछ गतिविधियाँ जो स्वार्थ लालच और दिखावे से भरी होती हैं हमारे मन में कई सवाल खड़े कर देती हैं |
हमारा मन यह सोचकर उद्वेलित हो उठता है कि ऐसा क्यों हैं ?लोग समाज हित ,राष्ट्र हित को भूलकर स्वहित को ज्यादा महत्त्व देने लगे हैं |परिवार के सदस्य सिर्फ अपने ही सुख पर ध्यान देने लगे हैं |स्वार्थ ने इस कदर अंधा बना दिया है कि विवेक शक्ति शून्य पड़ गयी है |
आधुनिकता की दौड़ में हमारी सोच ,रीति रिवाज ,मान्यताओं में भी बदलाव आता जा रहा है |सकारात्मक बदलाव तो प्रशंसा के काबिल हैं पर नकारात्मक बदलाव दिल को दुखानेवाले होते हैं और नए तरीकों से सोचने पर विवश कर देते हैं |
जहां पीत पत्रकारिता (yellow journalism)राष्ट्र के चौथे स्तंभ की नींव पत्रकारिता को धराशायी करने पर तुली हुई है तो वहीं देश की शिक्षा व्यवस्था इतनी व्यावसायिक हो गयी है कि पढ़ाई से ज्यादा नंबर गेम ( number game ) का रूप लेती जा रही है|
कहीं -कहीं धार्मिक आस्थाओं में विश्वास करनेवालों की कथनी और करनी में बहुत अंतर देखने को मिलता है ,धर्म के नाम पर लोग समाज को बांटने में भी लगे हैं |
आधुनिक नारी पर घर और बाहर की दोहरी मार और उनका शोषण भी एक शोचनीय विषय है|
समाज में डिप्रेशन की समस्या भी बढती जा रही है और इसका एकमात्र हल है हमारी सकारात्मक सोच
इस किताब में इन सारे विषयों पर नए विचार रखने की कोशिश की गयी है |
‘अकुलाहट’ जिसमें अधीरता है, व्यग्रता है ,घबराहट है और साथ में एक छटपटाहट और तड़प भी है |मन में सैंकड़ों सवालों के सांप रेंगते रहते हैं |उनके दंश पीड़ा भी पहुंचाते हैं पर विवशता ऐसी
‘अकुलाहट’ जिसमें अधीरता है, व्यग्रता है ,घबराहट है और साथ में एक छटपटाहट और तड़प भी है |मन में सैंकड़ों सवालों के सांप रेंगते रहते हैं |उनके दंश पीड़ा भी पहुंचाते हैं पर विवशता ऐसी कि उनसे मुक्ति पाकर खुल कर सांस लेना संभव नहीं होता |कभी समाज रास्ता रोकता है तो कभी परिवार तो कभी परिवेश या रिश्तेदार |
मन में भावनाओं का आवेग ,उफान उठता है लेकिन यह ज्वार मन की दीवारों से टकराकर वहीं उमड़-घुमड़ कर भँवर का रूप ले लेता है और धीरे-धीरे सैंकड़ों सवालों के साँप उसी भँवर में समा जाते हैं और रह जाती है सिर्फ घुटन |
कुछ इन्हीं भावों का मूर्त रूप है ‘अकुलाहट’ जो हमारी, आपकी किसी की भी हो सकती है | हम इंसान संवेदनशील हैं और संवेदनशील हैं तो अनपेक्षित परिवेश , उपेक्षित व्यवहार, ओढ़े हुए रिश्ते आदि हम पर अपना असर डालेंगे ही |ये हम पर नकारात्मक प्रभाव ही छोड़ते हैं |यही नकारात्मकता इस प्रकार मन में घर कर जाती है कि अंत में घुटन का रूप ले लेती है | यह घुटन दीमक की तरह धीरे-धीरे हमारे मन को कमजोर कर देती है |
यह कहानी एक ऎसी नारी की है जो अपने जीवन की आड़ी तिरछी रेखाओं से होते हुए अपना जीवन संवारने निकलती है लेकिन एक अवांछित लकीर उसके सपनों के महल को तहस-नहस कर देती है| जैसे ताश के महल से
यह कहानी एक ऎसी नारी की है जो अपने जीवन की आड़ी तिरछी रेखाओं से होते हुए अपना जीवन संवारने निकलती है लेकिन एक अवांछित लकीर उसके सपनों के महल को तहस-नहस कर देती है| जैसे ताश के महल से एक पत्ता भी हिलता या खिसकता है तो महल धराशायी होने लगता है कुछ वैसे ही हालात हो जाते हैं | फिर भी वो अपने अंतर्मन के आयतन से अवसाद और पीड़ा को निकालकर जीवन को जीवन बनाने की कोशिश में लगी रहती है | लेकिन बार- बार जिन्दगी दर्द देने लगे तो वह क्या करे ? कैसे जिए और किसके लिए जिए ? इन सब सवालों के जाल में उलझती हुई नायिका प्रमिला का यह दूसरा भाग उसकी नकारात्मकता से सकारात्मकता तक पहुँचने के सफ़र की कहानी है जिसमें वह अपने जीवन को एक नया मोड़ देने में सफल होती है |
