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Subrat SaurabhAuthor of Kuch Woh Palयह कहानी एक ऎसी नारी की है जो अपने जीवन की आड़ी तिरछी रेखाओं से होते हुए अपना जीवन संवारने निकलती है लेकिन एक अवांछित लकीर उसके सपनों के महल को तहस-नहस कर देती है| जैसे ताश के महल से एक पत्ता भी हिलता या खिसकता है तो महल धराशायी होने लगता है कुछ वैसे ही हालात हो जाते हैं | फिर भी वो अपने अंतर्मन के आयतन से अवसाद और पीड़ा को निकालकर जीवन को जीवन बनाने की कोशिश में लगी रहती है | लेकिन बार- बार जिन्दगी दर्द देने लगे तो वह क्या करे ? कैसे जिए और किसके लिए जिए ? इन सब सवालों के जाल में उलझती हुई नायिका प्रमिला का यह दूसरा भाग उसकी नकारात्मकता से सकारात्मकता तक पहुँचने के सफ़र की कहानी है जिसमें वह अपने जीवन को एक नया मोड़ देने में सफल होती है |
‘प्रमिला’ का दूसरा भाग लिखने के पीछे मेरी यही मंशा रही कि ऐसी प्रमिलायें भी एक नयी सोच के साथ अपनी जिंदगी को एक नया मोड़ दे सकती हैं ,जिंदगी को सार्थकता प्रदान कर सकती हैं |
नकारात्मकता (नेगिटीविटी) से सकारात्मकता (पोजिटीविटी ) का यह सफ़र थोडा लम्बा अवश्य हो गया है | इसकी भी वजह है कि किसी में भी यह परिवर्तन अचानक नहीं आ सकता, उस घनीभूत पीड़ा को पिघलने में वक्त लगता है | मन के अन्दर जमी निराशा की मैल अगर खुरच कर साफ़ करने की कोशिश करेंगे तो मन घायल हो सकता है और परिणाम खरोंच रूपी घाव के रूप में विपरीत भी मिल सकता है |
रेणु प्रसाद
हिंदी साहित्य जगत में एक प्रतिष्ठित साहित्यकार के रूप में अपनी पहचान बनाने वाली रेणु प्रसाद झारखंड प्रान्त के बोकारो स्टील सिटी की निवासी हैं | ये हिंदी साहित्य में एम. ए. हैं और यहाँ के प्रसिद्ध संत जेवियर्स विद्यालय में 35 वर्षों के शिक्षण कार्य का इन्हें अनुभव है | जीवन के प्रति सकारात्मक सोच रखने वाली रेणु प्रसाद की पांच रचनाएं प्रकाशित हो चुकी हैं ,जिनमें एक काव्य संकलन ‘अभिव्यक्ति मन की ..’ दो उपन्यास ‘नए सफ़र की ओर’ एवं ‘चन्द्रमहल’ तथा एक कहानी संग्रह ‘कोई तो हमें थाम लो ’ हैं | विभिन्न पत्र -पत्रिकाओं में इनकी कहानियाँ ,कवितायेँ एवं लेख आदि समय- समय पर प्रकाशित होते रहते हैं | हर रचना जीवन के नए रूप से हमारा परिचय कराती है |
पांचवीं पुस्तक ‘प्रमिला’ एक ऐसी नारी की कहानी है जो विधि के विधान की चुनौतियों का सामना करते हुए अपनी जिंदगी को नयी दिशा देने में जुटी हुई है | प्रस्तुत उपन्यास प्रमिला का दूसरा भाग है |
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