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Jeena Yahan : Marna Yahan / जीना यहाँ : मरना यहाँ

Author Name: Subhash Bansal | Format: Paperback | Genre : Literature & Fiction | Other Details

समाजोपयोगी श्रेणी में रखे जाने वाला यह आत्मकथात्मक उपन्यास एक ऐसे सामान्य व्यक्ति के अनुभवों का निचोड़ है जिसने व्यक्तिगत विषमताओं, पीड़ाओं तथा समस्याओं की सीमा लांघते हुए अपने अनुभवों एवं निष्कर्षों को निस्संकोच दर्ज किया है।

सुभाष को कैंसर रोगियों के साथ लंबा समय व्यतीत करने का अवसर मिला। ये लोग अधिकतम समय तक कैसे स्वस्थ रहें? बीमारी के दौरान इनके इलाज व ठीक हो जाने के पश्चात इनकी देखभाल के लिए क्या - क्या सावधानियां बरती जाएं? ये सब जानकारी अत्यंत रोचक शैली में पाठकों के सामने परोस दी गई है। 

लोकहित में कार्य करने की इच्छा रखने वाले व्यक्तियों के लिए इस पुस्तक का अध्ययन निश्चित रूप से उपयोगी होगा।

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सुभाष बन्सल

जन्मः 1946, हरियाणा के प्रमुख नगर अम्बाला छावनी में। साहित्यिक रुचि तथा परिष्कृत संस्कार नाना व दादा दोनों के परिवारों से विरासत में मिले। आर्थिक रूप से स्वाधीन होने के बावजूद जीवन-संघर्ष को करीब से देखने के पर्याप्त अवसर मिले। वही वास्तविक पाठशाला बनी। जितने हमसफर मिले, वे सब के सब सिखाने के मामले में गुरु का रोल अदा करते चले गये।

 ‘साईं इतना दीजिये, जामें कुटुम समाये।‘ मैं भी भूखा न रहूँ, साधु न भूखा जाये।।’’ की तर्ज़ पर चलते-चलते आत्म-सम्मान से समझौता करने की कभी नौबत नहीं आई। अध्ययन, अध्यापन, व्यापार, लेखन, पत्रकारिता, सम्पादन सभी कुछ पूरी रुचि व कुशलता के साथ किया I

ग़ालिब ने अपने एक शेर में लिखा है- ' ग़ालिब बुरा न मान जो वाइज़ बुरा कहे, ऐसा भी कोई है कि सब अच्छा कहें जिसे।' ज्यादा तो क्या कहा जाए पर एक बात इनके बारे में जो सुनने को अक्सर मिली है कि ‘चाहे कुछ भी हो पर आदमी बुरा नहीं है। भरोसेमन्द है, लायक है और जुबान व कलम दोनों पर पूरा इख़्तियार है।

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