‘प्रमिला’ का दूसरा भाग लिखने के पीछे मेरी यही मंशा रही कि ऐसी प्रमिलायें भी एक नयी सोच के साथ अपनी जिंदगी को एक नया मोड़ दे सकती हैं ,जिंदगी को सार्थकता प्रदान कर सकती हैं |
नकारात्मकता (नेगिटीविटी) से सकारात्मकता (पोजिटीविटी ) का यह सफ़र थोडा लम्बा अवश्य हो गया है | इसकी भी वजह है कि किसी में भी यह परिवर्तन अचानक नहीं आ सकता, उस घनीभूत पीड़ा को पिघलने में वक्त लगता है | मन के अन्दर जमी निराशा की मैल अगर खुरच कर साफ़ करने की कोशिश करेंगे तो मन घायल हो सकता है और परिणाम खरोंच रूपी घाव के रूप में विपरीत भी मिल सकता है |
यह जीवन सुख – दुःख , उतार- चढाव की आड़ी- तिरछी रेखाओं के बीच से गुजर कर ही अपनी मंजिल तक पहुँचता है और अपने को सार्थक बनाता है | इसमें कोई एक भी गलत निर्णय ,एक भी गलत व्यक्ति का प्रव
यह जीवन सुख – दुःख , उतार- चढाव की आड़ी- तिरछी रेखाओं के बीच से गुजर कर ही अपनी मंजिल तक पहुँचता है और अपने को सार्थक बनाता है | इसमें कोई एक भी गलत निर्णय ,एक भी गलत व्यक्ति का प्रवेश या गलत हालात उसकी जड़ें हिला कर रख देते हैं | वह जीवन घुटन और तकलीफों से भर जाता है |
यह कहानी एक ऎसी नारी की है जो अपने जीवन की आड़ी तिरछी रेखाओं से होते हुए अपना जीवन संवारने निकलती है लेकिन एक अवांछित लकीर उसके सपनों के महल को तहस-नहस कर देती है| जैसे ताश के महल से एक पत्ता भी हिलता या खिसकता है तो महल धराशायी होने लगता है कुछ वैसे ही हालात हो जाते हैं | फिर भी वो अपने अंतर्मन के आयतन से अवसाद और पीड़ा को निकालकर जीवन को जीवन बनाने की कोशिश में लगी रहती है | लेकिन बार- बार जिन्दगी दर्द देने लगे तो वह क्या करे ? कैसे जिए और किसके लिए जिए ? इन सब सवालों के जाल में उलझती हुई नायिका प्रमिला अपने जीवन के ताने बाने को सुलझाने में कितनी सफल हो पाती है –इसका जवाब है यह उपन्यास |
प्रमिला हमारे वर्तमान समाज में जीनेवाली एक आम लड़की है जो जीवन के दुःख-सुख ,उतार-चढ़ाव ,किन्तु-परन्तु ,अगर-मगर सब को झेलते हुए ,समाज के दकियानूसी विचारों का सामना करते हुए अपनी पहचान बनाने और पहचान पाने के लिए निरंतर जूझती हुई एक इतिहास रच डालती हैं | इस की कथावस्तु में आज के समाज में घटनेवाली रोजमर्रा की घटनाएं हैं जिन्हें कल्पना का जामा पहनाकर प्रस्तुत किया गया है |
बालपन से गुजरते हुए यौवन की दहलीज पर कदम रखने से पहले हर बच्चे को एक बड़ी ही कठिन अवस्था से होकर गुजरना पड़ता है और यही अवस्था उसके भविष्य निर्धारण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती ह
बालपन से गुजरते हुए यौवन की दहलीज पर कदम रखने से पहले हर बच्चे को एक बड़ी ही कठिन अवस्था से होकर गुजरना पड़ता है और यही अवस्था उसके भविष्य निर्धारण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है| अगर उन गलियों की भूल- भुलैया से बचकर वह निकल जाता है तो जिन्दगी बन गयी नहीं तो जीवन भर वे उलझनें उसका पीछा नहीं छोड़तीं|यह है किशोरावस्था .....बचपन और जवानी के बीच का संधिकाल....हार्मोनल चेंजेज से गुजरता हुआ बड़ा ही जोखिम भरा समय| बड़ी ही विचित्र कहानी होती है - न तो मन से पूर्ण विकसित और न ही तन से पूर्ण विकसित और मजे की बात यह है कि समझते वे अपने को किसी से कम नहीं| झल्लाहट तब होती है जब उनकी गिनती न तो बड़ों में होती है और न ही छोटों में|छोटों के बीच हों तो बड़े होने का ताना और बड़ों के बीच बैठ जाएं तो छोटे होने का उलाहना| ऐसे में वे जियें तो जिएँ कैसे ?
