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Subrat SaurabhAuthor of Kuch Woh Palबांसुरी..... इस एक शब्द में भारतीय सृजनशीलता के अंतरतम को अभिव्यंजित कर सकनें की क्षमता है । भारतीय कला संस्कृति इतिहास और मिथकों की विरासत जैसे इस एक शब्द में समायी हुई है इसके सुरों में जो गीतों के रूप में यहां पिरोए हुए हैं, हमारा अतीत झिलमिलाता है, वर्तमान कुरेदता है और भविष्य पुकारता है। यह बांसुरी ध्वनित हो रही है हमें वह सच सुनाने के लिए जिसे हम चाह कर भी अनसुना नहीं कर सकते। इसकी धुन में आपको बाहर का शोर भी सुनाई देगा और भीतर की शांति भी। रोज-ब- रोज के मानवीय सुख-दुख और जीत हार के खट्टे-मीठे अनुभव-संवेदना के साथ-साथ इसमें अंतर्मुख चेतना से उपजे स्थायी और व्यापक मूल्यों की लय है जो देश-काल-निरपेक्ष सत्य की अनुगूंज पैदा करती है।
आम धारणा है कि कविता केवल भोली और कोमल भावनाओं के क्षेत्र में विचरण करती है और तीखे विश्लेषण से कविता का कोई लेना-देना नहीं। लेकिन, एक सच्चा कवि केवल अपने हृदय के भाव- प्रकोष्ठ में कैद नहीं रह सकता। उसे सबके हृदय में पहुंचना होता है अंतःकरण का यह विस्तार ही उसके रचना-कर्म को सार्थक करता है। बांसुरी की यह गूंज समसामयिक यथार्त के कर्णपटों पर भी आहट पैदा करती है। इसे सुनने के लिए संवेदनशील मन की तो दरकार है ही, साथ ही एक साहसिक उत्कंठा भी होनी जरूरी है।क्या आप इस साहस का दावा करेंगे?
सुरेंद्र कुमार चौधरी
सन् 1939 ई. में बिहार के मुंगेर जिले में जन्मे श्री सुरेंद्र कुमार चौधरी कटिहार के एक उच्चतर माध्यमिक कॉलेज में प्रधानाचार्य थे। उनका अध्ययन गहरा था और अपनी चिंतनशील रचनात्मक प्रवृत्ति के कारण वे अपने आस-पास के लोक-वृत्त में खासे लोकप्रिय थे। उनकी कविताएँ और आलेख समय-समय पर विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में छपते रहते थे। राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर का भी सान्निध्य उन्हें मिला । दिनकर जी के विचारों और काव्य विवेक से उन्हें काफ़ी प्रेरणा मिली। अपने काव्य कर्म के लिए सन् 1965 ई. में स्वयं दिनकर जी के हाथों सम्मानित हुए। सुरेंद्र जी अपने समय और परिवेश के सजग साक्षी रहे थे। यही कारण है कि अपने सामाजिक सत्य की इतनी कुशल और मार्मिक अभिव्यक्ति अपनी रचनाओं में वे कर सके। भारतीय युवा पीढ़ी की शक्ति और संभावनाओं में उनकी अगाध और अडिग आस्था थी, जो उनकी अध्यापकीय जीवनवृत्ति का सहज प्रतिफल है। युवा में उनकी यह आस्था उनकी काव्य भूमि की अंतः सलिला है।
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