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imagination of paradise / जन्नत की कल्पना

Author Name: Abdul Waheed | Format: Paperback | Genre : Literature & Fiction | Other Details

जन्नत या स्वर्ग की कल्पना लगभग सभी धर्म में एक विचार के रूप में उपस्थित है, हालांकि जन्नत या स्वर्ग की कल्पना का उद्देश्य इंसान को सही रास्ते पर लाकर उसको स्वर्ग का प्रलोभन देना इसको गलत कार्यों से बचाना है। लेकिन वर्तमान समय में इस विचार का अर्थात स्वर्ग की कल्पना का दुरुपयोग हो रहा है अधिकतर लोग स्वर्ग का प्रलोभन देकर पैसा ऐठ लेते हैं व धर्म की आड़ में बेवकूफ बनाते हैं। लेकिन स्वर्ग है या नहीं यह एक गहन प्रश्न है और न यह जीवन में पूर्णतया स्पष्ट हो सकता है कि स्वर्ग है या नहीं ? क्योंकि स्वर्ग की कल्पना करने के पश्चात ही प्राप्त होती है इसलिए यह विज्ञान के नजर में निरर्थक है। क्योंकि विज्ञान या नास्तिक लोग बिना देखे कुछ भी नहीं मानते इसलिए स्वर्ग की कल्पना उनके लिए निरर्थक है। हालांकि इंसान के जीवन में कुछ ऐसे अनसुलझे रहस्य है जिस पर स्वर्ग के बारे में विचार करना पड़ता है जैसे कि इंसान का जन्म कहां से हुआ वह कहां से आया? इसी प्रकार से मृत्यु के बाद कहां जाता है? क्या होता है और सो जाने के बाद सपने कैसे आते हैं? ऐसे अनेकों प्रकार के प्रश्न दिमाग में बने रहते हैं। इसको भले ही साफ इंकार न करें लेकिन खामोशी जरूर रहती है। जन्नत की कल्पना एक सपने की दुनिया की तरह है जो कि बड़ी ही आनंदमय है लेकिन यथार्थ क्या है ? यह किसी को नहीं पता ।

इसी संबंध में यह छोटी सी पुस्तक अनेकों धर्म के अंदर जो स्वर्ग की कल्पना की गई है उसी के बारे में संक्षिप्त वर्णन है। मुझे जहां तक जानकारी प्राप्त हुई है मैंने सामग्री एकत्रित की है। यदि आपके पास इससे अधिक जानकारी हो तो कृपया अवगत करायें मैं आपकी जानकारी को साझा करूंगा। 

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अब्दुल वहीद

मेरा नाम अब्दुल वहीद है, मेरे पिता का नाम स्वर्गीय हाजी उबैदुर्रहमान है व माता का नाम जैबुन्निसा है। मैंने बचपन से ही वैज्ञानिक विचारधारा को पसंद किया है और शांत स्वभाव व पुस्तकों से लगाव रहा है। जिससे मेरी रोज जिज्ञासा रुचि निरंतर नए-नए खोजो की जानकारी में प्रयुक्त रहा है। मैं B.Sc करते समय पालीटेक्निक में सेलेक्शन हो गया था, लेकिन दुर्भाग्यवश अधूरा रह गया था क्योंकि पिता और भाई का सड़क दुघर्टना में सर्वगवास हो गया था ।

मेरे पिता जी की दो बातें जो, मेरे जीवन के लिए अत्यंत अनमोल है

 प्रथम– इमानदारी से कमाओ झूठ का सहारा मत लो,

दूसरा– अन्न की इज्जत करो और जितना खाना हो उतना ही लो।

 इसलिए घर की जिम्मेदारी, फिर बाद में विवाह हो जाने के कारण शिक्षा अधूरी रह गई । फिर भी हिम्मत नहीं हारा और आज आपके सामने मेरे विचारों के रूप में पुस्तक उपलब्ध है । मेरे लेख प्रसिद्ध पत्र-पत्रिकाओं में भी छप चुके हैं। यदि कोई जानकारी अधूरी रह गई हो तो कृपया जरुर अवगत कराये ।

 पुस्तक पढ़ने के लिए 

धन्यवाद, 

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