लगभग सारा किशोर वर्ग यानी ‘टीनएजर्स’ अनेक अलग –अलग कारणों से शारीरिक और मानसिक प्रताड़ना का शिकार है| मन से पूरी तरह समझदार न होने के कारण प्रतिकूल परिस्थितियाँ आने पर मन में एक डर समा जाता है चाहे वह पिता की डांट का डर हो या शिक्षक की डांट का, किसी अनजान व्यक्ति की धमकी का या किसी रिश्तेदार के द्वारा अनैतिक दबाब का डर और इस भय का शासन तब तक मन पर चलता रहता है जब तक कोई सही दिशा निर्देश देने वाला नहीं मिल जाता है| मार्गदर्शक का भी कार्य भी तब तक उतना सरल नहीं होता है जब तक उन्हें वह अपने विश्वास में नहीं लेता| वर्तमान में इस उम्र के सामने इंटरनेट ,सोशल मीडिया आदि के कारण चुनौतियां और भी ज्यादा बढ़ गयी हैं| इन्हें हमारे छाँव और मार्गदर्शन की जरुरत है| 'कोई तो हमें थाम लो ' इन्हीं समस्याओं से होते हुए समाधान की एक कोशिश है |
'अभिव्यक्ति’ मेरी कविताओं का संकलन है |
‘अभिव्यक्ति’ किसी एक भाव या विषय विशेष को लेकर नहीं है | इसमें जीवन के विभिन्न रंगों को उकेरने की कोशिश की है मैंने | कहीं जीवन एक संघ
'अभिव्यक्ति’ मेरी कविताओं का संकलन है |
‘अभिव्यक्ति’ किसी एक भाव या विषय विशेष को लेकर नहीं है | इसमें जीवन के विभिन्न रंगों को उकेरने की कोशिश की है मैंने | कहीं जीवन एक संघर्ष है, अंतर्द्वंद्व, चुनौती है तो नकारात्मकता पर सकारात्मकता की जीत भी है | शब्दों के अलग- अलग प्रयोग मुझे हमेशा से आकर्षित करते रहे हैं | मेरी कुछ रचनाएं साहित्य से भी सम्बंधित हैं | अन्य समकालीन विषयों ने भी मेरे मन को झिंझोड़ा है इसलिए उनके प्रति अपने भावों को प्रकट करने का लोभ मैं संवरण नहीं कर सकी | कई रचनाओं में मैंने रिश्तों, प्यार और लाचारगी के बीच भी जीने की कोशिश की है | कुछ कविताएँ परिस्थितिजन्य प्रेरणाओं के कारण हैं और कुछ आत्म-चिंतन और आत्मानुभव से प्रेरित हैं |
साहित्य से मेरा जुड़ाव बचपन से रहा है | साहित्य- सृजन का कार्य बहुत दिनों से कर रही थी और यह कार्य एक तरह से स्वान्तः सुखाय के लिए था | अपने आस- पास घटित घटनाओं को देखकर परिचित- अपरिचित चेहरों के बीच मन अकुलाकर कुछ कहने को विवश हो उठता है | यह मेरी अकुलाहट तब तक शान्ति के कगार तक नहीं पहुँच पाती जब तक मैं उनको शब्दों का जामा पहनाकर कागज़ पर नहीं उतार लेती | यही ‘अभिव्यक्ति’ है |
मैं पैंतीस वर्षों तक शिक्षण कार्य से जुडी रही इसलिए अपनी रचनाओं के प्रकाशन का ध्यान ही कभी नहीं आया | अब साहित्य प्रेमियों तक अपनी रचनाओं के माध्यम से अपने भावों को पहुंचाने का एक छोटा और प्रथम प्रयास कर रही हूँ | आशा है आप इसे अपने ह्रदय में स्थान देंगे |
