प्रिय पाठकों प्रेम जीवन की वह अमूल्य भेंट है, जिसके होने मात्र से कुछ ना होते हुए भी बहुत कुछ होता हुआ प्रतीत होता है। प्रेम स्वयं का दूसरे के प्रति समर्पण है। यदि इसे और अधिक महत्व दें तो आत्मसमर्पण कहना गलत नहीं होगा। प्रेम के यथार्थ के विषय में यदि कहा जाए तो प्रेम निश्छल और निःस्वार्थ होना चाहिए क्योंकि जहाँ स्वार्थ है वहाँ प्रेम है ही नहीं।
प्रेम को समझना बहुत ही सरल किंतु उतना ही कठिन भी है। और यह सबकुछ परिस्थितियां तय करती हैं। कभी कभी परिस्थितिय