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Subrat SaurabhAuthor of Kuch Woh Palहिन्दी भाषा में शरीर क्रिया विज्ञान को प्रस्तुत करने में सर्वप्रथम महत्व है उपयोग किये गये शब्दों की यथातथ्य बाध्यता (ऐक्यूरसि)। यह वह शब्द है जो साधारणतः उपयोग में आते हैं और जिनका उपयोग पुस्तक में तकनीकी शब्दों के संदर्भ में शारीरिक क्रियाओं के समझने के प्रयत्न में किया गया है। जबकि तकनीकल शब्द जो बहुतायत में अंग्रेजी में हैं प्रस्तुत किये गये हैं देवनागरी लिपी में प्रायः बिना किसी परिवर्तन के। परिणामस्वरूप देवनागरी लिपि में समाहित तकनीकी शब्द तथा जनमान्य शब्द समग्रता में प्रस्तुत हो, विषय को तथ्यपूर्णता प्रदान करते हैं, एक मौलिकता का आभास देते हुए। इसीलिये प्रस्तुति प्रवहमान व गतिशील है।
पुस्तक का प्रथम अध्याय शरीर क्रिया विज्ञान की रूपरेखा की सरल प्रस्तुति है। तत्पश्चात सेल मेम्ब्रेन स्ट्रक्चर व संलग्न ट्रांसपोर्ट मिकेनिज्म, कार्डिअक इलेक्ट्रोफिजिओलाजि, न्यूरल व केमिकल रिस्परेटरी कंट्रोल, रीनल मिकेनिज्म, स्केलटल मसिल कान्ट्रेक्शन, परिफरल व सेंट्रल न्यूरोफिजियोलाजिक फंक्शन, स्पेशल सेंसेज, और आटोनामिक नर्वस सिस्टम समुचित विस्तार में प्रस्तुत किये गये हैं। यही स्थिति गेस्ट्रोइन्टेस्टाइनल सिस्टम, मिटेबालिज्म व न्यूट्रीशन के संदर्भ में भी है। ऐन्डोक्राइनोलाजी, हारमोनल ऐकशन, ऐन्डोक्राइन सिक्रीशन का नर्वस कंट्रोल, तथा रिप्रोडक्शन, मेटरनल व फीटल फिजियोलाजि भी उचित विस्तर में प्रस्तुत हैं।
यह पुस्तक पूर्णतः आथेन्टिक है और अन्डर ग्रेजुएट व पोस्ट-ग्रेजुएट मेडिकल विद्यार्थियों के लिए ही नहीं बल्कि संलग्न पाठ्यक्रमों के लिए भी उपयोगी है।
रोहिताश कुमार शर्मा
अन्डरग्रेजुएट मेडिकल कोर्स पूर्ण करने के पश्चात् मैंने M.D. (फिजियोलाजी) में प्रवेश प्राप्त किया उसी संस्थान में जो एक सेन्ट्रल विश्वविद्यालय का भाग था। M.D. कोर्स की आवश्यकता है मेडिकल स्टूडेंट को पढ़ाना तथा M.D. थीसिस के लिये रिसर्च करना। इस कोर्स को पूरा करते-करते पढ़ना-पढ़ाना व रिसर्च करना मेरे जीवन का ध्येय बन गया। मुझे इसी संस्थान में लेकचरर बना दिया गया और उसके पश्चात् रीडर व प्रोफेसर के पद भी दिये गये तथा विभागाध्यक्ष भी बनाया गया।
इस दौरान रिसर्च के विषय रहे, प्रोटीन-केलोरीमाल न्यूट्रीशन, ऊँचे तापक्रम के प्रभाव, कुटज, व ऐन्टी केन्सर ड्रग विन-क्रिस्टीन और विन-ब्लास्टीन; परन्तु कार्य का सिस्टम एक ही रहा। गेस्ट्रोइस्टेस्टाइनल ट्रेक्ट, विशेषतः छोटी आंत।
अनेक संस्थानों ने मुझे इम्तहान लेने के लिए बुलाया तथा एक एक्सपर्ट की तरह भी मैं उनमें गया।
रिसर्च के परिणामस्वरूप रिसर्च पेपर नेशनल व इन्टरनेशनल जनरल में प्रकाशित हुये जिनको इन्टरनेट पर देखा जा सकता है। मेरे कार्य को केन्सर व फार्मेकोलाजी की किताबों में जगह मिली।
सन 1977-78 में कामनवेल्थ मेडिकल फेलोशिप दी गयी और मुझे डिपार्टमेंट ऑफ बायोकेमिस्ट्री, आक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी, यू.के. में कार्य करने का सौभाग्य भी प्राप्त हुआ।
स्टूडेंट के साथ डिसकशन के समय अंग्रेजी का प्रयोग होता था, परन्तु बीच-बीच में स्टूडेंट का हिन्दी में उत्तर देना या हिन्दी में प्रश्न पूछना हमेशा होता था। चूँकि विद्यार्थी सारे देश से चुने जाते थे, उनका यह व्यवहार मुझे हिन्दी में किताब लिखने की प्रेरणा दे गया।
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