इंसान मर सकते हैं, लेकिन प्यार कभी नहीं मरता | यही मोह और नफरत पर भी लागू होता है | कभी कभी हमारी अधूरी कामनाएं और इच्छाएं हमें इस नश्वर संसार में बाँध लेती हैं |
दो हज़ार सालों
इंसान मर सकते हैं, लेकिन प्यार कभी नहीं मरता | यही मोह और नफरत पर भी लागू होता है | कभी कभी हमारी अधूरी कामनाएं और इच्छाएं हमें इस नश्वर संसार में बाँध लेती हैं |
दो हज़ार सालों से चंद्रिमा ने अनगिनत आत्माओं को भवसागर सेतु को पार करने में मदद की है | पर क्या वज़ह है कि वह खुद इस अलौकिक पुल को आज तक न पार कर पाई ? क्या एक नश्वर मनुष्य ही चंद्रिमा के मोक्ष का माध्यम बनेगा ?
जिंदगी है तो मुश्किलें हैं , मुश्किलें हैं तो रास्ते हैं | जिंदगी में वक्त कभी एक जैसा नहीं रहता | हर मोड़ पर जिंदगी चौंकाती है , हर मोड़ के बाद एक नया रास्ता ,एक नयी मंजिल मिल ही जाती है.
जिंदगी है तो मुश्किलें हैं , मुश्किलें हैं तो रास्ते हैं | जिंदगी में वक्त कभी एक जैसा नहीं रहता | हर मोड़ पर जिंदगी चौंकाती है , हर मोड़ के बाद एक नया रास्ता ,एक नयी मंजिल मिल ही जाती है...
कभी हमारी चाहत तो कभी किस्मत हमें वो रास्ते दिखाती है और जिन्दगी हमें चलना सिखाती है |
दूर – दूर तक जिसकी कल्पना भी मन ने नहीं की होती है वो सब ऐसे हो जाता है जैसे सब पहले से निर्धारित हो रखा हो | रास्ते में आ रही कठिनाइयों से पार पा , बिना डगमगाए जिंदगी का सफ़र पूरा करना , हर दिन किसी नयी चुनौती का सामना , नए तजुर्बे , नयी विचारधारा ,नया जोश ........ जीना इसी का तो नाम है |
इस उपन्यास की कहानी जीवन के इसी सत्य से हमें रूबरू करवाती है | जब ऊंची डिग्रियां लेकर भारतीय युवक अपनी धरती पर अपने सपने तलाशने की जगह विदेश में अपना सपना तलाशना पसंद करते हैं तो अनेक कड़वी सच्चाइयों का सामना करना पड़ता है | ऐसे में जो इनसे घबराए बिना चुनौतियों का सामना कर अपने सपने को साकार कर लेते हैं वही जीवन के योद्धा कहलाते हैं|
हमारे समाज में ऐसे अनेक लोग मिल जाएंगे जिन्हें इन परिस्थितियों से गुजरना पड़ा है | इन्होने कभी हार नहीं मानी | इनके जीवट जुझारूपन ने मुझे यह कहानी लिखने के लिए प्रेरित किया|
कहानी का नायक अमित भी उन में से एक है | जिंदगी उसे हर मोड़ पर चौंकाती है ,प्रतिकूल परिस्थितियाँ उत्पन्न करती हैं लेकिन हार न मानते हुए वह नयी सोच और बुलंद हौसले के साथ उनको पीछे छोड़कर आगे बढ़ जाता है | अमित की यह कहानी उन युवाओं के लिए एक पैगाम भी है जो अपने पथ का निर्माण करने निकलते हैं लेकिन पथ के काँटों और कंकड़ों को देखकर पलायन कर जाते हैं और जीवन में कुछ हासिल नहीं कर पाते है |
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